शहीद भगतसिंह यात्रा
अहोभाग्य*
हुसैनीवाला (फिरोजपुर) में शहीद भगत सिंह, राजगुरु , सुखदेव ,बी के दत्त व माता विद्यावती के अन्त्येष्टि स्थल समाधि पर उन्हें अपनी श्रद्धांजलि देने का अवसर प्राप्त कर मेरी ,भगत सिंह यात्रा को पूर्णता मिल ही गयी । सन 2004में शहीद भगत सिंह यात्रा के अवसर पर लाहौर में आयोजित एक कार्यक्रम में शहीद के भतीजे स0 किरणजीत सिंह संधू के साथ मैं व मेरी पत्नी कृष्णा कांता गए थे । हमारा मकसद यह भी था कि शहीद भगत सिंह के जन्म स्थान से लेकर हर उस जगह जाया जाए जिस से उनका सम्बन्ध हो । भगत सिंह के छोटे भाई स0 कुलतार सिंह उस समय जीवित थे । इसलिये स्थान की प्रामाणिकता के लिये उनके दूर सहारनपुर रहने के बावजूद हम हरदम उनके सम्पर्क में रहे । कसूर(पाकिस्तान) के सांसद व हमारे प्रिय मित्र चौधरी मंज़ूर अहमद हमारे साथ रहे ।
हमारा पहला पड़ाव था ज़िला लायलपुर (अब फैसलाबाद) के जड़ावाला कस्बा के अंतर्गत गांव बंगा में जहाँ 28 सितम्बर, 1907 को पिता स0 किशन सिंह तथा माता विद्यावती के घर उनका जन्म हुआ था । इस घर के सामने ही स0 अजीत सिंह का घर था । यद्यपि अब वह मकान किसी मुख्तयार वड़ैच को अलॉट हुआ है परन्तु वड़ैच परिवार ने वह कमरा जिसमे भगत सिंह का जन्म हुआ था ,उसे उसके पुराने हालात में ही सुरक्षित रखा है । इस घर के नजदीक ही वह प्राइमरी स्कूल है जहां बालक भगत ने प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की थी । इसी स्कूल में नीम का वह पेड़ आज भी हरा भरा है जो इसी स्कूल के छात्र भगत सिंह ने लगभग 100 साल पहले लगाया था ,और पास ही उनके खेत है जो *आर्यो के खु* के नाम से जाने जाते है । गांव का चप्पा चप्पा भगत सिंह के बाल्य जीवन से वाकिफ है कि वे यहीं खेले, स्कूल गए और यहीं उन्होंने दूध का धंधा भी किया और यही तो वह गांव है जहां अपने खेतों में वे अपने बचपन मे बन्दूक बोने की मासूम बाते करते थे और इसी गांव से चल कर वे जलियावाला बाग हत्याकांड के बाद ,12 साल का यह बालक अमृतसर जाकर बाग की मिट्टी भर कर लाया था ।
सम्भवत: इसी गांव में उनके दादा स0 अर्जुन सिंह ने उनका यज्ञोपवीत संस्कार करवा कर उन्हें राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिये अर्पित किया था ।
हमारा अगला पड़ाव लाहौर का डी ए वी कॉलेज के बाहर का चौक था जहाँ भगत सिंह व उनके साथियों ने पंजाब केसरी लाला लाजपतराय जी की मौत का बदला लेने के लिये सांडर्स को अपनी गोलियों से बींध दिया था । और साथ लगता कॉलेज जहां वे कुछ समय रुक कर अपने साथी राजगुरु के साथ कोलकोता के लिये रवाना हुए थे । घटनास्थल के पास ही ब्रेडले हॉल है जहाँ उनकी व उनके साथियों की गिरफ्तारी के बाद उनका परिवार रहा था । लाहौर किला जहां विशेष ट्रिब्यूनल बना कर उन पर मुकदमा चला तथा उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई । एक -२ स्थान देखते हुए हम सभी रोमांचित थे ।
तत्कालीन जेल को तोड़ कर अब वहां बने शादमान चौक(अब भगत सिंह चौक) पर भी जाने का मौका मिला जहाँ इन तीन इंक़लबियो को फांसी पर लटका दिया था, और फिर ब्यास नदी के पुल से गुजरते हुए कसूर के पास भारत-पाकिस्तान फिरोजपुर सीमा पर जहां भगत सिंह व उनके साथियों के शवों को भयभीत अंग्रेज़ो ने जल्दबाज़ी में जला दिया था । उस समय वह स्थल हमने पाकिस्तान की तरफ से देखा था पर आज मौका मिला इधर आकर देखने का ।
दिल्ली में पुराना किला के पास *शहीद पार्क* पर भी गए जहां उन्होंने अपने साथियों के साथ *प0 चंद्र शेखर आज़ाद के नेतृत्व में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी* की स्थापना की थी और नैशनल असेंबली(वर्तमान लोकसभा) की दर्शकदृघा भी जहाँ से शहीद भगतसिंह तथा उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने बहरे कानों को खोलने के लिये बम व पर्चे फेंके थे और यहीं से उन्होंने अपनी गिरफ्तारी दी थी ।
कानपुर में उस कार्यालय में भी जाने का अवसर मिला जहाँ प0 गणेश शंकर विद्यार्थी के प्रताप अखबार में भगत सिंह अपने लेख बलवंत सिंह के नाम से लिखते थे और कोलकाता में उस स्थान भी जहां सांडर्स वध के बाद वे लाहौर से आकर रुके थे ।
और आज यह यात्रा पूर्ण हुई । उनके जन्म स्थान से अंतिम स्थल तक की यात्रा । वास्तव में यह यात्रा *भगतसिंह से दोस्ती की यात्रा* है ।
इस यात्रा में वे भाग्यशाली अद्भुत क्षण भी है जब उनकी माता श्रीमती विद्यावती , उनके क्रांतिकारी सहयोगी दुर्गा भाभी , का0 सोहन सिंह जोश , का0 शिव वर्मा , प0 किशोरी लाल , का0 क्रांति कुमार तथा भाई स0 कुलबीर सिंह व स0 कुलतार सिंह से भी प्रत्यक्ष व्यक्तिगत मुलाकाते रही ।
भगत सिंह किस तरफ का है । इधर का या उधर का यह सवाल खूब कौंधता है पर उसका जवाब भी वे ही देते है कि हर उस युवा का जो उनके छोड़े रास्ते पर चलना चाहते है ।
अभी परसो ही तो मैं अपनी बेटी संघमित्रा से कह रहा था कि मेरे जीवन की राजनीतिक- सामाजिक महत्वाकांक्षाएं पूरी नही हुई यानी कुछ पाया नही । उसका जवाब था कि आपने वह सब कुछ पाया जो अन्य किसी को हरदम कोशिश के बाद भी।नही मिलता । तुम सच कहती हो बेटी कि मैं बहुत भाग्यशाली हूं ।
*राम मोहन राय*
(हुसैनीवाला, भारत-पाकिस्तान बॉर्डर, फिरोजपुर दि0
02.10.2019 को डॉ पवन थापर के साथ हाजिरी)
हुसैनीवाला (फिरोजपुर) में शहीद भगत सिंह, राजगुरु , सुखदेव ,बी के दत्त व माता विद्यावती के अन्त्येष्टि स्थल समाधि पर उन्हें अपनी श्रद्धांजलि देने का अवसर प्राप्त कर मेरी ,भगत सिंह यात्रा को पूर्णता मिल ही गयी । सन 2004में शहीद भगत सिंह यात्रा के अवसर पर लाहौर में आयोजित एक कार्यक्रम में शहीद के भतीजे स0 किरणजीत सिंह संधू के साथ मैं व मेरी पत्नी कृष्णा कांता गए थे । हमारा मकसद यह भी था कि शहीद भगत सिंह के जन्म स्थान से लेकर हर उस जगह जाया जाए जिस से उनका सम्बन्ध हो । भगत सिंह के छोटे भाई स0 कुलतार सिंह उस समय जीवित थे । इसलिये स्थान की प्रामाणिकता के लिये उनके दूर सहारनपुर रहने के बावजूद हम हरदम उनके सम्पर्क में रहे । कसूर(पाकिस्तान) के सांसद व हमारे प्रिय मित्र चौधरी मंज़ूर अहमद हमारे साथ रहे ।
हमारा पहला पड़ाव था ज़िला लायलपुर (अब फैसलाबाद) के जड़ावाला कस्बा के अंतर्गत गांव बंगा में जहाँ 28 सितम्बर, 1907 को पिता स0 किशन सिंह तथा माता विद्यावती के घर उनका जन्म हुआ था । इस घर के सामने ही स0 अजीत सिंह का घर था । यद्यपि अब वह मकान किसी मुख्तयार वड़ैच को अलॉट हुआ है परन्तु वड़ैच परिवार ने वह कमरा जिसमे भगत सिंह का जन्म हुआ था ,उसे उसके पुराने हालात में ही सुरक्षित रखा है । इस घर के नजदीक ही वह प्राइमरी स्कूल है जहां बालक भगत ने प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की थी । इसी स्कूल में नीम का वह पेड़ आज भी हरा भरा है जो इसी स्कूल के छात्र भगत सिंह ने लगभग 100 साल पहले लगाया था ,और पास ही उनके खेत है जो *आर्यो के खु* के नाम से जाने जाते है । गांव का चप्पा चप्पा भगत सिंह के बाल्य जीवन से वाकिफ है कि वे यहीं खेले, स्कूल गए और यहीं उन्होंने दूध का धंधा भी किया और यही तो वह गांव है जहां अपने खेतों में वे अपने बचपन मे बन्दूक बोने की मासूम बाते करते थे और इसी गांव से चल कर वे जलियावाला बाग हत्याकांड के बाद ,12 साल का यह बालक अमृतसर जाकर बाग की मिट्टी भर कर लाया था ।
सम्भवत: इसी गांव में उनके दादा स0 अर्जुन सिंह ने उनका यज्ञोपवीत संस्कार करवा कर उन्हें राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिये अर्पित किया था ।
हमारा अगला पड़ाव लाहौर का डी ए वी कॉलेज के बाहर का चौक था जहाँ भगत सिंह व उनके साथियों ने पंजाब केसरी लाला लाजपतराय जी की मौत का बदला लेने के लिये सांडर्स को अपनी गोलियों से बींध दिया था । और साथ लगता कॉलेज जहां वे कुछ समय रुक कर अपने साथी राजगुरु के साथ कोलकोता के लिये रवाना हुए थे । घटनास्थल के पास ही ब्रेडले हॉल है जहाँ उनकी व उनके साथियों की गिरफ्तारी के बाद उनका परिवार रहा था । लाहौर किला जहां विशेष ट्रिब्यूनल बना कर उन पर मुकदमा चला तथा उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई । एक -२ स्थान देखते हुए हम सभी रोमांचित थे ।
तत्कालीन जेल को तोड़ कर अब वहां बने शादमान चौक(अब भगत सिंह चौक) पर भी जाने का मौका मिला जहाँ इन तीन इंक़लबियो को फांसी पर लटका दिया था, और फिर ब्यास नदी के पुल से गुजरते हुए कसूर के पास भारत-पाकिस्तान फिरोजपुर सीमा पर जहां भगत सिंह व उनके साथियों के शवों को भयभीत अंग्रेज़ो ने जल्दबाज़ी में जला दिया था । उस समय वह स्थल हमने पाकिस्तान की तरफ से देखा था पर आज मौका मिला इधर आकर देखने का ।
दिल्ली में पुराना किला के पास *शहीद पार्क* पर भी गए जहां उन्होंने अपने साथियों के साथ *प0 चंद्र शेखर आज़ाद के नेतृत्व में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी* की स्थापना की थी और नैशनल असेंबली(वर्तमान लोकसभा) की दर्शकदृघा भी जहाँ से शहीद भगतसिंह तथा उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने बहरे कानों को खोलने के लिये बम व पर्चे फेंके थे और यहीं से उन्होंने अपनी गिरफ्तारी दी थी ।
कानपुर में उस कार्यालय में भी जाने का अवसर मिला जहाँ प0 गणेश शंकर विद्यार्थी के प्रताप अखबार में भगत सिंह अपने लेख बलवंत सिंह के नाम से लिखते थे और कोलकाता में उस स्थान भी जहां सांडर्स वध के बाद वे लाहौर से आकर रुके थे ।
और आज यह यात्रा पूर्ण हुई । उनके जन्म स्थान से अंतिम स्थल तक की यात्रा । वास्तव में यह यात्रा *भगतसिंह से दोस्ती की यात्रा* है ।
इस यात्रा में वे भाग्यशाली अद्भुत क्षण भी है जब उनकी माता श्रीमती विद्यावती , उनके क्रांतिकारी सहयोगी दुर्गा भाभी , का0 सोहन सिंह जोश , का0 शिव वर्मा , प0 किशोरी लाल , का0 क्रांति कुमार तथा भाई स0 कुलबीर सिंह व स0 कुलतार सिंह से भी प्रत्यक्ष व्यक्तिगत मुलाकाते रही ।
भगत सिंह किस तरफ का है । इधर का या उधर का यह सवाल खूब कौंधता है पर उसका जवाब भी वे ही देते है कि हर उस युवा का जो उनके छोड़े रास्ते पर चलना चाहते है ।
अभी परसो ही तो मैं अपनी बेटी संघमित्रा से कह रहा था कि मेरे जीवन की राजनीतिक- सामाजिक महत्वाकांक्षाएं पूरी नही हुई यानी कुछ पाया नही । उसका जवाब था कि आपने वह सब कुछ पाया जो अन्य किसी को हरदम कोशिश के बाद भी।नही मिलता । तुम सच कहती हो बेटी कि मैं बहुत भाग्यशाली हूं ।
*राम मोहन राय*
(हुसैनीवाला, भारत-पाकिस्तान बॉर्डर, फिरोजपुर दि0
02.10.2019 को डॉ पवन थापर के साथ हाजिरी)
Comments
Post a Comment