खुदाई ख़िदमतगार

*महान स्वतन्त्रता सैनानी ,राष्ट्र नायक खान अब्दुल गफ्फार खान (बादशाह खान-सीमांत गांधी) की पुण्य तिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि*
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(Nityanootan Broadcast Service)
 *खुदाई खिदमतगार* !            💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐सम्भवतः यह बात27-28 जुलाई,1987 की है ,दीदी निर्मला देशपांडे के कहने पर मैने पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी ज़ैल सिंह जी के निवास पर फोन कर उनसे दीदी की मुलाकात का समय माँगने के लिए किया था । वह मेरे लिये बहुत ही रोमांच करने वाला वाक्या था । ज्ञानी जी  दो एक दिन पहले ही राष्ट्रपति पद से सेवा निवृत हुए थे तथा राष्ट्रपति भवन से अपने नए निवास पर स्थानांतरित हुए थे ।  दीदी ने कहा था कि वहाँ  उनका कोई पी ए फोन उठाएगा तब उनके रेफरेंस से मै समय मांगू । मेरे फोन मिलाने पर उधर से आवाज आने  पर अपना प्रयोजन बताया तो आवाज आई 'मै ही ज़ैल सिंह बोल रीआ  हां '। मेरी तो सिट्टी पिट्टी गुम । खुद ज्ञानी ज़ैल सिंह जी ही बोल रहे थे । मैने फिर हिम्मत जुटाई और अपनी बात कही तो उन्होंनेकहा कि 'यदि टाइम हो तो अभी आ जाओ '। मैने शुक्रिया कह कर फोन रख दिया । सारी बात मैने दीदी को दरयाफ़्त कि तो वे बोली क्या मेरी सचमुच ज्ञानी जी से ही बात हुई है । मैने तो ज्ञानी जी की वाणी को टेलीविज़न पर उनके  राष्ट्रपति रहते 'राष्ट्र के नाम सन्देश ' पर ही सुना था  । पर मै उनकी आवाज में पंजाबी भावो को समझता था, मैने दीदी से भरोसे से कहा कि वे ज्ञानी जी ही थे जिनसे मेरी बात हुई थी । दीदी तैयार हुई व मुझे साथ लेकर अपने पंडारा रोड घर से ज्ञानी जी के नए निवास रायसीना रोड पर पहुची । घर में पूर्व राष्ट्रपति जी शिफ्ट तो हो गए थे परन्तु व्यवस्थाएं पूरी न थी ऐसा लग रहा था मानो अपने राष्ट्रपति पद पर रहते कार्यो की वजह से किसी विद्वेष का शिकार हो । घर में भी बिजली व अन्य फिटिंग का काम भी उनके पारिवारिक युवा ही कर रहे थे ।  दीदी उनसे मुलाकात के लिए भीतर चली गयी तथा मैने बाहर के कमरे में बैठ कर इंतजार की । कुछ समय बाद मैने देखा कि ज्ञानी जी व दीदी बाहर आ रहे है  । एक दिव्य पुरुष जिसके मुख मण्डल पर विशाल आध्यात्मिक औज ,क्रीम रंग का कोट   जिसपर गुलाब  का फूल लगा था -ज्ञानी जी के रूप में था । मैने साहस किया तथा पंजाबी ढंग से उनका "पैरी पौना"(चरण स्पर्श)किया उन्होंने भी आशीर्वाद देते हुए कहा 'जिन्दे रहो' और हम उनके साथ चल दिए । वे कार में अगली सीट पर बैठे  ,दीदी व मै पिछली सीट पर । हम कहाँ जा रहे है? यह पूछने का साहस मै नही कर पा रहा था । मै तो रोमांचित था कि ज्ञानी जी के साथ उनकी गाड़ी में बैठा हूँ । दीदी की एक बहुत बड़ी खासियत थी कि किसी की पद प्रतिष्ठा के समय में वें उनसे मिलती या नही मिलती परन्तु उनके हटने पर अथवा बुरे दिनों में उनके साथ जरूर रहती  इसी भाव से वे ज्ञानी जी से मिलने आई थी । कुछ देर के बाद गाड़ी एम्स में जाकर रुकी और पूर्व सुचना के कारण ज्ञानी जी को वहाँ के अधिकारी उन्हें अंदर लेगये ,हम भी उनके  पीछे पीछे थे । ज्ञानी जी को उस कमरे में ले जाया गया जहाँ मेरा भी एक जाना पहचाना चेहरा जिसे खूब अखबारो में देखा था और जो अपने इलाज के लिये एम्स में दाखिल था ,को पाया । मेरे रोंगटे खड़े हो गए उन्हें देख कर । वे थे महात्मा गांधी के परम मित्र जिन्हें लोग उन्ही के नाम से जानते थे 'खान बादशाह -सरहदी गांधी -फ्रंटियर गांधी -बच्चा खान -खान अब्दुल गफ्फार खान । पुरे एक बड़े पलंग पर छोटा पड़ने वाला एक विशालकाय व्यक्तित्व । खान बादशाह अपनी अंतिम अवस्था में थे । शरीर में चेतनता शून्य प्रायः थी  पर अर्द्ध चेतन अवस्था की छटपटाहट में एक ही शब्द बोले जा रहे थे ' यह क्या हो गया गांधी के देश को ' । उनके।एक हाथ की हथेली को ज्ञानी जी व दूसरी को दीदी पकड़े हुए थे और उनके पास भी छटपटाहट भरे सवाल का कोई जवाब न था ।

 हम सब गमगीन थे उस गांधी के चेहरे को देख कर  जिसने लड़ाके पठानों को अहिंसा का सबक सिखाया  तथा उन लड़ाकों का 'लाल कुर्ती '  दस्ता बना कर साम्राज्यशाही से लड़ा । जिसने न केवल अंग्रेज की यातना सही अपितु आज़ादी के बाद पाकिस्तान में भी विद्वेष व दमन का शिकार रहा । जो गांधी जी के साथ खड़ा हो कर भारत विभाजन की मुखालफत करता रहा व आखिरी समय तक भारतीय सत्ताशीनो को उलाहना देता रहा कि उन्हें किन दरिंदो के सामने फेंक दिया । आज उस शेर की दयनीय अवस्था  देखी नही बन पा रही थी परन्तु मन में यह सन्तोष भी था कि दीदी के कारण आज दो स्वतन्त्रता सेनानियों के नजदीक जा पाया । खान साहब की प्रेरणा ही दीदी को रही होगी कि दीदी ने अपने शेष जीवन को भारत -पाकिस्तान की जनता के सम्बन्धो  को बेहतर बनाने में लगाया ।

राम मोहन राय

(नित्यनूतन ब्रॉडकास्ट सर्विस)20.01.2020)

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