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Showing posts from December, 2021

Leave Tension-Enjoy Pension

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         मेरे समधी(मेरी पुत्रवधु आकांक्षा भारद्वाज के पिता) पटियाला निवासी श्री बृजभूषण भारद्वाज लगभग 36 वर्षों तक नेता जी सुभाष नेशनल स्पोर्ट्स अकादमी ,पटियाला में बतौर सिविल इंजीनियर पद पर काम कर आज सेवानिवृत्त हो गए है । आज जहाँ उनके संस्थान में उन्हें अभिनन्दन पत्र ,स्मृति चिन्ह, उपहार देकर व पुष्पमालाओं से लाद कर उन्हें विदाई की गई वहीं उनके गए पहुंचने पर उनकी सासु माँ पुष्पा जोशी ,पत्नी अरुण भारद्वाज व पुत्र कर्ण ,पुत्री आकांक्षा ,दामाद उत्कर्ष राय सहित मेरी पत्नी व मैने स्वागत किया । बहुत ही मार्मिक वातावरण रहा ।     श्री भारद्वाज के पिता प0 मन मोहन सिंह जी व माता सत्यभामा ने उन्हें अच्छी से अच्छी शिक्षा देकर विकसित किया । उनके दादा प0 सन्तराम जी शास्त्री भी संस्कृत भाषा के मर्मज्ञ थे व राजघराने के पुरोहित थे ।अपने उन्ही संस्कारो से ओतप्रोत होकर इनका शिक्षण-प्रशिक्षण हुआ । पटियाला के ही एस डी सीनियर सेकेंडरी स्कूल में प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त कर वे इंजीनियरिंग कर स्पोर्ट्स इंस्टिट्यूट में सिविल इंजीनियर की नौकरी पर लग गए ।  श्री भारद्वाज स्वयं भी क्रिकेट, टेबल टेनिस व बिलियर्ड

Death anniversary of Hali Panipati

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 हाली पानीपती ट्रस्ट की ओर से विश्वविख्यात शायर एवं समाज सुधारक मौलाना ख्वाजा अल्ताफ हुसैन हाली की 108वीं पुण्यतिथि के  अवसर पर हाली अपना स्कूल में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर अपने विचार प्रकट करते हुए हाली अपना स्कूल  की मुख्य अध्यापिका पूजा सैनी ने कहा कि हाली पानीपती एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने न केवल तत्कालीन अपितु वर्तमान सन्दर्भों की समस्याओं के बारे में अपनी कविताओं एवम गजलों के माध्यम से सन्देश दिया। वे वर्तमान की बात करते थे। इसलिए उन्होंने अपना तख्खलुस हाली अर्थात वर्तमान रखा। उर्दू शायरी में उन्होंने श्रृंगार , प्रेम और प्रेमकथाओं को न कहकर मजदूर, किसान एवम आमजन की बात की। हिंदी साहित्य में समालोचक के रूप में जिस तरह से भारतेंदु हरिश्चंद्र का नाम है, उसी रूप में उर्दू अदब में हाली की ख्याति है। महिलाओं के उत्थान एवम सशक्तिकरण में उनका नाम महात्मा ज्योतिबा फूले, सावित्रीबाई फूले, नारायण स्वामी, राजा राम मोहन राय, महर्षि दयानन्द सरस्वती एवम ईश्र्वर चन्द्र विद्यासागर की श्रंखला में है। लगभग 150 वर्ष पूर्व उन्होंने महिलाओं की शिक्षा एवं सशक्तिकरण के लिए न केवल गजलो

नफरत और संकीर्णता एक ही सिक्के के दो पहलू है

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 मैं तो यहां पानीपत में आर्य शिक्षण संस्थानों का मैनेजर रहा हूँ । मैं वहाँ हाली, भगतसिंह और अम्बेडकर की बात करता । आर्य स्कूल में कुल 2000 विद्यार्थी थे जिसमें से लगभग 89 मुस्लिम थे । एक दिन वे मेरे पास आए और बोले कि मैनेजर साहब हमारे स्कूल में ईद की छुट्टी नहीं होती । मैंने यह सुन कर कहा की छुट्टी ही क्यों इस बार तो रोजा इफ्तारी भी आपको स्कूल में कराएंगे। रोजा इफ्तारी हुई, मुझे यह नहीं पता था कि इसके बाद नमाज भी अता की जाती है।  नमाज स्कूल के पिछले आहाते में पढ़ाई गई। इत्तेफाक से वहां अखबारों के नुमाइंदे पहुंच गए, उन्होंने फोटो खींची और अगले दिन अखबारों की सुर्खियां थी कि आर्य स्कूल पर मुसलमानों ने कब्जा कर लिया है। इसी इल्ज़ाम में मुझे हटा दिया गया। बाद में मुझे कहा गया कि मैं माफी मांगू । मैंने कहा कि मैं न तो माफी मांगूगा और ना ही अपनी कोई कमजोरी जाहिर करूंगा । आप जो चाहे कर ले ।      नफरत और संकीर्णता एक ही सिक्के के दो पहलू है । जो यहां भी है और वहाँ भी ।  राम-रहीम तो एक ही है फिर उनके मानने वालों में तफरका क्यों? राम मोहन राय 30.12.2021

Support for enlightment Yatra

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  *यात्रा के सभी साथियों पर गर्व है । मेरा अज़ीज़ मुबशशिर -एक सच्चा मुसलमान* ।     मैं जन्म से ही आर्य समाजी परिवार से हूं यानी एक मूर्तिपूजक विरोधी हिन्दू ।परन्तु अपनी दृढ़ धार्मिक आस्था के बावजूद भी मैने कभी भी किसी अन्य धर्म स्थल पर जाने में गुरेज नही किया । मैने अपने नियमो का पालन करते हुए भूल से भी किसी अन्य धर्म की पद्धति ,कर्मकांड व परम्परा का मज़ाक नही किया ।       आदरणीय सुब्बाराव जी सर्वधर्म आस्था के सर्वोत्तम प्रतीक थे पर वे थे कट्टर सनातनी हिन्दू । उनकी मृत्यु के पश्चात हिन्दू तौर तरीके से ही उनकी अंत्येष्टि की गईं तथा अंत मे हरिद्वार -ऋषिकेश में अंतिम अवशेषों को गंगा में विसर्जित करने का दायित्व हमने संभाला । यह बड़ी मुश्किल घड़ी थी । मेरी आस्था मूर्तिपूजक नही है पर दायित्व पौराणिक था इसके बावजूद भी इस कर्मकांड को हमने अपने साथियों के साथ निभाया । इस यात्रा में हमारा एक युवा मित्र भी साथ रहा और उसका नाम था मुबशशिर खान ।     मुबशशिर ज़िला शामली के गढ़ी अब्दुल्ला का युवक है । तीन दिन में हम सभी उसके व्यवहार व क्रियाकलाप से प्रभावित रहे । अत्यंत सहयोगी व मृदुभाषी । हम जब धार्मिक अनुष

सर्वोदय ऋषि को अंतिम विदाई

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 *ऋषिकेश में सुब्बाराव जी को अंतिम विदाई* ।       भाई जी सुब्बाराव अत्यंत स्नेही व सभी के लिए पितृतुल्य थे ।  राष्ट्र यज्ञ मे ही अपने जीवन रूपी समिधा की आहुति दे दी व अंत में देवत्व की प्राप्ति की । उनके जन्मस्थान बेंगलुरु (कर्नाटक) से प्रारम्भ उनकी यात्रा सम्पूर्ण विश्व के स्थान-२ पर जय जगत का उद्घोष करते हुए अपनी इच्छामृत्यु को प्राप्त कर  जयपुर (राजस्थान) में समापन किया । अंत में शरीर की पूर्णाहुति जौरा (मध्यप्रदेश) में हुई और अंतिम विसर्जन आज ऋषियों की धरती ऋषिकेश में उनके अत्यंत अनुरागी सन्त स्वामी चिदानंद जी मुनि महाराज के सानिध्य में उनके परमार्थ निकेतन आश्रम में इस सर्वोदय ऋषि की जीवनदायिनी गंगा में सद्गति की प्राप्ति हुई ।      आदरणीय भाई जी अपने कार्यो की वजह से जिस सम्मान व प्रतिष्ठा के सर्वत्र अधिकारी थे उस को उन्होंने अपनी मृत्यु के पश्चात भी यहाँ प्राप्त किया । श्री गंगा जी के घाट पर पूर्ण वैदिक अनुष्ठान के साथ उनकी अस्थि कलश का विसर्जन हुआ ।        ऋषिकेश में त्रिवेणी घाट पर महात्मा गांधी स्मारक जहाँ सन 1948 में पूज्यपाद महात्मा जी की अंतिम भस्म को दर्शनार्थ रखा गया था व

Mewat Day Program in Nagina

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  राम मोहन राय (महासचिव, गांधी ग्लोबल फैमिली) मुझे आज बेहद खुशी है कि आज के इस ऐतिहासिक मौके पर पूरी दुनिया के गांधी बिरादरी के लोगों की ओर से मैं  आपका खैर मकदम करने के लिए हाजिर हुआ हूं। यह बहुत ही खुशगवार दिन है कि इसी रोज सन 1947 को महात्मा गांधी जी ने, जिन्हें आप बहुत ही मोहब्बत और एहतराम से गांधी बाबा कह कर बुलाते हैं। वे मौलाना आजाद    और चौधरी अब्दुल हई  के बुलावे पर घसेड़ा आए थे। महात्मा गांधी मेवों की जद्दोजहद और उनकी बहादुरी की ताकत से बखूबी वाकिफ थे और हो भी क्यों न, आपने बाबर के खिलाफ जिस जज्बे से लड़ाई लड़ी, वह बेहद काबिले तारीफ है और पूरी दुनिया उसे सजदा करती है। सन 1857 के इंकलाब के समय वह आपकी ही कौम थी, जिसने सीना सफर होकर अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ अपने मुल्क की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी थी। इस इलाके का कोई ऐसा घर नहीं होगा जिस घर से कोई मर्द शहीद न हुआ हो। आपके गांव के गांव उजाड़ दिए गए, आपकी जायदाद को नुकसान पहुंचाया गया, आग लगाई गई, आपकी नौकरी और भर्ती पर भी पाबंदी लगाई गई, पर एक भी मेव ने सिर झुका कर अंग्रेजी हुकूमत को तसलीम नहीं किया। यह आपका ही ज़ज्बा था कि उसके