पानीपत की गलियां-9 (Khail Bazaar)

पानीपत की गलियां-9
(खैल बाजार)
पानीपत की पुरानी गलियों में सैर करना अपने आप में एक इतिहास की यात्रा है। मैं कलंदर चौक से शुरू करता हूँ, जहाँ से पीछे मुड़कर खैल बाज़ार की ओर निकलता हूँ। खैल—यह शब्द अपने आप में अनोखा है; इसका अर्थ है वह रास्ता जिसका केवल एक ही प्रवेश-निकास हो, यानी एकतरफा गली। बड़े बाज़ार की ओर मुड़ते ही बायीं तरफ खैल बाज़ार का संकरा प्रवेश द्वार दिखाई देता है। जैसे ही इसमें घुसते हैं, बायीं ओर एक छोटी लेकिन खुली गली नज़र आती है, जिसमें काफी रिहाइश है—पुराने मकान, छोटे-छोटे आँगन और लोगों की रोज़मर्रा की हलचल।

इसी गली से कुछ कदम आगे बढ़ते ही दायीं ओर ‘छत्ते वाली गली’ आती है। यह गली ऊँचाई पर चढ़ती हुई बड़ी पहाड़ से होती हुई पूरबियाँ घाटी में उतरती है, जहाँ से शहर का नज़ारा कुछ अलग ही दिखता है। इसके ठीक साथ वाली दूसरी गली पुरानी जामा मस्जिद है जिसके  पुरातत्व को सिखों ने सहेज कर रखा है और इसे गुरुद्वारा का स्वरूप दिया है. इस के पास ही  छोटी-छोटी गलियां  इधर-उधर घूमती हुई नकटो की पाड़ में जाकर बड़े बाज़ार में मिल जाती है।

खैल बाज़ार में आगे बढ़ते हुए दायीं तरफ आर्य समाज मंदिर आता है। इसकी स्थापना सन् 1957 में हुई थी— लाला बागमल ,मेरी माँ श्रीमती सीता रानी और अन्य आर्य समाजी बहनों ने मिलकर की थी। मंदिर के ठीक सामने श्री देवराज डावर का पुराना मकान है, जिसकी दीवारें आज भी उन दिनों की गवाही देती हैं। मंदिर के दूसरी तरफ एक आर-पार गली है, जो दोनों ओर से खुलती है और बाज़ार की रौनक को जोड़ती है।

खैल बाज़ार में थोड़ा और आगे बढ़ें तो बायीं ओर चढ़ाव मोहल्ला आता है। यह मोहल्ला विभाजन से पहले अधिकांश मुस्लिम परिवारों का था, लेकिन अब यहाँ पुरुषार्थी हिन्दू परिवार बसे हैं। पुराने समय से ही यहाँ सैनी और प्रजापत (कुम्हार) समुदाय के लोग रहते आए हैं। यहीं पर मिट्टी के बर्तन बनाने का चाक हुआ करता था—उसकी आवाज़, मिट्टी की सोंधी खुशबू, सब कुछ याद है। लेकिन समय के साथ सब बदल गया; अब चाक की जगह दुकानें हैं, और मिट्टी के बर्तनों की जगह प्लास्टिक ने ले ली है।

खैल बाज़ार आगे जाकर लाल मस्जिद रोड पर मिलता है, और फिर यह चौक सनौली रोड पर खुलता है। खैल बाज़ार में छोटी-छोटी दुकानें हैं—किराने की, मसालों की, कपड़े की—लेकिन इसके बाद वाली सड़क, जो अमर भवन चौक, सेठी चौक और लाल मस्जिद की ओर जाती है, अब हैंडलूम उत्पादों का केंद्र बन चुकी है। यहाँ हर समय ग्राहकों की भारी भीड़ रहती है—खरीदार, सौदागर, दुकानदारों की आवाज़ें, कपड़ों की चमक—सब कुछ मिलकर एक जीवंत बाज़ार बनाता है।

खैल बाज़ार और आर्य समाज मंदिर का मेरा गहरा नाता है। बचपन में माँ के साथ यहाँ आना मेरा नियमित काम था। मैं कह सकता हूँ कि अगर मेरी आँखों पर पट्टी बाँध दी जाए, तब भी मैं बिना किसी सहारे के यहाँ पहुँच जाऊँगा—हर मोड़, हर गली, हर दुकान की महक मेरे अंदर बसी है।

चढ़ाव मोहल्ले में माँ की सहेली श्रीमती धर्म देवी भाटिया रहती थीं, जिन्हें हम प्यार से ‘मासी’ कहते थे। उनका घर, उनकी बातें, चाय की चुस्कियाँ—सब कुछ आज भी जीवंत हैं।

यह खैल बाज़ार सिर्फ एक गली नहीं, मेरी यादों का आलम है—जहाँ हर कदम पर इतिहास साँस लेता है, और हर मोड़ पर बचपन मुस्कुराता है।
Ram Mohan Rai .
Panipat/01.11.2025
#panipat #khailbazar #rammohanrai

Comments

Popular posts from this blog

Gandhi Global Family program on Mahatma Gandhi martyrdom day in Panipat

Global Youth Festival, 4th day ,Panipat/05.10.2025. Sant Nirankari Mission/National Youth Project/Gandhi Global Family

पानीपत की बहादुर बेटी सैयदा- जो ना थकी और ना झुकी :