●निशस्त्रीकरण का कोई विकल्प नहीं.
भारत की भूमि महात्मा बुद्ध और गांधी की पावन धरती है, जहाँ अहिंसा और सत्य के मूल्यों को सदैव सर्वोच्च स्थान दिया गया है। हमारा स्वतंत्रता संग्राम भी इन्हीं आदर्शों पर आधारित था और आजादी के बाद भारत ने गुटनिरपेक्षता तथा निशस्त्रीकरण की नीति को अपनाकर विश्व शांति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। हमारे पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व कर यह सिद्ध किया कि हथियारों की होड़ विकास का मार्ग नहीं, बल्कि विनाश का सूचक है।
●हथियारों की होड़: एक विनाशकारी दौड़
भारत ने 1974 और 1998 में परमाणु परीक्षण किए परंतु उसके तुरन्त बाद ही पाकिस्तान ने भी इसी राह पर चलते हुए परमाणु परीक्षण किए और दक्षिण एशिया में एक खतरनाक हथियारों की दौड़ शुरू हो गई। महात्मा गांधी ने कहा था – "आँख के बदले आँख लेने से पूरी दुनिया अंधी हो जाएगी।" यह बात आज भी उतनी ही प्रासंगिक है।
सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद जब युद्ध के भयावह परिणाम देखे, तो उन्होंने हिंसा का मार्ग छोड़कर बौद्ध धर्म अपनाया और शांति का संदेश फैलाया। क्या आज की दुनिया को भी इसी तरह के पश्चाताप और बदलाव की आवश्यकता नहीं है?
●परमाणु निरस्त्रीकरण: एकमात्र विकल्प
हिरोशिमा और नागासाकी की त्रासदी ने साबित कर दिया कि परमाणु हथियार मानवता के लिए कितने घातक हैं। फिर भी, कुछ देश अपनी सैन्य श्रेष्ठता बनाए रखने के लिए चाहते हैं कि वे तो परमाणु शक्ति संपन्न बने रहें, लेकिन अन्य देश ऐसा न करें। यह दोहरा मापदंड न्यायसंगत नहीं है। यदि वास्तव में शांति चाहिए, तो सभी परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों को अपने हथियारों को नष्ट करने की पहल करनी चाहिए।
●अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके लिए उन्हें श्रेय दिया जाना चाहिए। लेकिन अब समय आ गया है कि वे विश्व स्तर पर परमाणु निरस्त्रीकरण की पहल करें। यदि वे ऐसा करते हैं, तो निश्चित रूप से वे शांति के नोबेल पुरस्कार के हकदार होंगे।
●सैन्य गठबंधनों के स्थान पर आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग
नाटो जैसे सैन्य संगठनों के स्थान पर यूरोपीय संघ जैसे आर्थिक और सांस्कृतिक संगठनों को बढ़ावा देना चाहिए। इसी प्रकार, एशिया में भी "एशियाई संघ" का गठन होना चाहिए, जो किसी के विरुद्ध न होकर आपसी व्यापार, मैत्री और सहयोग को बढ़ावा दे।
एक नई शुरुआत की आवश्यकता
आज पूरी मानवता के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि हम विनाश की राह पर चलेंगे या शांति और सहयोग के मार्ग पर। भारत ने सदैव अहिंसा और सत्य का समर्थन किया है। अब समय आ गया है कि पूरा विश्व एकजुट होकर निशस्त्रीकरण की दिशा में कदम बढ़ाए और एक नए, शांतिपूर्ण विश्व का निर्माण करे।
●"शस्त्र नहीं, शांति। संघर्ष नहीं, सहयोग। यही हो भविष्य का मार्ग।"
●दीदी निर्मला देशपांडे ने इन्हीं भावों को कहा- गोली नहीं- बोली चाहिए. युद्ध नहीं बुद्ध चाहिए. जंग नहीं अमन चाहिए.
Ram Mohan Rai
Gandhi Global Family
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