Tribute to Dr Girija Vyas

"गिरिजा व्यास: एक निश्छल आत्मा की स्मृति में"
           आज, एक मई 2025, एक बार फिर उस दुखद स्मृति को ताजा कर रहा है, जब सन 2008 में हमने एक महान आत्मा, निर्मला देशपांडे जी को खोया था। और आज, उसी दिन, एक और निश्छल, कोमल हृदय वाली महिला, गिरिजा व्यास, हम सबको छोड़कर अपनी प्रिय दीदी निर्मला जी के पास स्वर्गलोक में चली गईं। यह संयोग नहीं, शायद नियति का एक गहरा संदेश है कि ये दोनों आत्माएं, जो जीवन में एक-दूसरे के इतने करीब थीं, मृत्यु में भी एक ही दिन को चुना। गिरिजा जी की स्मृति में यह लेख उनके जीवन, उनके व्यक्तित्व, और उनके साथ जुड़ी मेरी व्यक्तिगत यादों का एक भावपूर्ण चित्रण है।
  ●नाथद्वारा से उदयपुर: एक साझा विरासत
गिरिजा व्यास का जीवन राजस्थान के उदयपुर जिले के पवित्र तीर्थ स्थल नाथद्वारा से शुरू हुआ, वही स्थान जो मेरी पत्नी कृष्णा कांता का पैतृक कस्बा भी है। यह संयोग नहीं, बल्कि एक गहरा पारिवारिक और सांस्कृतिक बंधन था, जिसने मुझे और मेरे परिवार को गिरिजा जी से जोड़ा। नाथद्वारा, जहाँ भगवान श्रीनाथजी का आशीर्वाद हर गली-नुक्कड़ में बिखरा है, वह स्थान था जहाँ गिरिजा जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। यहीं से मेरे ससुर, श्री गणेश लाल जी माली ने भी अपनी जीवन यात्रा शुरू की थी। 

श्री गणेश लाल जी ने नाथद्वारा में शिक्षा प्राप्त की, वकालत का पेशा अपनाया, और नगरपालिका के पहले अध्यक्ष बने। बाद में, उनका परिवार उदयपुर शिफ्ट हुआ, जहाँ उन्होंने जिला कोर्ट में वकालत शुरू की। उनकी प्रतिभा और नेतृत्व क्षमता ने उन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मोहनलाल सुखाड़िया जी का अनन्य मित्र बनाया। वे शहर कांग्रेस के प्रधान बने और 1972 से 1978 तक राज्यसभा के सदस्य रहे। यह एक ऐसा दौर था जब उदयपुर का राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य बदल रहा था, और इस परिवर्तन में मेरे ससुर और गिरिजा व्यास जैसे लोग महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे।

गिरिजा जी ने भी नाथद्वारा और उदयपुर में अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की। उदयपुर विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र की प्रोफेसर के रूप में उन्होंने न केवल अपनी विद्वता का परिचय दिया, बल्कि मेरी पत्नी कृष्णा कांता जैसी कई छात्राओं को प्रेरित भी किया। यह एक सुंदर संयोग था कि गिरिजा जी, जो मेरी पत्नी की शिक्षिका थीं, बाद में हमारे परिवार की एक आत्मीय सदस्य बन गईं।

●एक प्रेरणादायी राजनेता और कवयित्री:
गिरिजा व्यास का जीवन केवल एक व्यक्ति की कहानी नहीं, बल्कि एक युग की गाथा है। उन्होंने उदयपुर से राजस्थान विधानसभा के लिए निर्वाचन जीता, प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं, और केंद्र सरकार में सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री के रूप में अपनी सेवाएँ दीं। राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष के रूप में उन्होंने महिलाओं के अधिकारों और सम्मान के लिए अथक कार्य किया। उनके नेतृत्व में महिला आयोग ने कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर आवाज उठाई और समाज में बदलाव की नींव रखी।
लेकिन गिरिजा जी केवल एक राजनेता नहीं थीं; वे एक कवयित्री थीं, जिनका हृदय कविता की तरह कोमल और संवेदनशील था। उनकी कविताएँ उनकी आंतरिक दुनिया की झलक देती थीं—एक ऐसी दुनिया जो प्रेम, करुणा, और मानवता से भरी थी। वे अक्सर कहा करती थीं, “धोखा देने से अच्छा है धोखा खा जाओ।” यह उनके निश्छल और विश्वासपूर्ण स्वभाव का परिचायक था।

 ●व्यक्तिगत मुलाकातें: पारिवारिक बंधन
राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान मेरा उनसे कई बार मिलना हुआ। प्रत्येक मुलाकात पारिवारिक और आत्मीय थी। एक बार, पानीपत में माता सीता रानी सेवा संस्था के एक कार्यक्रम में वे मुख्य अतिथि के रूप में पधारीं। वहाँ भी उनकी सादगी और आत्मीयता ने सभी को प्रभावित किया। उनके साथ बिताए हर पल में उनकी सहजता और मानवीयता झलकती थी।

 ●निर्मला देशपांडे जी के साथ बंधन:
गिरिजा जी का निर्मला देशपांडे जी के साथ गहरा आत्मीय रिश्ता था। सन 2008 में, जब दोनों दिल्ली के पंडारा रोड पर सरकारी निवास में साथ रह रही थीं, एक दुखद घटना ने गिरिजा जी के हृदय को गहरे तक आहत किया। एक मई 2008 को, जब निर्मला दीदी का सुबह जल्दी निधन हो गया, उनके साथ रहने वाले कुछ लोगों ने मृत्यु की घोषणा से पहले ही उनका सामान पिछले रास्ते से निकालना शुरू कर दिया। यह दृश्य गिरिजा जी ने देखा, और यह उनके लिए एक गहरा सदमा था। 

उन्होंने बाद में दीदी की छोटी बहन कल्पना पारुलकर जी के सामने, मेरी उपस्थिति में, इस दुख को व्यक्त किया। वे बोलीं, “कैसे कथित सहयोगी और विश्वासपात्र लोग आत्मीय व्यक्ति से भी ज्यादा प्यार उसकी वस्तुओं को करते हैं?” यह वाक्य उनके संवेदनशील हृदय और मानवीय मूल्यों के प्रति उनकी गहरी निष्ठा को दर्शाता है। इस घटना ने उन्हें जीवन के प्रति और अधिक गहरे दृष्टिकोण से सोचने को प्रेरित किया।

 ●एक अमर आत्मा:
गिरिजा व्यास अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी स्मृतियाँ, उनके कार्य, और उनकी कविताएँ हमेशा जीवित रहेंगी। वे एक ऐसी महिला थीं जिन्होंने अपने जीवन में हर भूमिका—चाहे वह शिक्षिका, राजनेता, कवयित्री, या सामाजिक कार्यकर्ता की हो—को पूर्ण निष्ठा और समर्पण के साथ निभाया। उनकी निश्छलता, उनकी करुणा, और उनकी मानवता हमें हमेशा प्रेरित करती रहेगी।

●आज, निर्मला देशपांडे जी की पुण्यतिथि पर, गिरिजा जी भी हमें छोड़कर चली गईं। शायद यह उनकी दीदी के प्रति उनकी अटूट श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक है कि उन्होंने उसी दिन को चुना। हम सबकी ओर से गिरिजा जी को विनम्र श्रद्धांजलि। उनकी आत्मा को शांति मिले, और वे स्वर्गलोक में अपनी प्रिय दीदी के साथ सदा सुखी रहें।
गिरिजा जी अमर रहे. 

राम मोहन राय

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