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निंदनीय ट्रेंड और सामाजिक नैतिकता का पतन

निंदनीय ट्रेंड और सामाजिक नैतिकता का पतन आज के दौर में, जहाँ तकनीक और संचार के साधनों ने हमें एक-दूसरे से जोड़ा है, वहीं कुछ निंदनीय प्रवृत्तियाँ भी समाज में अपनी जड़ें जमा रही हैं। देशभर में एक नया ट्रेंड उभर रहा है, जो अश्लीलता, गालियों और असभ्य व्यवहार से भरा हुआ है। यह प्रवृत्ति न केवल हमारी सामाजिक मर्यादाओं को चुनौती दे रही है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक और नैतिक नींव को भी हिलाने का काम कर रही है। सबसे दुखद बात यह है कि इस ट्रेंड में न केवल आम लोग, बल्कि समाज के कुछ प्रभावशाली लोग, जैसे राजनेता, भी शामिल हो रहे हैं। यह देखकर मन में निराशा और चिंता दोनों ही उभरती हैं। सबसे अधिक चिंता का विषय है कि इस अश्लीलता और असभ्यता की लहर में माँ, बहन, बेटी जैसे पवित्र रिश्तों को भी नहीं बख्शा जा रहा। यह समाज का वह पतन है, जहाँ हम अपने ही मूल्यों को भूलकर एक-दूसरे को नीचा दिखाने में लगे हैं। इससे भी अधिक शर्मनाक है कि कुछ लोग राजनेताओं की पत्नियों या परिवार की महिलाओं के पहनावे को निशाना बनाकर उसे भारतीय संस्कृति के खिलाफ बताने लगते हैं। क्या भारतीय संस्कृति केवल कपड़ों तक सीमित है? क्या हमारी स...

■नेपाल का सबक:बोया और काटा का सिद्धांत

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■नेपाल का सबक:बोया और काटा का सिद्धांत        ●भारतीय संस्कृति में एक प्राचीन मान्यता है कि 'जैसा बोओगे, वैसा काटोगे'। यह सिद्धांत न केवल व्यक्तिगत जीवन पर लागू होता है, बल्कि राष्ट्रों और समाजों के निर्माण तथा विकास पर भी। हाल के वर्षों में हमने इसकी सच्चाई को अपने पड़ोसी देशों में साकार होते देखा है। कुछ दिनों पहले बांग्लादेश में हुई अशांति, उससे पहले पाकिस्तान और श्रीलंका में उथल-पुथल, और अब नेपाल में जारी संकट—ये सभी घटनाएं हमें यही सिखाती हैं कि हिंसा और नफरत के बीज से उगने वाला कोई भी पेड़ लंबे समय तक फलदायी नहीं रह सकता। प्रश्न उठता है: क्या बोया गया और क्या काटा जा रहा है? आइए, इस पर गहराई से विचार करें।       ●पाकिस्तान का जन्म ही द्विराष्ट्र सिद्धांत पर आधारित था, जो हिंसा और नफरत की नींव पर खड़ा किया गया। सांप्रदायिक उन्माद को जिस तरह फैलाया गया और ध्रुवीकरण किया गया, उसकी परिणति हमें पाकिस्तान में मिली। बाद में, यही बीज बांग्लादेश में भी फूट पड़े। इतिहास हमें बताता है कि हिंसा पर आधारित कोई भी व्यवस्था स्थायी नहीं रह सकती। कारण स्पष्ट है: ज...

पानीपत की बहादुर बेटी सैयदा- जो ना थकी और ना झुकी :

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पानीपत की बहादुर बेटी सैयदा- जो ना थकी और ना झुकी : ●पानीपत, एक ऐतिहासिक भूमि, न केवल अपने युद्धक्षेत्र के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि उन महान व्यक्तित्वों के लिए भी जो इसकी मिट्टी से उपजे और समाज को नई दिशा दी। ऐसी ही एक शख्सियत हैं सैयदा हमीद, जिन्होंने इंसानियत और उत्पीड़ित महिलाओं के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया। उनकी कहानी साहस, समर्पण और देशभक्ति की मिसाल है।  ●एक गौरवशाली विरासत: सैयदा का परिवार लगभग 800 वर्ष पहले पानीपत में आकर बसा था। उनके परदादा, ख्वाजा अल्ताफ हुसैन हाली, न केवल पानीपत के गौरव थे, बल्कि विश्व स्तर पर अपनी शायरी और समाज सुधार के कार्यों के लिए विख्यात थे। उनकी कालजयी रचनाएँ आज भी साहित्य प्रेमियों के दिलों में बसी हैं। सैयदा के मामा, ख्वाजा अहमद अब्बास, स्वतंत्रता संग्राम के नायक थे। उन्होंने न केवल आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया, बल्कि प्रगतिशील लेखक संघ और भारतीय जन नाट्य संघ (IPTA) की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया। गुलाम भारत में जन्मे इस परिवार ने आजादी के बाद भी पाकिस्तान जाने के बजाय भारत को चुना और यहाँ साहित्य, पत्रकारिता और फिल्म उ...

Morena's Immortal Martyr Pandit Ram Prasad Bismil Museum: An Unforgettable Travelogue/12.08.2025

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  मुरैना के अमर शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल संग्रहालय: एक अविस्मरणीय यात्रा वृतांत       मैंने कभी सोचा नहीं था कि मध्य प्रदेश की धरती पर इतनी गहराई से इतिहास और स्वतंत्रता संग्राम की कहानियां छिपी होंगी। अगस्त 2025 की एक धूप भरी दोपहर थी, जब मैं मुरैना से जौरा की ओर अपनी कार से यात्रा कर रहा था। सड़कें चंबल की घाटियों से गुजरती हुईं, हरे-भरे खेतों और पुरानी इमारतों के बीच से निकल रही थीं। अचानक, रेलवे रोड पर एक साइनबोर्ड ने मेरा ध्यान खींचा – "अमर शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल संग्रहालय"। नाम सुनते ही मन में एक उत्सुकता जागी। राम प्रसाद बिस्मिल, वह क्रांतिकारी कवि और स्वतंत्रता सेनानी जिन्होंने काकोरी कांड में अपनी जान की बाजी लगा दी थी। मैंने कार रोकी और सोचा, क्यों ना इसमें घूम लिया जाए? यह निर्णय मेरी यात्रा का सबसे यादगार हिस्सा बन गया। यदि आप भी मुरैना क्षेत्र में हैं, तो इसे छोड़ना मत – यह न केवल इतिहास की किताबों को जीवंत करता है, बल्कि राष्ट्रभक्ति की एक नई लहर पैदा करता है।   संग्रहालय रेलवे रोड पर स्थित है, पुलिस लाइन के पास,...

Interview: With Bahadur Singh, Who Abandoned Violence to Embrace the Path of Non-Violence/13.08.2025

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□साक्षात्कार: बहादुर सिंह के साथ, जिन्होंने हिंसा छोड़कर अपनाया अहिंसा का मार्ग ●स्थान: जौरा, मध्यप्रदेश, महात्मा गांधी सेवा आश्रम*   तारीख: 13 अगस्त, 2025 ■प्रश्न: बहादुर सिंह जी, आपकी जिंदगी में एक समय ऐसा था जब आप दस्यु जीवन जी रहे थे। उस जीवन से निकलकर आज आप इस आश्रम में सेवा कर रहे हैं। यह बदलाव कैसे आया? ●बहादुर सिंह: यह सब भाई जी सुब्बाराव जी की प्रेरणा और उनके अथक प्रयासों का नतीजा है। 14 अप्रैल, 1972 का वह दिन मेरे जीवन का सबसे बड़ा मोड़ था। उस दिन भाई जी हमारे बीच आए थे। हम, जो उस समय हिंसा और बगावत के रास्ते पर थे, उनके सामने नतमस्तक हो गए। भाई जी ने बड़े प्यार से, "मैं आया हूं दरबार तुम्हारे" भजन गाया। उस भजन ने हमारे दिलों को पिघला दिया। उनकी आवाज में एक ऐसी सादगी और सच्चाई थी कि हमें लगा, यह इंसान हमारा भला चाहता है। फिर,  मोहर सिंह और तहसीलदार सिंह जी के साथ हम 657 बागियों ने मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी, संत विनोबाजी और लोकनायक जय प्रकाश नारायण के सहयोग से आत्मसमर्पण किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी ने भी इस प...

An Unforgettable Experience in the Sacred Land of Jaura, the Karambhumi of Bhai Ji Subbarao .12-13/08/2025

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भाई जी सुब्बाराव की पुण्यभूमि जौरा में एक अविस्मरणीय अनुभव      ● 2 अक्टूबर से 7 अक्टूबर, 2025 तक पानीपत में प्रस्तावित ग्लोबल यूथ फेस्टिवल की तैयारियों के लिए आयोजित बैठक में भाग लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस विशेष अवसर पर मुझे भाई जी सुब्बाराव की कर्मभूमि और पुण्यभूमि, जौरा (मुरैना, मध्यप्रदेश) में उनके द्वारा स्थापित गांधी सेवा आश्रम आने का मौका मिला। यह स्थान न केवल उनकी स्मृतियों का केंद्र है, बल्कि उनके विचारों, आदर्शों और सेवा भाव का जीवंत प्रतीक भी है। यही वह स्थान है जब 1971-72 में 14 अप्रैल के दिन 654 बागियों (डाकुओं)ने भाई जी के सामने आत्मसमर्पण किया था और वे अहिंसा की मुख्य धारा में शामिल हुए थे. इन्हीं आत्मसमर्पण करने वालों ने सुब्बाराव जी को पहली बार "भाई जी" कह कर संबोधित किया था.      ●डॉ. भाई जी सुब्बाराव एक ऐसे युगपुरुष थे, जिन्होंने अपने जीवन को सामाजिक उत्थान, युवा जागरण और गांधीवादी मूल्यों के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर दिया। उनका जन्म साधारण परिस्थितियों में हुआ, किंतु उनकी असाधारण सोच और कर्...

A new era of beginning of India-China relations- the need of the hour

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■भारत-चीन संबंध: शांति, सहयोग और समृद्धि की ओर एक कदम    ●प्रधानमंत्री की प्रस्तावित चीन यात्रा और इसका महत्व : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रस्तावित चीन यात्रा भारत-चीन संबंधों के लिए एक ऐतिहासिक कदम है। यह न केवल दोनों देशों के बीच विश्वास और सहयोग को बढ़ाएगी, बल्कि वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए भी एक सकारात्मक संदेश देगी। भारत और चीन, दो प्राचीन सभ्यताएं और विश्व की सबसे बड़ी जनसंख्या वाले पड़ोसी देश, भौगोलिक, आर्थिक, सामाजिक और सामरिक दृष्टिकोण से एक-दूसरे के पूरक हैं। पड़ोसियों को बदला नहीं जा सकता, इसलिए मैत्रीपूर्ण संबंध न केवल अपरिहार्य हैं, बल्कि वैश्विक परिस्थितियों में अनिवार्य भी हैं। ●वैश्विक परिदृश्य और भारत-चीन-रूस त्रिकोण:      वर्तमान वैश्विक मंच पर भारत, चीन और रूस के बीच नए समीकरण उभर रहे हैं। यह त्रिकोणीय सहयोग एशिया को सशक्त बनाने और विश्व शांति की गारंटी बन सकता है। अमेरिका की कमजोर आर्थिक स्थिति और उसकी मनमानी नीतियों, जैसे टैरिफ वृद्धि और दबाव की रणनीति, ने कई देशों को वैकल्पिक साझेदारियों की ओर प्रेरित किया है। ऐसे में भा...