विश्व शांति की पुरोधा दीदी निर्मला देशपांडे

*01 मई को 13 वीं पुण्यतिथि पर विशेष*
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*बहन ,साथी और गुरु दीदी निर्मला देशपांडे*

(राम मोहन राय) 
  देश- विदेश के अपने प्रशंसकों, साथियों तथा अनुयायियों में 'दीदी' के नाम से प्रख्यात निर्मला देशपांडे का जन्म 17 अक्टूबर ,1929 को नागपुर (महाराष्ट्र) में प्रसिद्ध चिंतक ,मनीषी व राजनेता माता-पिता श्रीमती विमला बाई देशपांडे तथा श्री पुरुषोत्तम यशवंत देशपांडे के घर हुआ था। उनके पिता जहां इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक) के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर सुशोभित रहे, वहीं स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत की संविधान सभा के सदस्य रहे। माता भी मध्य भारत प्रांत की सरकार में मंत्री पद पर आसीन रहीं। बाद में देशपांडे  दंपत्ति ने राजनीति को सदा- सदा के लिए त्याग कर समाज सेवा तथा साहित्य सृजन का महत्वपूर्ण कार्य किया। परिवार में प्रारंभ से ही इतना खुलापन था कि कम्युनिस्ट नेता ई.वी.एस.   
नम्बदूरीपाद, श्रीपाद अमृत डांगे, समाजवादी नेता श्री राम मनोहर लोहिया,श्री अच्युत पटवर्धन, आर. एस. एस. के संस्थापक डॉ हेडगवार ,कांग्रेस नेता पंडित जवाहरलाल नेहरू, पंडित रवि शंकर शुक्ल, श्री द्वारिका प्रसाद मिश्र तथा बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर सरीखे नेता न केवल यदा-कदा आते थे अपितु  माता-पिता के सानिध्य में बालिका निर्मला को भी उनसे वार्तालाप करने का अवसर मिलता था और इसी वातावरण में 'दीदी' विकसित हुई । नागपुर से  ही उन्होंने राजनीति  शास्त्र में एम. ए .की डिग्री प्राप्त की तथा मोरिस कॉलेज, नागपुर में राजनीति विज्ञान की प्राध्यापिका के रूप में कार्य किया।     
       निर्धन, दलित, उत्पीडित तथा महिलाओं की सेवा की तड़फन उनमें सदा रही। इसलिए अपना घर -परिवार तथा व्यवसाय त्याग कर संत विनोबा भावे से प्रेरित होकर वह संत विनोबा भावे के पवनार स्थित आश्रम में चली आईं  तथा बाद में सन 1952 से प्रारंभ 'भूदान यात्रा ' में शामिल हो गई तथा संत विनोबा भावे के साथ लगभग 40000 किलोमीटर की पदयात्रा की। यह दीदी का ही पराक्रम था कि उन्होंने समूची यात्रा में विनोबा जी के प्रवचनों को पुस्तक रूप में संग्रहित कर उसका संपादन किया, जो 'भूदान गंगा' के नाम से कई खंडों में प्रकाशित हुआ। बाबा विनोबा की यात्रा की ही प्रेरणा थी कि उन्हें 40 लाख एकड़ जमीन दान में प्राप्त हुई, जिसे गरीब और भूमिहीनों में बांटा गया ।स्वतंत्र भारत में यह पहला सत्याग्रह था, जिसने उन्हें अहिंसक क्रांति के लिए एक आंदोलन खड़ा करने के लिए प्रेरित किया। संत विनोबा की मानस पुत्री के नाम से प्रख्यात दीदी का संपूर्ण जीवन उन्हीं उद्देश्यों,
 सिद्धांतो तथा कार्यों को समर्पित था, जो उनके गुरु- पिता संत विनोबा भावे जी के द्वारा दीक्षा में दिए गए थे। संत विनोबा द्वारा अपने गुरु महात्मा गांधी के कार्यों के प्रति समर्पित 'शांति सेना' की वह कमांडर बनी। तत्पश्चात शांति सेना विद्यालय, कस्तूरबा ग्राम, इंदौर की वह निर्देशिका बनीँ  तथा इस विद्यालय  के सैकड़ों युवा, महिलाओं व पुरुषों ने अपने संपूर्ण जीवन को गांधी -विनोबा के अहिंसक क्रांति के सिद्धांतों के लिए अर्पित करने का संकल्प लिया।
             सन 1977 में जब श्रीमती इंदिरा गांधी सत्ताच्युत हो गई तब दीदी उनके दुर्दिन के दिनों में 1977- 80 तक एक साथी , मित्र व सचिव के रूप में साथ रहीं तथा इन्हीं दिनों वह महात्मा गांधी द्वारा स्थापित हरिजन सेवक संघ की अध्यक्षा बनीं  तथा गांधी आश्रम किंग्सवे कैंप, दिल्ली ही उन्होंने अपने कार्यों का केंद्र बिंदु बनाया। इसी दौरान अपने अन्य साथियों के साथ मिलकर अखिल भारत रचनात्मक समाज की स्थापना की। सन 1984 में, पंजाब में आतंकवाद जब चरम सीमा पर था तो उन्होंने अपने सैकड़ों साथियों के साथ पंजाब के गांव- गांव की पदयात्रा की तथा वहाँ शांति का संदेश दिया और फिर जम्मू- कश्मीर हो अथवा पूर्वोत्तर राज्य, बिहार में नक्सलवाद हो अथवा महाराष्ट्र में हिंसा, दीदी वहां- वहां अपने चंद  साथियों के साथ निकल पड़ती थीं।   
          6 दिसंबर, 1992 को जब कट्टरपंथी हिंदू संगठन अयोध्या में बाबरी मस्जिद को तोड़ने में लगे थे,तब वह दीदी ही थीं  जो अकेली ही 'उन्हें रोको ,उन्हें रोको' का शोर मचा रही थीं और इसी तरह गुजरात में भी मुसलमानों के नरसंहार पर वह अगले ही दिन  अपने साथियों के साथ पहुंची तथा पीड़ितों के जख्मों पर मरहम लगाने का काम किया। 
             दीदी के सब कार्य तो विलक्षण थे -पड़ोसी देश चीन की जनता व सरकार से मैत्री की कोशिश ,वहीं तिब्बत की मुक्ति साधना का समर्थन, पाकिस्तान की जनता से दोस्ती, वही जम्मू कश्मीर में शांति प्रयास, सांझी विरासत तथा सर्व धर्म समभाव के कार्यों का विस्तार तथा बे -जमीन के लिए शांतिपूर्ण अहिंसक संघर्ष। पाकिस्तान की जनता से दोस्ती का कार्य उनका सबसे प्रिय लोकप्रिय कार्य रहा।इसलिए वह अनेक बार पाकिस्तान गईं तथा जनता के स्तर पर मैत्री स्थापित करने के अनेक कार्य किए।  दक्षिण एशिया में महिलाओं की शांति के लिए' पहल' की वह प्रवर्तिका रही तथा उनके नेतृत्व में पाकिस्तान तथा बांग्लादेश में महिलाओं के शांति दल गए ।भारत और पाकिस्तान में संबंध सामान्य बनाने की पहल के तहत उन्होंने दोनों देशों के सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों के एक संगठन
'इंडो पाक सोल्जर इनिशिएटिव फॉर पीस इन इंडिया एंड पाकिस्तान 'की स्थापना की। बेशक इस संगठन के सदस्य दोनों देशों के सैन्य अधिकारी थे, जो भारत-पाक के बीच  तीन युद्धों में एक-दूसरे के विरुद्ध आमने-सामने लड़े थे, परंतु इस संगठन के भारत व पाक चैप्टर की अध्यक्षा, एक शांति सैनिक स्वयं दीदी ही थीं।     
       नोबेल शांति पुरस्कार विजेता 'आंग सान सू की', के नेतृत्व में म्यांमार (बर्मा) में लड़े जा रहे जनतांत्रिक संघर्ष की वह  प्रबल समर्थक थीं तथा बर्मी शरणार्थियों तथा लोगों के लिए उन्होंने हर संभव कार्य किया।
      राजीव गांधी सद्भावना पुरस्कार तथा पदम विभूषण सम्मान से सम्मानित निर्मला देशपांडे को दुनिया भर के अनेक सम्मानों व पुरस्कारों से विभूषित किया गया। उनकी मृत्यु के पश्चात पाकिस्तान सरकार ने भी उन्हें अपने शांति व मैत्री सम्मान सितारा -ए- इन्तियाज
 से नवाजा है।   
               अपने यात्रा वृत्तांत को उन्होंने एक चीनी महिला यात्री की कहानी के रूप में 'चिंगलिंग '   उपन्यास के रूप में लिखा । साहित्य की इस विशाल यात्रा में उन्होंने अनेक पुस्तकों की रचना की। अपने गुरु- पिता विनोबा भावे की जीवनकथा लिखकर साहित्य जगत को एक अमूल्य भेंट की। दीदी हिंदी पाक्षिक' नित्य नूतन' की जीवन पर्यंत संपादक रहीं तथा इसी पत्रिका को अपने वैचारिक सन्देश  प्रसारित-प्रसारित करने का माध्यम बनाया। पहली बार सन 1997 -1999 तथा दूसरी बार सन 2004 में, भारत के राष्ट्रपति जी ने उन्हें एक विशिष्ट सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में, राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया। उनका नाम भारत के राष्ट्रपति पद के लिए भी लिया गया ,परंतु सत्ता का मोह उनमें दूर-दूर भी नहीं था। इस पर मजे की बात यह थी कि उन्होंने अपने गुरुपिता विनोबा भावे को दी गई वचनबद्धता के कारण कभी भी किसी भी प्रकार के चुनाव में मतदान नहीं किया। क्योंकि विनोबा कहा करते थे कि मतदान में जिसे थोड़ा सा भी बहुमत मिलेगा, उसे सौ प्रतिशत अधिकार रहेगा और जो बहुमत से थोड़ा सा भी चूक गया, उसकी कीमत शून्य रह जाएगी। विश्व शांति के निमित्त उन्होंने देश-विदेश की सघन यात्रा की। अपनी इसी यात्रा को जारी रखते हुए एक मई ,2008 को प्रातः काल दिल्ली में अपने आवास में इस यात्री ने अपनी जीवन यात्रा को पूर्णता दी।
                जय जगत
राम मोहन राय
पानीपत/ 01. 05.2020
(Nityanootan Broadcast Service)

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