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Showing posts from July, 2024

बापू की खोज में - Osterhem, Zutermeer, Netherlands.

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बापू की खोज में  (Oetarhem, Zutrmeer, Netherlands)  मेरे प्रिय मित्र श्री राशिद ज़मील (एडवोकेट, सहारनपुर) की सुपुत्री फराह और उनके दामाद मेराज साहब, जो कि ओतरहेम में रहते हैं, ने आज हमें दोपहर के खाने पर अपने घर पर प्रेम पूर्वक निमन्त्रण दिया. बहुत ही लजीज शाकाहारी भोजन उन्होने हमारे लिए तैयार कर परोसा.     खाने के बाद गपशप होने लगी और इसी बीच मेराज साहब ने कहा कि वे हमें हमारी बेहद पसन्दीदा जगह पर ले जाना चाहते है. मेजबान के कहने पर हम उनके साथ हो लिए. उनके घर से महज एक किलोमीटर दूर एक ऐसी जगह थी जिसकी भारत से दस हजार किलोमीटर दूर इस उपनगर में होना अकल्पनीय था.     Oetarhem शहर Zoetrmeer नगर का उपनगर है. ZOETRMEER का अर्थ है मीठे पानी का जलाशय और इसी पर बना है Oetarhem. नीदरलैंड्स की कुल एक करोड़ सत्तर लाख आबादी में मात्र 40 -50 हज़ार ही भारतीय है जबकि इनके अतिरिक्त दो लाख सूरीनामी भारतीय हैं. परंतु देखने में आया है कि गैर भारतीयों में बापू के प्रति असीम श्रद्धा और प्यार है.     देश विदेश में मुझे घूमने, पढ़ने और समझने का अवसर मिला है और हर जगह मैंने पाया है कि राष्ट्रपिता महात्मा गां

अथ इटली सफ़र कथा - 2(Milan)

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    आज हम मिलान शहर में है जो उत्तरी इटली का एक शहर है साथ साथ इसकी सीमा स्विटजरलैंड से भी लगती हुई है . यह यहां के लोम्बार्डी प्रांत की क्षेत्रीय राजधानी और रोम के बाद इटली का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला शहर है। शहर की आबादी लगभग 14 लाख है. यह यूरोपीय संघ में चौथा सबसे अधिक आबादी वाला क्षेत्र है। राष्ट्रीय स्रोतों के अनुसार, विस्तृत मिलान महानगरीय क्षेत्र (जिसे ग्रेटर मिलान भी कहा जाता है) की जनसंख्या 49 लाख अनुमानित है, जो इसे इटली का अब तक का सबसे बड़ा महानगरीय क्षेत्र और यूरोपीय संघ में सबसे बड़े क्षेत्रों में से एक बनाता है। मिलान इटली की आर्थिक राजधानी, यूरोप की आर्थिक राजधानियों में से एक और वैश्विक वित्तीय केंद्र है.       मिलान एक अग्रणी अल्फा विश्व स्तरीय शहर है, जो कला, रसायन, वाणिज्य, डिजाइन, शिक्षा, मनोरंजन, फैशन, वित्त, स्वास्थ्य सेवा, मीडिया (संचार), सेवाएं, अनुसंधान और पर्यटन के क्षेत्र में अग्रणी है। इसका व्यावसायिक जिला इटली के स्टॉक एक्सचेंज और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बैंकों और कंपनियों के मुख्यालयों की मेजबानी करता है। सकल घरेलू उत्पाद क

अथ इटली सफ़र कथा - 1

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अथ इटली सफ़र कथा - 1     Switzerland की यात्रा खत्म कर हम ट्रेन द्वारा कुछ देरी से इटली के सीमांत शहर मिलान में पहुंचे. वैसे तो यहां सूर्योदय सुबह 5 बजे होकर अस्त रात 9.30-10 बजे तक हो जाता है. लोग भी अपना काम धंधा बंद कर अपने घर आकर परिवार के साथ समय बिताते हैं परंतु सूरज निकलने के बावजूद भी रेस्तरां और बार के इलावा सब कुछ लगभग बंद ही होता है. हम रात 9.30 बजे मिलान के रेलवे-स्टेशन पर पहुँचे. बाहर निकलने पर अपने होटल जो पहले ही बुक करवा रखा था वहां जाने का विचार बनाने लगे. इटली आने से पहले ही हमें हमारे शुभचिंतकों ने सलाह दी थी कि यहां जेब कटना एक सामान्य सी बात है इसलिए सावधान रहे और यदि कोई व्यक्ति आपकी मदद की भी पहल करे तो पहले जांच ले और फिर मदद ले. प्लेट फार्म की सीढियों से उतरते हुए मेरी पत्नी कृष्णा कांता उनके पास कुछ ज्यादा सामान होने की वज़ह से असहज थी. तभी एक युवती आई और उसने सहायता की पेशकश की. पर हम तो शंकित थे इसलिए मना कर दिया. फिर देखा कि उस बालिका ने एक अन्य बुज़ुर्ग की उतरने में सहायता कर रहीं है तब पछतावा हुआ कि हम गलत थे. दीदी निर्मला देशपांडे जी अक्सर कह

इति स्विटजरलैंड सफर कथा - 20

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इति स्विटजरलैंड सफर कथा . छह दिन बिना किसी विराम स्थान स्थान पर घूमने के बाद आज हमारी यात्रा के पहले चरण को विराम मिल गया और interlacken पहुंच कर हमने इटली के लगते हुए मिलान शहर की ट्रेन पकड़ी,जो बहुत ही सुविधाजनक थी. रास्ते में स्विटजरलैंड की पहाड़ियां, नदियां, जंगल और छोटे बड़े शहरों के बीच से गुजर कर कब मिलान पहुंच गई इसकी कतई आभास तक नहीं हुआ.    एक देश से दूसरे देश में ट्रेन से पहुंचने का यह मेरा दूसरा अनुभव था. समझौता एक्सप्रेस जो दिल्ली से लाहौर तक जाती थी, उसमें मैंने अटारी बॉर्डर (इंडिया) से वाघा बॉर्डर (पाकिस्तान) तक का सफ़र याद किया. कुल एक दो किलोमीटर का ही सफर था परंतु था बहुत ही उबाऊ, जोखिम और थकान भरा. पहले इंडिया में हमारी चेकिंग हुई और immigration भी. पूरी ट्रेन में 300- 400 सवारी थी जिनकी चेकिंग होने में लगभग कई घण्टे लगे. फिर हम लाहौर के लिए चले. कुछ दस - पंद्रह मिनट में हम वाघा पहुंचे. यहां पूरी ट्रेन खाली करवायी गई और फिर वही चेकिंग और इमिग्रेशन जिसमें खर्च हुए जिल्लत भरे लगभग तीन घंटे. और इस प्रकार 6 बजे शाम अटारी से चली ट्रेन लगभग 5 घण्टे बाद लाहौर पह

घुमक्कड़ की डायरी (बापू की खोज में - स्विटजरलैंड - 18)

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"बापू की खोज में - स्विटजरलैंड"     नोबल पुरस्कार से सम्मानित  रोम्या रोलां (Romian Rolland) एक ऐसा नाम है जिनके बारे में कहा गया है कि उनका तन विदेशी पर मन भारतीय था. उनका जन्म 29 जनवरी, 1866 को हुआ और मृत्य 30 दिसम्बर, 1944 को हुई. सन 1915 में वे नोबल पुरस्कार से सम्मानित हुए और उन्होंने पुरस्कार से प्राप्त सारी राशि (1,20,000 रुपये) रेड क्रॉस सोसाइटी को उसके कार्यो के लिए दान कर दिए. वे वह व्यक्ति थे जिन्हें बापू की प्रिय शिष्या मीराबेन (Madeleine Slade) अपने देश इंग्लैंड के आने से पहले उनके घर स्विटजरलैंड मिलने गई थी. वास्तव में वे ही उनके प्रेरक, मित्र एवं गुरु भी थे. मीरा बेन ही वास्तविक सृजक थी बापू की उस यात्रा की कि जब वे सन 1931 में लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में शामिल होने के बाद पांच दिन तक स्विटजरलैंड आए और रोम्या रोलां के पास उनके घर  जो उनके Villeneuve में झील किनारे,जेनेवा मे था, अपने पुत्र देवदास गांधी और अपने सहयोगी प्यारे लाल और महादेव देसाई के साथ 6 से 11 दिसम्बर, 1931 तक ठहरे.      महात्मा गांधी ने इ

घुमक्कड़ की डायरी - 17 (Rosenlaui Glacier, Switzerland /05.06.2024)

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[  Rosenlaui Glacier    आज Switzerland में हमारा आखिरी दिन था. आज शाम की Interlocken स्टेशन से शाम को 6 बजे मिलान, इटली के लिए ट्रेन पकड़नी थी पर दोपहर चार बजे तक हमारे पास फुर्सत ही फुर्सत थी. अतः बेटे ने कहा कि बेशक स्विटजरलैंड में आज अंतिम दिन है पर इसे हम बेमिसाल दिन बनाएंगे. इसलिए पहाडियों के रास्ते हम स्विटजरलैंड के सबसे खूबसूरत और बड़े  Rosenlaui Glacier की ओर बढ़ चले. रास्ता काफी सकड़ा और एक तरफ का था. कई बार सामने से कोई अन्य गाड़ी और बस आती तो एक तरफ बचाव करते हुए रुकते और उसके जाने के बाद हम ऊपर की तरफ गाड़ी को चढ़ाते. लगभग एक घण्टे के सफ़र के बाद हम अपने गन्तव्य पर पहुंचे.      पार्किंग में गाड़ी खड़ी करने के बाद उस चारों ओर बर्फीली पहाडियों से ढके एक स्थान पर एक जलपान की एक दुकान थी. वहां हम कुछ रुके जलपान किया. वहीं हमें एक लंदन निवासी पाकिस्तानी युवती मिली जो अकेले ही यात्रा पर निकली थी. अपनी हम जुबान को पाकर उसकी यात्रा के अनेक किस्से हमने सुने.     Rosenlaui Glacier कुल 5 किलोमीटर में फैला हुआ है और इसका खूबसूरत शिखर ऐसे लगता है कि म

Kinderdijk, Netherlands /09.07.2024

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Kinderdijk,Netherlands.    आज हमे एम्सटर्डम से लगभग 100 किलोमीटर दूर एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान Kinderdjik जाने का अवसर मिला  नीदरलैंड्स आकर लोग इस देश के बड़े बड़े शहरों में तो जाकर यहां की एतिहासिक विरासत की नामसूची इमारतों, म्युजियम, पार्क, नदियों - नहरों और बंदरगाहों को घूमने के लिए तो जाते हैं परन्तु यहां के पराक्रमी लोगों के शौर्य को देखने नहीं जा पाते. इसका कारण यह भी हो सकता है कि सैलानी कुछ दिनों के लिए यहां आते हैं और उन दिनों में प्रमुख स्थानों पर ही जाना होता है. पर हम तो यहां पूरे तीन महिने के करीब रुके हुए हैं, इसलिए समय ही समय है दुर्लभ स्थानों को भी देखने का.    जब से आमिर नियाजी साहब हमारे संपर्क में आए हैं उन्होंने हमारे घूमने का नजरिया ही बदल दिया है.      जैसा कि हम जानते हैं कि नीदरलैंड्स का 40 प्रतिशत भू-भाग समुद्र तल से 4-6 मीटर नीचे है. अर्थात यहां हर समय समुद्री तूफान और बाढ़ का खतरा बना रहता है. परंतु यहां के तकनीक विशेषज्ञों और जल प्रबंधन वैज्ञानिकों ने आज से लगभग 400 साल पहले ही ऐसी व्यवस्था की जिससे इन आपदाओं से बचा जा सके और आज उ

देश बेशक बंट गए, पर दिल न बंटने दे

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देश बेशक बंट गए पर दिल नहीं बंटने दें.      15 अगस्त, 1947 न केवल सैंकड़ों साल की दासता की बेड़ियाँ तोड़ कर नव नवोदित भारत राष्ट्र के उदय का दिन था, वहीं मानव सभ्यता के उदय के समय से साथ रहते रहे एक संस्कृति,इतिहास, सभ्यता, भाषा - बोली के लोगों के धर्म के नाम पर विभाजन का भी दिन भी था. यह दीगर सवाल है कि धर्म पहले आया या कि नस्ल, जाति और समूह.      पर एक बात साफ़ है कि अंग्रेज़ों के आने से पहले धर्म के नाम पर राष्ट्र की कोई कल्पना नहीं थी. हमारा देश ऐसा था कि यहां जो भी आया चाहे वे धर्म प्रचारक के रूप में, चाहे एक व्यापारी के तौर पर अथवा एक लुटेरे या एक आक्रांता के भेष में वह यही बस गया, बेशक कुछ अपवाद को छोड़ कर. चीनी यात्री हू एन सांग और फाईयान ऐसे दो व्यक्ति हैं जो भारत की सम्पन्नता और आध्यात्मिक संपदा को विस्तार से बताते हैं.     नेता जी सुभाष चंद्र बोस द्वारा लिखित पुस्तक "इंडियन स्ट्रगल " में वैदिक काल से सन 1942 तक के अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद के खिलाफ़ लड़े गए संघर्ष और आन्दोलन की विस्तार से जानकारी देते है. यह एक ऐसा आधिकारिक दस्तावेज़ है, जिसे किसी भी वाद स

घुमक्कड़ की डायरी ( Aareschlucht, आरे गॉर्ज (जर्मन: आरेश्लुच्ट,स्विटजरलैंड की यात्रा - 16)

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आज हम सुबह ही आरे गॉर्ज (जर्मन: आरेश्लुच्ट)    पहुंचे. स्विटजरलैंड के अनेक बहुत ही खूबसूरत दर्शनीय स्थलों में से सर्वोत्कृष्ट के रूप में इसकी गणना की जाती है. हमने पार्किंग में गाड़ी खड़ी की और लगभग एक किलोमीटर पैदल चल कर यहां पहुंचे.    यह घाटी एक लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण है, कई आगंतुक पास के रीचेनबाक जलप्रपात से आकर्षित होते हैं, जिसे सर आर्थर कॉनन डॉयल ने प्रोफेसर मोरियार्टी द्वारा शर्लक होम्स की हत्या के लिए सेटिंग के रूप में चुना था। घाटी के साथ पैदल पथ बनाने की अनुमति 1887 में दी गई थी, और यह पैदल मार्ग 1889 से जनता के लिए खुला है। 1912 से 1956 तक, मीरिंगेन-रीचेनबाक-आरेस्च्लुच ट्रामवे ने घाटी के पश्चिमी प्रवेश द्वार को मीरिंगेन से जोड़ा; 1946 से मीरिंगेन-इनर्टकिर्चेन रेलवे ने भी यही उद्देश्य पूरा किया है। पश्चिमी प्रवेश द्वार पर रेस्तरां और कियोस्क पहली बार 1928 में बनाया गया था और 1987 में इसका पुनर्निर्माण किया गया  2008 में इस प्रवेश द्वार पर एक बिस्टरो और कियोस्क जोड़ा गया था। घाटी के माध्यम से पथ तक घाटी क