पानीपत की गलियां 16(पानीपत की गलियों का ऐतिहासिक सफर: पचरंगा बाज़ार और उसके आसपास)
पानीपत की गलियों का ऐतिहासिक सफर: पचरंगा बाज़ार और उसके आसपास
पानीपत शहर की संकरी गलियाँ न केवल व्यापार और संस्कृति की गवाह हैं, बल्कि इतिहास की जीती-जागती किताब भी हैं। आज हमारी यात्रा उस प्राचीन चौक से शुरू होती है, जहाँ से तीन मुख्य रास्ते निकलते हैं। पहला रास्ता चौरा बाज़ार को पार करता हुआ कचेहरी बाज़ार में मिलता है। दूसरा रास्ता जैन स्कूल की पिछली गली से आरंभ होकर गुरुद्वारा पहली पातशाही के पास से गुजरता हुआ जी टी रोड पर जाकर समाप्त होता है। तीसरा रास्ता सीधे शहर के हृदय स्थल पचरंगा बाज़ार की ओर जाता है। ये गलियाँ पानीपत की आत्मा हैं – कभी आवासीय मोहल्ले, आज व्यावसायिक केंद्र। आइए, विस्तार से इस सफर पर चलें और इनकी कहानी को जीवंत करें।
जैन हाई स्कूल: पानीपत की शिक्षा की नींव
इस चौक से लगा हुआ जैन हाई स्कूल पानीपत का सबसे पुराना विद्यालय है, जिसकी स्थापना सन् 1909 में दिगंबर जैन पंचायत ने की थी। यह स्कूल न केवल शिक्षा का प्रतीक है, बल्कि कई पीढ़ियों की स्मृतियों का खजाना भी। मेरा व्यक्तिगत सौभाग्य रहा कि मेरे पिता, मास्टर सीताराम सैनी, ने यहीं सन् 1921 से 1928 तक पढ़ाई की। इसके बाद, सन् 1928 से 1948 तक वे उर्दू, अरबी और फारसी भाषाओं के सम्मानित शिक्षक रहे। विभाजन के बाद, मेरे बड़े भाई मनमोहन बहादुर ,मदन, मोहन राणा और मैं स्वयं ने भी कक्षा 7 तक इसी स्कूल में शिक्षा ग्रहण की।
उस दौर के अध्यापक आज भी मेरी स्मृति में जीवंत हैं। हमारे हेडमास्टर श्री अमीर चंद चौधरी थे, जबकि मास्टर उग्र सेन, मास्टर टेकचंद जैन, सुदेश कुमार जैन और राधेश्याम शर्मा जैसे निपुण शिक्षक हमें ज्ञान की ज्योति प्रदान करते थे। सन् 1947 तक पानीपत में मात्र दो हाई स्कूल थे: एक जैन हाई स्कूल और दूसरा हाली मुस्लिम हाई स्कूल। विभाजन के बाद मुस्लिम हाई स्कूल का नाम बदलकर आर्य हाई स्कूल कर दिया गया। ये दोनों संस्थान शहर की शैक्षिक विरासत के स्तंभ थे, जो आज भी नई पीढ़ी को प्रेरित करते हैं।
पचरंगा बाज़ार: अचार से कंबल तक की यात्रा:
जैन हाई स्कूल के साथ ही एक गली आगे बढ़ती है, जो थोड़ी दूर जाकर बंद हो जाती है। उसके ठीक बाद एक छोटी-सी जगह आती है, जो आईबी स्कूल और आईबी कॉलेज के पीछे
का हिस्सा है। आई बी कॉलेज ने पानीपत के शिक्षा जगत में अमिट योगदान दिया है। यह संस्थान लैया भ्रातृ सोसाइटी द्वारा स्थापित किया गया, जो श्री इंद्रभान ढींगड़ा की स्मृति में समर्पित है। श्री ढींगड़ा 1947 में लैया (पाकिस्तान) से पानीपत आए थे। उनकी याद में न केवल प्राइमरी स्कूल और हाई स्कूल, बल्कि एक पूर्ण कॉलेज की स्थापना की गई। आज यह कॉलेज अपनी ऊँचाइयों पर है और हजारों छात्रों को उच्च शिक्षा प्रदान कर रहा है।
इससे आगे बढ़ें तो अनेक गलियाँ मिलती हैं – लगभग 25 से 30 की संख्या में। कुछ छोटी, कुछ बड़ी; कुछ आर-पार निकलने वाली, तो कुछ बंद। एक गली जिसका नाम अजब ही लूसी गली था और उसमें रहते थे कॉंग्रेस नेता श्री चुन्नी लाल नारंग. वे हर बार अपने वार्ड से नगर पालिका के सदस्य चुने जाते और श्री राम युवा ड्रामा क्लब में कभी दशरथ का और कभी राजा हरिश्चंद्र का लाजवाब रोल करते.
इनमें से एक प्रमुख गली पचरंगा बाज़ार कहलाती है। इसका नाम 'पचरंगा' एक दिलचस्प इतिहास से जुड़ा है। एक समय था जब ढींगरा ब्रदर् यहाँ पाँच रंगों (पंच रंग) का अनोखा अचार बनाते थे – आम, नींबू, हरी मिर्च, अदरक और करोंदे – जो स्वाद और रंगों का अनुपम मिश्रण था। इसी अचार का नाम 'पचरंगा अचार' पड़ा। उनकी फैक्ट्री इसी गली में स्थित थी। आज फैक्ट्री संभवतः बंद हो चुकी है, लेकिन नाम अमर है। पानीपत जहाँ कंबल और चादरों के लिए विश्वविख्यात है, वहीं पचरंगा अचार भी अपनी विशेष पहचान रखता है। अब एक नहीं, अनेक ब्रांड 'पचरंगा' के नाम पर काम कर रहे हैं, जो इस विरासत को जीवित रखे हुए हैं।
महर्षि बाल्मीकि मोहल्ला और मन्दिर: सामाजिक परिवर्तन की गवाही:
इसी पचरंगा बाज़ार के भीतर एक महत्वपूर्ण मोहल्ला है – महर्षि बाल्मीकि मोहल्ला। यहाँ महर्षि बाल्मीकि मन्दिर भी स्थित है, जो बाल्मीकि समुदाय की आस्था और संस्कृति का केंद्र है। इस मोहल्ले में मुख्य रूप से वाल्मीकि समुदाय के लोग रहते थे। एक समय था जब इस समुदाय के अधिकांश लोग सफाई कर्मचारी के रूप में कार्य करते थे – यह एक पारंपरिक व्यवसाय था जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चला आ रहा था। लेकिन समय के साथ सामाजिक जागरूकता और शिक्षा के प्रसार ने परिवर्तन लाया। आज अधिकांश लोग इस पारंपरिक कार्य से मुक्त होकर अन्य व्यवसायों में लगे हैं – दुकानदारी, छोटे-मोटे उद्योग, नौकरी, और स्वरोजगार। यह परिवर्तन स्वागत योग्य और प्रेरणादायक है, क्योंकि यह समाज में समानता, सम्मान और आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम है।
मेरी माँ, श्रीमती सीतारानी, इस सामाजिक परिवर्तन में सक्रिय भूमिका निभाती थीं। वे इन्हीं मोहल्लों में आकर महिलाओं को सिलाई-कटाई और बुनाई का प्रशिक्षण देती थीं। उनका उद्देश्य स्पष्ट था – महिलाओं को सशक्त बनाना, ताकि वे मैला ढोने जैसे अपमानजनक कार्य को छोड़कर सम्मानजनक आजीविका अपना सकें। उनकी कोशिशों से कई महिलाएँ आत्मनिर्भर बनीं – कुछ ने घर से ही सिलाई का काम शुरू किया, कुछ ने कढ़ाई-बुनाई के सामान बेचने लगीं। यह न केवल आर्थिक स्वतंत्रता थी, बल्कि सामाजिक गरिमा की पुनर्स्थापना भी थी। आज भी इस मोहल्ले में उनकी स्मृति जीवित है – एक ऐसी महिला की, जिसने चुपचाप समाज को बदला।
कंबल मार्केट: हथकरघा से मशीनरी युग तक-
पचरंगा बाज़ार वैसे तो अचार के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन आज यह पानीपत का सबसे बड़ा कंबल मार्केट है। यहाँ एक पूरा बाज़ार कंबलों को समर्पित है। छोटे-बड़े व्यापारियों ने अपने शोरूम सजा रखे हैं, जहाँ सस्ते से सस्ता और महँगे से महँगा कंबल, शॉल तथा अन्य गर्म वस्त्र उपलब्ध हैं। इसी क्षेत्र में नोहरेवाला मोहल्ला है, जो कभी मोहल्ला सेनियान का था। यहाँ मुख्य रूप से सैनी समुदाय के लोग रहते थे।
मैंने ऊपर 25-30 गलियों का ज़िक्र किया है। एक समय था जब ये गलियाँ शुद्ध आवासीय थीं, लेकिन अब ये पूर्णतः व्यावसायिक मार्केट में बदल चुकी हैं। पानीपत कभी भारत का सबसे बड़ा ऊनी उत्पादन केंद्र था। यहाँ से देश के 80% कंबल सप्लाई होते थे, और वे हथकरघे पर हाथों से बुने जाते थे – शुद्ध ऊन के, गर्माहट से भरपूर। लेकिन मशीनी युग ने सब बदल दिया। अब कंबल का मटेरियल सिंथेटिक हो गया है, गर्माहट में कमी आई है, और उत्पादन बड़े कारखानों में हो रहा है। फिर भी, पानीपत की कंबलें देश-विदेश में निर्यात होती हैं।
पचरंगा बाज़ार खारी कुई तक फैला हुआ है। यहाँ कभी डॉक्टर मनमोहन सिंह के पूर्वजों का संबंध था – उनके पूर्वज लगभग 200 वर्ष पूर्व पूर्वांचल से पानीपत आए थे। इसी क्षेत्र में डॉक्टर श्री कृष्ण धमीजा का क्लीनिक था, जो अपनी चिकित्सा सेवाओं के लिए बहुत मशहूर थे। उनके पड़ोस में पानीपत के वरिष्ठ एडवोकेट श्री रघुबीर सिंह सैनी का मकान था। ये सभी स्थल पचरंगा बाज़ार के अभिन्न अंग हैं।
पानीपत आएँ तो कंबल ज़रूर खरीदें :
पचरंगा बाज़ार यदि दूसरे शब्दों में कहें तो आज पानीपत का हृदय है – जहाँ परंपरा और आधुनिकता, व्यापार और सामाजिक परिवर्तन, इतिहास और प्रगति का अनोखा मेल है। पानीपत कंबलों के लिए विश्वप्रसिद्ध है, इसलिए यदि आप यहाँ आएँ तो एक बेहतरीन कंबल अवश्य खरीदें । सबसे उत्तम जगह यही पचरंगा बाज़ार मार्केट है, जहाँ गुणवत्ता और विविधता का भंडार है। ये गलियाँ न केवल व्यापार करती हैं, बल्कि पानीपत की सांस्कृतिक धरोहर को संजोए रखती हैं। अगली बार पानीपत आएँ तो इन गलियों में खोकर इतिहास को महसूस करें!
Ram Mohan Rai, Advocate.
Panipat/08.11.2025
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