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Showing posts from December, 2020

हाली पानीपती की 108 वीं यौमे वफ़ात

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 हाली पानीपती ट्रस्ट की ओर से विश्वविख्यात शायर एवं समाज सुधारक मौलाना ख्वाजा अल्ताफ हुसैन हाली की 107 वीं  पुण्यतिथि के अवसर पर  हाली अपना स्कूल में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर अपने विचार प्रकट करते हुए एडवोकेट तथा सामाजिक -राजनीतिक विचारक राम मोहन राय ने कहा कि हाली पानीपती एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने न केवल तत्कालीन अपितु वर्तमान सन्दर्भों की समस्याओं के बारे में अपनी कविताओं एवम गजलों के माध्यम से सन्देश दिया। वे वर्तमान की बात करते थे। इसलिए उन्होंने अपना तख्खलुस हाली अर्थात वर्तमान रखा। उर्दू शायरी में उन्होंने श्रृंगार , प्रेम और प्रेमकथाओं को न कहकर मजदूर, किसान एवम आमजन की बात की। हिंदी साहित्य में समालोचक के रूप में जिस तरह से भारतेंदु हरिश्चंद्र का नाम है, उसी रूप में उर्दू अदब में हाली की ख्याति है। महिलाओं के उत्थान एवम सशक्तिकरण में उनका नाम महात्मा ज्योतिबा फूले, सावित्रीबाई फूले, नारायण स्वामी, राजा राम मोहन राय, महर्षि दयानन्द सरस्वती एवम ईश्र्वर चन्द्र विद्यासागर की श्रंखला में है। लगभग 150 वर्ष पूर्व उन्होंने महिलाओं की शिक्षा एवं सशक्तिकरण के लिए न केव

किसान आंदोलन का आंकलन-4

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  नित्य नूतन वार्ता के 252वें सत्र में '21वीं सदी में विचारधाराएं ' विषयांतर्गत 'किसान आंदोलन का आंकलन' पर एक संवाद जूम एप पर दिनांक 29 दिसंबर 2020 को आयोजित किया गया। जिसमें मुख्य वक्ता सर्वश्री/ श्रीमती, प्रो. जगमोहन सिंह, अशोक चौधरी, एवं पिस्ता सीतलवाड़ रहे । वार्ता में देश के विभिन्न 27 स्थानों  से प्रबुद्ध श्रोताओं ने भाग लिया* ।          *वार्ता का शुभारंभ करते हुए अखिल भारतीय वन श्रमजीवी यूनियन के नेता एवं वामपंथी विचारक श्री अशोक चौधरी ने अंतरराष्ट्रीय संदर्भों को रखते हुए भारत में किसान आंदोलन के इतिहास का विश्लेषण किया तथा बताया कि किसान आंदोलन साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष का एक हिस्सा रहा है । इसलिए आज कारपोरेट के खिलाफ भी वह अपनी प्रतिबद्धता से लड़ रहा है*।        *प्रसिद्ध मानवाधिकार नेत्री एडवोकेट तथा सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस की सचिव श्रीमती पिस्त सीतलवाड़  ने संवैधानिक एवं कानूनी पक्षों को रखते हुए किसान, किसानी एवं उनके आंदोलन की चर्चा की। उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान न तो कोई कागज का टुकड़ा है अथवा न ही कोई घटित घटनाओं से गठित एक पुस्तक। वैश्विक तथा राज

ईस्टर की मुबारकबाद

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  *हम ईसाई भी है* । *क्रिसमस की मुबारक* !            संत विनोबा भावे ने अपनी ऐतिहासिक व आध्यात्मिक कश्मीर यात्रा के दौरान अनेक प्रश्नों व भ्रांतियों का निराकरण सहज में ही कर दिया । जब वे वेदो और उपनिषदों के मन्त्र ,गीता के श्लोक धाराप्रवाह बोलते तो लोग उनसे पूछते की क्या आप हिन्दू है ? क्योंकि नाम व पहनावे से तो नही लगते । जब कुरान शरीफ़ की आयतें बोलते व उनका तरजुमा करते तो लोग पूछते, क्या   क्या आप मुसलमान है ? पर नाम से तो नही लगते । और फिर जब वे बाइबिल के सरमन बोलते, तो लोगों का सवाल होता कि क्या आप क्रिस्तान है ? भाषा और खानपान से तो नही लगते । जब भी अपनी मस्ती में गुरबाणी का पाठ करते तो लोग ऐसा ही सवाल करते । पर हर बार विनोबा का एक ही तरह का जवाब होता ' हां मैं हिन्दू भी हूं । मुसलमान भी हूं ,ईसाई भी और सिख भी । कई लोग व्यंग्यात्मक पूछते कि क्या नास्तिक भी अथवा कम्युनिस्ट भी ,तो भी वे उसी तपाक से जवाब देते ,जी जरूर मैं नास्तिक भी हूं और कम्युनिस्ट भी ।  मेरी गुरु माँ और संत विनोबा की मानस पुत्री दीदी निर्मला देशपांडे इसे बहुत ही रोचक ढंग से बताती थी कि विनोबा कहते थे कि इस समा

Association of Peoples of Asia

 Join APA ASSOCIATION OF PEOPLES OF ASIA *******************   Asia is not only the most populous continent but it has also contributed to the civilisational developmenf of the human race from very early times. Intermingling of its people over fhe centuries established strong socigl ond cultural bonds across its lands. It was this very special. choracteristic which Mahatma Gandhi descrbed as the Asian identity whilst addressing the Asion Relations Conference in March/April 1947.  In this new millennium there is now the need to further strengthen these bonds to achieve the ideal of oneness of mankind. This was emphosised by Saint Vinoba Bhave, the spirifual heir of Mahatma Gandhi, when he exhorted  people to adopt Jai Jagat (victory to the world) os their. slogan. The Association of Peoples of Asia (APA) was accordingly  formed in 1994 at New Delhi under the chairmanship of Ms. Nirmala Deshpande with the paricipation of other colleagues of Akhil Bharot Rachanatmak Somaj with the aim of

किसान आंदोलन(आग से न खेले)

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 *आग का खेल न खेलें*             बेशक किसान को इससे भी ज्यादा ठंड में अपने खेत मे काम करने का अनुभव है जितना कि वह दिल्ली बॉर्डर पर बैठ कर आंदोलन कर रहा है परन्तु इसे हलके में लेना न सिर्फ नासमझी है वहीं राष्ट्रीय हित मे भी नही है ।          हम सब जानते है कि दिल्ली की सीमा पर बैठे अधिकांश किसान आंदोलनकारी पंजाब से है । यह धरती न केवल कृषि के क्षेत्र में उपजाऊ है ,और यहाँ के किसान एक से एक बेहतर उत्पाद देते है पर साथ -२ यह धरती वीर प्रसूता भी है । इस  धरती में ही जहाँ सूफी संतों का सत्य-प्रेम-करुणा का संदेश है वहीं शहादत का भी अद्भुत जज़्बा है जिसके अद्भुत समन्वय को समझना आवश्यक है ।        भारत विभाजन के समय मुख्य बटवारा तो पंजाब का ही था ।  भारत की सीमा के साथ सटे इस सूबे के भी तीन हिस्से बने पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश । पर बटवारे के बाद भी इसके विकास की गति में कोई कमी नही आई ।     वर्तमान पंजाब की सीमाएं एक तरफ पाकिस्तान के पंजाब से है तथा दूसरी तरफ जम्मू-कश्मीर से ।       एक लंबे अरसे तक पंजाब ने खून-खराबे का दौर भी देखा । कभी अति वामपंथी आंदोलन का तो कभी सिख मिलिटेंसी का । इन

Pushpa Bhabhi

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  *पुष्पा भाभी*       मेरी शादी के 37 वर्षो बाद यह पहला अवसर था जब मेरी सासु माँ की अनुपस्थिति में मेरी सालेज (पत्नी के भाई की पत्नी) ने ससुराल से विदा किया । मन व्यथित भी था व भावुक भी ,परन्तु  हालात बदल गए है जिन्हें स्वीकार करना पड़ेगा । स्मरण रहे मेरी सासु माँ श्रीमती केसर देवी जी (पत्नी स्व0 श्री गणेशलाल जी माली,पूर्व सांसद) का निधन विगत 25 मई को हो गया था और लॉक डाउन की वजह से हम दोनों पति-पत्नी उदयपुर नही आ पाए थे । मेरी पत्नी श्रीमती कृष्णा कांता को इस बात का बेहद पछतावा था । चूंकि अब परिवार में एक शादी में कोटा आये थे तो वहीं से उदयपुर आ गए ।         मेरी सलेज श्रीमती पुष्पा माली शुरू से ही हमसे बेहद स्नेह रखती रही । बेशक उनके तीन ननदें और भी थी । पर उनकी कृपा दृष्टि हम पर सर्वाधिक रही । ऐसा स्वभाविक भी है । एक तो हम दूर से कभी-२ आने वाले बेटी-दामाद थे ,दूसरे हमारी शादी में पाणिग्रहण संस्कार में कन्या के माता-पिता के सभी कर्मकांड एवम धार्मिक-सामाजिक रीति-रिवाजों को उन्होंने तथा उनके पति डॉ रमाकांत ने ही किया था । कारण यह कि उसी दिन व एक ही मुहूर्त में मेरी पत्नी की बड़ी बहन तारा

किसान आंदोलन

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  *राजाओं का राजा राजधानी से बाहर*                   यह कोई साधारण किसान आंदोलन नही है ,इस बारे में किसी को भी मुगालता नही होना चाहिए । ऐसा कहना भी गलत है कि यह आन्दोलन  नेतृत्व विहीन ,गैर वैचारिक एवम स्वतःस्फूर्त है । यदि ऐसा हम समझते है तो इस आन्दोलन के किसी भी पड़ाव पर आना होगा ।        इन्ही सभी बातों को समझने के लिए आज अपने अनेक मित्रों के साथ दिल्ली- हरियाणा राज्य बॉर्डर सिंघु-कुंडली पर आने का अवसर मिला ।             बॉर्डर से लगभग 10 किलोमीटर   पहले ही हरियाणा में किसानों के ट्रैक्टर-ट्राली एवम तम्बू लगे है । राष्ट्रीय राजमार्ग जी टी रोड अब एक सड़क नही लगता अपितु एक बसा हुआ कस्बा लगता है । जगह-२ लोग खाना पका रहे है ।  लोगों को रोक-२ उन्हें खाना ,चाय, दूध, लस्सी ,मिठाई एवम फलों का लंगर छकने का आग्रह किया जा रहा था । प्रदर्शनकारी ऐसे बैठे है जैसे उनका उठने का कोई इरादा नही है ।       इस सत्याग्रह में न केवल बुजुर्ग ,नौजवान एवम महिलाओ की शिरकत है बल्कि बच्चों की तादाद भी कम न है । पूरे के पूरे परिवार इसमे शामिल है और यहां तक की नवविवाहिता वधुएं भी जिनकी पहचान शादी के मौके पर हाथ मे