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Showing posts from January, 2021

राष्ट्रहित सर्वोपरि

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 https://nityanootan.blogspot.com/2021/01/blog-post_28.html 🤝🤝🤝🤝🤝🤝 *राष्ट्रीय एकता सर्वोपरि* । 60 दिनों से चल रहे किसान आंदोलन के 59वें दिन 26 जनवरी, गणतंत्र दिवस के अवसर पर लाल किले पर हुई बेअदबी की घटना ने न केवल पूरे किसान आंदोलन को कटघरे में खड़ा कर दिया है वहीं इस आंदोलन की धार को भी कमजोर करने का काम किया है  आंदोलन चलते हैं। कभी उतार चढ़ाव होते हैं। यह भी जरूरी नहीं कि हर आंदोलन को जीता ही जाए और उसमें कभी भी हार ना हो ।          फूट डालो और राज करो, षड्यंत्र और घृणित कृत्य शुरू से ही शासकों के हथियार रहे हैं । क्या प्रजातंत्र में भी इन्हीं हथियारों का इस्तेमाल होगा ? आज यह चिंता का विषय है परंतु किसान आंदोलन को विचारधारा की सॉन पर अपने हथियार  को तेज कर और अधिक ढंग से लामबंद होना होगा ताकि यह किसानों को विजयी कर सके। लाल किले की घटना ने जहां किसान जत्थेबंदियों की कमी को उजागर किया है, वही सरकारी तंत्र को भी बेनकाब किया है कि वह किस तरह के हथकंडे अपनाकर शांतिपूर्ण अहिंसक आंदोलनों को समाप्त करना चाहते हैं । यदि विरोध समाप्त कर दिया गया तो लोकतंत्र स्वतः ही खत्म हो जाएगा   व

Martin Luther King J birthday celebration in India

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  *महात्मा गांधी के शिष्य मार्टिन लूथर किंग जूनियर*       अमेरिका के महान गांधीवादी विचारक एवं क्रांतिकारी मार्टिन लूथर किंग जूनियर के जन्मदिवस पर के आई आई टी, गुरुग्राम एवं नित्यनूतन वार्ता के संयुक्त तत्वावधान में एक गोष्ठी का आयोजन ज़ूम एप्प पर किया गया। जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में प्रसिद्ध एफ्रो अमेरिकन नेता एवं सैटरडे फ्री स्कूल के संस्थापक डॉ0  एंथोनी मांटेरिओ उपस्थित रहे । उन्होंने अपने संबोधन में कहा की मार्टिन लूथर किंग जूनियर महात्मा गांधी के विचारों से अत्यंत प्रभावित थे यही कारण था कि उन्होंने अपनी भारत यात्रा को एक तीर्थ यात्रा के रूप में प्रदर्शित किया। अपने विचारों एवं कार्यो से मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने अमेरिका में बेशक क्रिश्चियन होते हुए भी उदार विचारों को प्रस्तुत किया जो उन्हें ईसा मसीह एवं महात्मा गांधी से मिले थे। एम एल के जे के विचारों पर ही आज एक बड़ा अश्वेत आंदोलन अमेरिका में नस्लभेद, रंगभेद वाद एवं असमानता के विरुद्ध लड़ा जा रहा है।           प्रसिद्ध गांधीवादी एवं शिक्षाविद श्री बीआर कामराह ने इस अवसर पर अपने व्यवहारिक जीवन के अनुभवों को रखा उन्होंने बताया

मेरे दोस्त -लाल बहादुर

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  मेरे प्रिय दोस्त -लाल बहादुर 💐💐💐💐💐💐                           मै सिर्फ सात साल का था ,कुशाग्र बुद्धि व चेतन पारिवारिक वातावरण की वजह से तत्कालीन परिस्थितियो की वजह से वाकिफ था । वर्ष 1965 में दीवाली के आसपास भारत व पाकिस्तान के बीच तनाव पूर्ण वातावरण था उसका असर बाजार व सामान्य जन पर भी था । तनाव को लेकर उत्तेजना थी ।  दीवाली के मौके पर बाजार से मै एक ऐसा 'टॉय टैंक'खरीद कर लाया ,  जिसको  जमीन पर रगड़ने से उसके अंदर लगे पत्थर में से चिंगारी निकलती थी  मेरे पिता जी के प्रोत्साहन व  अंतर प्रेरणा से मैने 6 पैसे का एक पोस्टकार्ड लेकर अपने शब्दों में एक पत्र तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी को लिखा कि मेरे पास एक टैंक है यदि देश की रक्षा के लिए मेरी व उसकी जरूरत हो तो मै सीमा पर जाने को तैयार हूँ । पर यह क्या लगभग दस दिन बाद ही मेरे नाम से एक पत्र प्रधानमन्त्री कार्यालय से आया । जो मेरे पत्र का जवाब था  । "प्रिय राम मोहन , हमे अपनी भारतीय सेना पर गर्व है परन्तु फिर भी आपकी व आपके टैंक की जरूरत पड़ी तो आपको बुला लेंगे ।                         आपका ,      
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  पूर्व सांसद श्री गणेश लाल माली जी का 97वां जन्म दिवस निर्मला देशपांडे संस्थान में मनाया गया। इस अवसर पर शिक्षा,स्वास्थ्य एवं रोजगार विषय पर आयोजित एक स्मृति व्याख्यान में बोलते हुए चिकित्सक डॉ नवमीत एवं डॉ महीप गहलोत ने कहा कि ये तीनों विषय एक दूसरे के पूरक है। शिक्षा, स्वास्थ्य एवं रोजगार सभी की मौलिक आवश्यकताएं है और इसे संविधान सम्मत मौलिक अधिकारों में शामिल किया जाना चाहिए। उन्होने कहा कि  हमें इस बात की खुशी है कि माता सीता रानी सेवा संस्था विगत 29 वर्षों से समाज के उपेक्षित वर्गों के लिए उत्कृष्ट कार्य कर रही है। महिलाओं एवं बच्चों के सशक्तीकरण एवं संवर्धन का कार्य वरीयता पर लिया जाना चाहिए। स्वच्छ रहना एवं स्वच्छता का पालन करना सभी का दायित्व है।परंतु हमें उन स्थितियों को भी सोचना होगा जिसकी वजह से ऐसा नहीं हो पा रहा।           माता सीता रानी सेवा संस्था की अध्यक्ष श्रीमती कृष्णा कान्ता ने  कहा कि स्व.श्री गणेश लाल माली न केवल एक   राजनेता थे, अपितु उन्होने सामजिक एवं बौद्घिक स्तर पर अनेक कार्य किये। दलित एवं पिछड़े वर्गों के विकास के लिए किये जाने वाले उनके कार्य सदैव सरहानीय

दूर के ढोल सुहावने

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  दूर के ढोल सुहावने होते है , यह कहावत आजकल अमेरिका पर मुकम्मल उतर रही है । जो लोग वहां नही गए उनके लिये वह किसी भी स्वर्गीय कल्पनाओं से परे न है । साधन संपन्न लोगों के लिए हर सुविधा सब जगह ही मिलती है पर सवाल तो आम लोगों का है जिन्हें न केवल भारत मे अपितु अमेरिका समेत सभी स्थानों पर अभावग्रस्त रह कर उनके लिये लड़ाई लड़नी पड़ती है । भूख ,बेकारी और बीमारी के खिलाफ संघर्ष आज सबसे बड़ी चुनौती है जो यहां भी है और वहाँ भी ।       चार साल पहले डोनाल्ड ट्रंप अंध राष्ट्रवाद के नारे को लेकर राष्ट्रपति बने थे उसने बहुत बड़ी संख्या में अंध भक्त उन्हें मुहैय्या करवाये थे । "अमेरिकन फर्स्ट" एक ऐसा प्रलोभन था जिसमे उनके समर्थक उनकी सभी जरूरतों और मांगो का हल मानते थे । पर पूंजीवाद और उसकी नीतियाँ परलोभित तो करती है परन्तु नतीजे में निराशा ही हाथ लगती है ।      ऐसा नही की ट्रम्प ने कुछ नही किया । कई काम हुए और विशेषकर युद्धोंउन्मादी अमेरिका की छवि को तोड़ने की कोशिश की । भारत जैसे अनेक देशों के राष्ट्राध्यक्षो के साथ मैत्री कर अपने कॉरपोरेटस को भरोसा दिलवाया की उनके बिजनेस की मंडी शीघ्र ही उपलब्

सैनी किसान

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 * मेरा जन्म पंजाब की एक पिछड़ी जाति में हुआ ,जिसे सैनी नाम से बुलाते थे । तत्कालीन ज़िला रोहतक के सोनीपत ब्लॉक में गांव बलि कुतुबपुर में मेरे पिता-दादा और उनके बुजुर्ग रह कर खेती करते थे । मेरे पिता के बचपन मे ही मेरे दादा गुज़र गए । आर्य समाज के प्रचार ने उनमें पढ़ाई की ललक लगाई और वे गांव से रोजाना 13 किलोमीटर पैदल चल कर पानीपत पढ़ने आते और फिर ऐसे ही वापिस लौटते* ।        *मेरे पिता बताते कि उस समय हमारी जाति को हेय दृष्टि से देखा जाता था । मूलतः तो हम माली है पर कुछ लोग सगड आदि अपमानित नामों से भी सम्बोधित करते । वे बताते थे कि तब संयुक्त पंजाब में सर् चो0 छोटूराम रेवेन्यू मिनिस्टर बने और उन्होंने कहा कि यह कौम किसानी है और अब इसे सैनी नाम से ही सम्बोधित किया जाएगा । और आदेश पारित कर सभी रेवेन्यू रेकॉर्ड में माली शब्द को काट कर सैनी किया । यह वही जज़्बा था कि मेरे माता-पिता दोनों ने रोपड़ के संत साधुसिंह सैनी के साथ मिल कर सैनी-किसान अखबार का सम्पादन किया* ।      *अब हम कैसे कह दे कि हम तो शहरी ही है और वकील है* ।      *हमारी जड़े गांव में है और हम किसान है* ।     *आओ ,अपनी जड़ों से जुड़े*

नफरत का जवाब

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 * हर बड़ी लकीर को बिना छुए उसे छोटा करने का हुनर सीखना होगा* ।      *विश्व इतिहास में दो ऐसे व्यक्ति हुए जिहोने अपने राजनीतिक कौशल से अद्भुत रणनीति तैयार कर अपने-२ देश का नक्शा ही बदल दिया । एक -व्लादिमीर इलयीच लेनिन और दूसरे-महात्मा गांधी । बेशक ये दोनों समकालीन थे पर रास्ते व विचार  अलग-२ थे । इन दोनों ने समझाया कि समाज में जमी गन्दगी को उसमें स्वच्छ जल का प्रवाह करके खत्म किया जा सकता है* ।       *मेरे अनेक मित्र अक्सर देश भर में बढ़ रही साम्प्रदायिक धुर्वीकरण के नाम पर बढ़ती नफरत और हिंसा की बात करते है । इस बारे में हमे अपने दोनों शिक्षकों से सबक लेना चाहिए और वह है मुद्दों पर आधारित जनांदोलन तैयार करना* ।    *किसान आंदोलन एक रास्ता है जिसने साम्प्रदायिकता ,क्षेत्रीयता और अन्य संकीर्ण प्रवृतियों   का जवाब दे दिया है । अब किसान एक है चाहे वह हिन्दु हो ,सिख या मुसलमान अथवा अन्य कोई ।  दो प्रदेश जो हमेशा आमने-सामने खड़े थे जैसे दो  अलग देश हो , अब एक स्वर में बोलते है* ।     *साम्प्रदायिकता को उन्हीं की पिच पर नही हराया जा सकता । हां उन्हें मुद्दों से जरूर मिटाया जा सकता है । गन्दगी , ग

वर्तमान किसान आंदोलन और गांधी विचार

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 *वर्तमान किसान आंदोलन और गांधी विचार*             राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के 151 जन्म जयंती वर्ष में सत्याग्रह का एक अद्भुत प्रयोग किसान आंदोलन के रूप में हो रहा है । सन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय बापू का आह्वान था कि करेंगे या मरेंगे । हम इस आंदोलन के तो प्रत्यक्षदर्शी न बन सके परन्तु आज महसूस कर रहे है कि उसकी गरिमा क्या रही होगी ।      इतिहास स्वयं को दोहराता है । विद्यार्थी जीवन के दौरान अपने पाठ्यक्रम में हमे पढ़ाया गया कि महात्मा जी के असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलन में एक अपील पर लोगो ने अपने पुरस्कार सरकार को लौटा दिए , सरकारी कर्मचारियों ने अपनी नौकरियों से त्यागपत्र दे दिए और वकीलों ने वकालत छोड़ कर राष्ट्रीय आज़ादी के आंदोलन में अपनी शिरकत दर्ज करवाई । ये सब ऐसे किस्से-कहानियां लगते थे मानो किसी कल्पना से भरे हो । पर आज यह इतिहास किसान आंदोलन में दोहराया जा रहा है ।       किसान धरना स्थलों पर डटे है । इस कड़कड़ाती सर्दी में भी और बारिश के दौरान भी जब हम लोग अपने-२ घरों में गर्म रजाईओ में दुबके हुए है ।     प्राप्त सूचनाओं के अनुसार लगभग 61 किसानों ने आंदोलन के दौरान शहादत

प्रसिद्ध शायर अल्लाह यार खान जोगी की नज़्म "सिक्खों की कर्बला"