पानीपत की गलियां 22. (सुभाष बाजार रोड से किले तक)
(सुभाष बाजार रोड से किले की ओर)
पानीपत, हरियाणा का एक प्राचीन शहर, जो तीन ऐतिहासिक युद्धों के लिए विश्व प्रसिद्ध है, अपनी संकरी गलियों, विविध समुदायों और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है। आज हम एक ऐसे सफर पर चलते हैं जो सुभाष बाजार रोड से शुरू होकर किले की ओर बढ़ता है, और रास्ते में जुही मुड़े क्षेत्र से गुजरता है। यह सफर न केवल भौगोलिक है, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी समृद्ध है। आइए, इसे विस्तार से समझते हैं।
सफर की शुरुआत: सुभाष बाजार रोड से सनातन धर्म गर्ल्स स्कूल चौक तक:
हमारा सफर सुभाष बाजार रोड से शुरू होता है, जो पानीपत के व्यस्त बाजार क्षेत्रों में से एक है। यहां से आगे बढ़ते हुए हम किले की तरफ मुड़ते है तो कई तरह की दुकानें शुरू हो जाती हैं। इस क्षेत्र में कुछ फास्ट फूड की दुकानें दिखाई देती हैं, जो आधुनिक जीवन की झलक देती हैं। लेकिन जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं, दाहिनी तरफ एक गली नजर आती है, जो कभी गंजो गढ़ी कहलाती थी, लेकिन अब इसका नाम रामनगर पड़ गया है।
इस गली के बाहर सिख भाइयों की दुकानें हुआ करती थीं, जहां लकड़ी का काम होता था। ये दुकानें लकड़ी की कलात्मक वस्तुओं और फर्नीचर के लिए प्रसिद्ध थीं। एक समय था जब इस क्षेत्र में अराई बिरादरी के लोग रहते थे। राई एक किसानी कम्युनिटी थी, जो मुख्य रूप से कच्ची फसलें उगाती थी। कच्ची फसल से तात्पर्य साग-सब्जी और मौसमी फसलों से है, जो गेहूं या धान जैसी मुख्य फसलों से अलग होती हैं। इनकी खेती का तरीका सीजनल और ताजा उत्पादन पर केंद्रित होता था।
राई कम्युनिटी की एक खासियत यह थी कि उनके मकान जहां-जहां होते थे, वहां सैनी जाति के लोगों के मकान भी साथ-साथ होते थे। दोनों समुदायों का काम करने का ढंग और उद्देश्य समान था – दोनों कच्ची फसलों की खेती करते थे। यह सह-अस्तित्व पानीपत की सामाजिक संरचना का एक सुंदर उदाहरण है।
घेर राइयां गली और सैनियों का बगड़:
आगे बढ़ते हुए घेर राइयां गली आती है, जहां आराई कम्युनिटी की सबसे बड़ी बस्ती थी। इसके साथ ही एक गली कायस्थान मोहल्ले की ओर जाती है। इस गली की शुरुआत में सैनियों का बगड़ ( बंद गली) होती थी, जहां ताऊ घासी राम और अन्य सैनी कम्युनिटी के लोग रहते थे। घेर राइयां और सैनियों के बगड़ के बाहर धीमान बिरादरी के लोगों के मकान थे। इनमें सबसे प्रमुख मुंशी राम - बनवारी लाल थे।
धीमान बिरादरी ने पानीपत में सबसे पहले खड्डी (लकड़ी के हथकरघे ) बनाने का काम शुरू किया। इससे पहले वे रथों और बैलगाड़ियों के पहिए बनाते थे। मैंने स्वयं इन परिवारों को काम करते हुए देखा है, जो इस क्षेत्र की पारंपरिक शिल्पकला की जीवंत स्मृति है।
आर्य प्राइमरी स्कूल और पुरानी हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी;
कुछ आगे चलकर आर्य प्राइमरी स्कूल आता है। इसकी स्थापना 1948-50 के आसपास हुई थी। मुझे इस बात का सौभाग्य प्राप्त है कि 1992 से 2004 तक लगातार 12 वर्षों तक इस स्कूल का मैनेजर रहे। स्कूल का मैनेजर वही होता था जो आर्य सीनियर सेकेंडरी स्कूल का मैनेजर होता था।
स्कूल के साथ बाईं ओर पुरानी हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी है, जो हरियाणा सरकार द्वारा बनाई गई पहली कॉलोनियों में से एक है। इसकी शुरुआत 1972-73 में हुई थी, जब लगभग 250 मकान बनाए गए और विभिन्न वर्गों के लोगों को आवंटित किए गए। इस सड़क को घाटी बार सड़क कहते हैं। थोड़ा आगे बाईं ओर एक सड़क मुड़ती है जो सीधी माईजी मोहल्ले को जाती है। दाहिनी ओर मुड़ने पर देवनगर आता है, जहां कॉर्नर पर पंजाब नेशनल बैंक की शाखा है।
परमहंस कुटिया, आध्यात्मिक केंद्र:
थोड़ा आगे बाईं ओर परमहंस कुटिया है। यह वह पवित्र स्थान है जहां बड़े-बड़े संन्यासी, साधु-संत और अन्य लोग ठहरते थे तथा प्रवचन देते थे। आज भी यह स्थान अत्यंत पवित्र माना जाता है। यहां रोजाना सुबह-शाम लोककथाएं और उपदेश होते हैं, जिनमें सैकड़ों लोग भाग लेते हैं। कुटिया के अंदर एक मंदिर, अतिथि गृह और छोटी गौशाला भी है।
सामने कायस्थ मोहल्ले की तलाई वाली सड़क जाती है, साथ ही एक छोटी गली घेर आराय्या, मोहल्ले में जाती है। कॉर्नर पर कबीर चौरा है, जो पुरानी जगह है। इसे स्वर्णकार कम्युनिटी ने स्थापित किया था, क्योंकि अधिकांश लोग कबीर संपर्दाय के अनुयायी थे। साथ ही स्वर्णकार धर्मशाला है, जो स्थानीय स्वर्णकारों द्वारा चलाई जाती है।
स्वर्णकार धर्मशाला से आगे:
स्वर्णकार धर्मशाला के साथ एक गली ऊपर चढ़ती है, जो एक ओर कायस्थ मोहल्ले और दूसरी ओर कुरेशियां मोहल्ले की ओर जाती है। यह गली टी-प्वाइंट पर समाप्त होती है। नीचे उतरकर बाईं ओर एस. डी मॉडर्न स्कूल है, जो शहर का पुराना स्कूल है। पहले इसका नाम बेबी स्कूल था और ठठेरान बाजार में एक छोटे मकान में स्थित था। अब यह विशाल रूप ले चुका है और नई बिल्डिंग बन रही है। सामने एस.डी. गर्ल्स स्कूल है।
दाहिनी ओर एक सड़क मस्जिद की ओर जाती है, जो कुरेशियां और कायस्थान मोहल्ले में मुड़ जाती है। बाहर निकलते ही किशोरी लाल डोगरा का बड़ा मकान है। यहां सड़क चौराहे में बदल जाती है: दक्षिण में ठठेरान मोहल्ले, उत्तर में माईजी मोहल्ले, पश्चिम में पुरानी गलियां।
सामाजिक सद्भाव और गेटों की परंपरा:
ये पुरानी गलियां हिंदू और मुस्लिम दोनों कम्युनिटीज के लोगों का निवास स्थान हैं, जो शांति, प्यार और भाईचारे से रहते हैं। घेर राइयां, सैनियों के बगड़ और कायस्थान मोहल्ले के मुख्य द्वारों पर गेट लगे हुए थे, जो दोनों तरफ थे। किसानी बिरादरी के लोग – हिंदू या मुस्लिम – समान पेशा, उपज और भाईचारा रखते थे। धर्म कभी बाधा नहीं बना।
लेखक का जन्म कायस्थान मोहल्ले में हुआ। उनकी माता सीता रानी सैनी का प्रभाव पूरे क्षेत्र में था। कायस्थान मोहल्ले की तलाई गली को लोग 'सीता रानी की गली' कहने लगे थे। इन गलियों में सभ्यता, भाईचारा, मिलन-सरिता और समान कार्य करने वालों की एकता है।
पानीपत का प्राचीन इतिहास:
ऐसा कहा जाता है कि एक समय यमुना नदी घाटी बार तक बहती थी, लेकिन अब वह पानीपत से 20 किलोमीटर पूर्व है। वे दिन बीत चुके, पर पानीपत का इतिहास अमर है। यह सफर शहर को एक नए नजरिए से देखने का अवसर देता है – विविधता में एकता की मिसाल।
Ram Mohan Rai, Advocate.
Panipat/15.11.2025
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