पानीपत की गलियां-10 (गुड़ मंडी से रामधारी चौक)
पानीपत की गलियाँ-10
पानीपत की गुड़ मंडी: एक ऐतिहासिक यात्रा:
पानीपत की संकरी गलियों में आज हम गुड़ मंडी की ओर बड़े बाजार से प्रवेश करते हैं। शुरू में ही छोटी-बड़ी दुकानें नजर आती हैं, जहाँ रोजमर्रा की जरूरतों का सामान बिकता है। इनके बीच कुछ दालें बेचने वाली खुदरा और थोक की दुकानें भी हैं। इनकी खासियत यह है कि यहाँ एक दाम निर्धारित होता है—कोई मोल-भाव नहीं। सामान शुद्ध, साफ-सुथरा और विश्वसनीय होता है।
इसी क्रम में आगे बढ़ते हुए श्री राजेंद्र जैन की पुरानी कपड़ों की दुकान आती है। उसके ठीक बाद गुड़ मंडी का विशाल चौक सामने आता है। चौक के एक कोने पर श्री शेर सिंह जैन की तेल और अन्य सामान की दुकान थी। वे मेरे पिताजी मास्टर सीताराम जी के शागिर्द थे, और उनका सुपुत्र राजेंद्र और मैं जैन हाई स्कूल में एक साथ पढ़े थे।
गुड़ मंडी का इतिहास और परंपरा:
गुड़ मंडी की स्थापना का कोई लिखित इतिहास उपलब्ध नहीं है, लेकिन जनश्रुति के अनुसार यह लगभग 1,000 वर्ष पुरानी है। प्राचीन काल में पानीपत गुड़ की प्रमुख मंडी था। दूर-दराज के गाँवों से किसान पका हुआ गुड़ बैलगाड़ियों पर लादकर लाते थे। यहाँ के आढ़ती उसे खरीदकर थोक में बेचते थे। यमुनापार और आसपास के जिलों से भी किसान आते थे।
गुड़ के अलावा गेहूँ, चावल, मक्का, बाजरा जैसी फसलें भी थोक में मिलती थीं। हमारे घर में साल भर का गेहूँ यहीं से खरीदा जाता था। फिर जरूरत के अनुसार देसी घरेलू चक्की या बाजार की चक्की से पिसवाया जाता था। अब समय बदल गया है—आजकल आटे की तैयार थैलियाँ ही खरीद ली जाती हैं।
यहीं पर श्री सुमेर चंद अग्रवाल की दुकान थी, जो आर्य समाज के अग्रणी नेता थे। मैंने बचपन में इस मंडी में बैलगाड़ियों पर किसानों को अपनी उपज बेचने लाते देखा है। मंडी का प्रांगण इतना विशाल और खुला था कि राजनीतिक और सामाजिक समारोह यहीं आयोजित होते थे। बड़े-बड़े राष्ट्रीय नेता यहाँ उद्बोधन देते थे। लेकिन अब भीड़भाड़ इतनी बढ़ गई है कि कोई बड़ा वाहन चलाना भी मुश्किल हो जाता है।
गलियाँ और उनके रहस्य:
चौक से कुछ आगे दाहिनी ओर एक गली मुड़ती है, जो सीधी कलावती स्कूल की ओर जाती है और फिर बुलबुल बाजार में उतरती है। इस गली के शुरू में ही चौधरियों का मंदिर है, जहाँ पहले पंडित राम स्वरूप जी बैठते थे। उनके पास पिछले 250 साल पुरानी ज्योतिष पंचांग थी।
मेरा इस गली में रोज आना-जाना होता था, क्योंकि कलावती स्कूल के पीछे ही मेरे गुरु श्री दीप चंद्र निर्मोही जी सपरिवार रहते थे। लेकिन उससे कहीं पहले जैन मोहल्ले की ओर जाने वाली गली आती है। आज भी इस ओर पुराने मकान देखे जा सकते हैं—कुछ विरान, कुछ आबाद। अधिकांश लोग इन्हें छोड़कर खुली बस्तियों में बस गए हैं।
गुड़ मंडी बाजार में आगे बढ़ते हुए बाईं ओर अग्रवाल धर्मशाला को जाने वाला रास्ता है। यह धर्मशाला न केवल इतिहास की दृष्टि से, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। मैंने यहीं पर निम्नलिखित महान व्यक्तियों जिनमें
- श्री अटल बिहारी वाजपेयी
- प्रोफेसर बलराज मधोक
- श्री जिनेंद्र वर्णी
- स्वामी गीतानंद जी
- स्वामी अग्निवेश
- श्री राम गोपाल शॉलवाले प्रमुख है .
इसी गली में श्री सोहन लाल जी का घर था, जिन्हें आर्य समाज का लंबे समय तक मंत्री रहने के कारण "मंत्री जी" कहा जाता था। उनके घर के साथ ही नानू मल अमर नाथ की बड़ी दुकान और ऑफिस था। उनके सुपुत्र श्री कैलाश चंद आरएसएस के कई वर्षों तक नगर प्रमुख रहे। उनकी पत्नी, जो मंत्री जी की बेटी भी थीं—श्रीमती वेदवती जी—आर्य समाज की प्रमुख नेत्री और प्रधान थीं।
क्या सुंदर समन्वय था!
पति और ससुराल पक्ष पौराणिक सनातनी,
मायका आर्य समाजी।
इनके सामने ही स्वामी आनंद रंक बंधु जी का मकान था। वे गांधी-विनोबा और सर्वोदय आंदोलन के समर्पित योद्धा थे। बचपन में मैं उनके घर घंटों बैठकर उनके विचार सुनता था। उनकी प्रेरणा से ही मैंने 8-10 साल की उम्र में भारतीय बाल सभा बनाई थी।
स्वाद और स्मृतियाँ:
गली से उतरकर गुड़ मंडी बाजार में दक्षिण की ओर बढ़ते हुए फ्लोर मैट और सजावट की दुकानें आती हैं। उसके साथ ही लाला केशो राम हलवाई की प्रसिद्ध लड्डू और पारंपरिक मिठाइयों की दुकान है।
कुछ आगे जैन मोहल्ले की ओर गली मुड़ती है। इसके शुरू में ही दात्ती चाट वाले की दुकान है। मैं और मेरा मित्र शैलेंद्र रोज जैन मोहल्ले में रहने वाले श्री सुदेश कुमार जैन के घर ट्यूशन पढ़ने जाते थे। रास्ते में अक्सर इस दुकान पर गोलगप्पे खाते थे।
इस दुकान से कुछ दूरी पर जैन धर्मशाला है, जहाँ अक्सर सामाजिक समारोह होते रहते थे।
वापस गुड़ मंडी में आकर कुछ आगे दाहिनी ओर कांग्रेस नेता डॉ. रामजी लाल की क्लीनिक थी, जो हमेशा राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र रहती थी। श्री सुमेर चंद बिजली, टिंकू जी, रूप राम भाई जैसे लोग वहाँ आते-जाते थे।
रामधारी चौक: यात्रा का अंत:
यह बाजार रामधारी चौक पर समाप्त होता है—एक व्यस्त चौराहा।
- सीधे राजपूताना बाजार की ओर,
- पूर्व में बड़ी पहाड़ी की ओर, जहाँ कला प्रिय और साहित्यकार पंडित हरिदत्त शर्मा का मकान था,
- पश्चिम में कंबल की बड़ी दुकान (कालका प्रसाद कबूल सिंह की) से होते हुए पूर्वियां घाटी हनुमान मंदिर की ओर।
रास्ते में अग्रवाल, सैनियों और कश्यप बिरादरीके मकान हैं।
श्री योगेश्वर चंद कई वर्षों तक आर्य समाज के मंत्री और प्रधान रहे। उनका पुत्र श्री कुलभूषण भी इसी पद पर रहे, और अब उनका छोटा पुत्र अजय गर्ग आर्य समाज के प्रधान हैं।
यह सफर इतना जीवंत और स्मृतिमय है कि लिखते-लिखते मैं स्वयं इन गलियों में खो सा जाता हूँ।
गुड़ मंडी केवल एक बाजार नहीं—यह पानीपत की सांस्कृतिक धड़कन है।
Ram Mohan Rai,
Panipat/02.11.2025
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