पानीपत की गलियां 17. (हनुमान मंदिर चौक से अमर भवन तक)
हनुमान मंदिर चौक से अमर भवन तक)
पचरंगा बाज़ार की सैर करते हुए हम लोग एक चौराहे पर पहुँचे। यह चौराहा चारों दिशाओं में फैले रास्तों का संगम था। सीधा रास्ता हनुमान मंदिर के सामने से गुज़रता हुआ रामधारी चौक की ओर जाता था। बाईं ओर का रास्ता दिगंबर जैन मंदिर के पास से होता हुआ इंसान चौक तक पहुँचता था। पूरब की दिशा में रास्ता अमर भवन चौक की ओर खुलता था। हमने अमर भवन वाले रास्ते को चुना और उस दिशा में चल पड़े। यह रास्ता हमारे लिए बहुत परिचित था, जैसे बचपन की कोई पुरानी गली जो दिल में बसी हो।
इस रास्ते के कोने पर एक तरफ रघुबीर सैनी का पुराना मकान था, जो अब भी अपनी मजबूत दीवारों से खड़ा नज़र आता है। दूसरी तरफ खारी कुई मोहल्ला है, जिसके किनारे पर कई मकान एक लंबी कतार में खड़े हैं। इनमें से कुछ मकान खारी कुई की ओर मुड़े हुए हैं, तो कुछ इस सड़क की तरफ। थोड़ा आगे बढ़ने पर आर्य समाज के प्रमुख नेता लाला दलीप सिंह आर्य और उनके भाई जय भगवान दास आर्य के मकान आते हैं। ये दोनों भाई न केवल आर्य समाज बड़ा बाज़ार के कद्दावर नेता थे, बल्कि कई वर्षों तक प्रधान भी रहे। मेरा सौभाग्य रहा कि मैंने इन दोनों महानुभावों के साथ बतौर मंत्री कार्य किया। मास्टर जय भगवान दास का एक सुपुत्र फिल्म जगत का एक बहुत ही नामी-गिरामी अभिनेता है—राजेंद्र गुप्ता। वे मुंबई में रहकर फिल्मों के माध्यम से समाज को नई दिशा और दृष्टि देने का काम करते हैं।
उनके ठीक सामने सरदार तेजा सिंह की गली है, जो एक छोटे चौक की शक्ल में है। इसके सामने कभी लैया प्रेस हुआ करती थी—एक इलेक्ट्रिक प्रेस जो मैनुअली प्रिंटिंग का काम करती थी। पुराने ज़माने की वह मशीनें और स्याही की महक आज भी याद आती है। इसी इलाके में आर्य समाज के एक धुरंधर नेता और कर्मठ कार्यकर्ता वैद्य इंद्रभान आर्य जी का मकान था। वे स्वामी अग्निवेश को अपना आदर्श मानकर आर्य सभा के कामों में जुटे रहते थे।
यद्यपि अब यह जगह पहले जैसी नहीं रही। लाला दलीप सिंह और मास्टर जय भगवान दास के मकान बंद पड़े हैं, वहाँ कोई नहीं रहता। लैया प्रिंटिंग प्रेस भी अब यहाँ से कहीं और चली गई है। वैद्य जी के दिवंगत होने के बाद उनके परिवार का कोई सदस्य भी यहाँ नहीं रहता। लेकिन यह पूरा बाज़ार धागे की एक बहुत बड़ी मार्केट के रूप में जाना जाता है। यहाँ हर प्रकार का कंबल और कपड़ों में इस्तेमाल होने वाला धागा आसानी से उपलब्ध होता है—रंग-बिरंगे रेशमी धागे, मोटे ऊनी धागे, चमकदार सिंथेटिक धागे—सब कुछ।
कभी यह इलाका विभाजन से पहले मुस्लिम बस्ती था। लेकिन अब यहाँ कोई मुस्लिम नहीं रहता। पाकिस्तान से आए पुरुषार्थी लोगों ने यहाँ अपने मेहनत के दम पर मकान बनाए और बस गए। आज यह इलाका पानीपत के सबसे संपन्न क्षेत्रों में से एक है। अब यहाँ रिहायशी मकान कम और व्यावसायिक प्रतिष्ठान ज्यादा नज़र आते हैं—धागे की दुकानें, गोदाम, छोटे-बड़े कारखाने।
यह सड़क हमें हमेशा इसलिए भी प्रिय है क्योंकि यहीं उन लोगों की रिहाइश रही जो पानीपत के सामाजिक आंदोलनों को नई दिशा देने का काम करते थे। आर्य समाज की बैठकों की गूँज, सुधार की बातें, समाज को जागृत करने वाले भाषण—सब यहीं से निकले। इस स्थान पर आकर मन में एक गहरी प्रसन्नता का अहसास होता है, जैसे इतिहास की धड़कनें सुनाई दे रही हों।
इस प्रकार इस सड़क पर चलते-चलते हम अमर भवन चौक में पहुँच गए। यह एक पंचमुखी चौराहा है जहाँ पाँच रास्ते मिलते हैं। एक रास्ता गुड़ मंडी की तरफ जाता है, जहाँ अनाज और मसालों की खुशबू हवा में घुली रहती है। दूसरा रास्ता सीधा सेठी चौक की ओर जाता है। तीसरा रास्ता संत नारायण सिंह गुरुद्वारे की ओर मुड़ता है, जहाँ सुबह-शाम कीर्तन की मधुर ध्वनि गूँजती है। चौथा रास्ता एस.डी. कॉलेज पानीपत की ओर जाता है, जहाँ युवा पीढ़ी ज्ञान की ज्योति जलाती है। और पाँचवाँ रास्ता वही है जिससे हम अमर भवन चौक में प्रवेश कर चुके थे।
यह चौक न केवल रास्तों का मिलन है, बल्कि समय का भी संगम है—पुराने पानीपत की यादें और नए पानीपत की भाग-दौड़, दोनों यहीं साँस लेती हैं।
Ram Mohan Rai,
Advocate.
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