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Showing posts from January, 2020

भाई- भाई

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*यह तो नाथूराम का ही भाई निकला* । (Nityanootan Broadcast Service)     कल 30 जनवरी , महात्मा गांधी के शहीदी दिवस पर एक गोपाल शर्मा नाम के युवक ने एक देशी तमंचे से जामिया मिलिया ,दिल्ली में आंदोलनकारियों पर *यह लो आज़ादी*  और *जय श्री राम* का नारा लगाते हुए , निशाना साध कर पुलिस की हाजिरी में गोली चलाई जिससे एक  नौजवान घायल हो गया । यह एक ऐसा कृत्य है जिसकी कठोर निंदा की जानी चाहिए ।  गोली चलाने का भी ऐसा दिन चुना गया जिस दिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जघन्य हत्या एक हत्यारे नाथूराम गोडसे ने गोली मार कर  दी थी ।       अब यदि कोई यह कुतर्क दे कि गोली तो तमंचे से चली थी। तमंचा एक नाबालिग के हाथों में था। यह नाबालिग काफी दिनों से परेशान था और इसी परेशानी में ही उसने यह कुकृत्य किया तो यह समझ से बाहर की बात है। यदि वह परेशान था तो उसने यह काम कहीं और क्यों नहीं किया? क्या वह देसी तमंचे की खोज किसी परेशानी में ही उससे हो गई? यह सब निरापद प्रश्न है? जिसे उठाया जा रहा है। पर एक बात हम ध्यान रखें कि हम भविष्य की एक ऐसी पीढ़ी को पोषित कर रहे हैं जो परेशानियों का बहाना लेकर अपने मन, दिल

जम्मू में महात्मा गांधी का शहीदी दिवस समारोह

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*जम्मू में शहीदी दिवस* *गांधी ग्लोबल फैमिली की जम्मू -कश्मीर इकाई द्वारा 30जनवरी को जम्मू की ऐतिहासिक मुबारक मंडी में आयोजित शहीदी दिवस पर उमड़ी भीड़ ने यह प्रमाणित किया कि महात्मा गांधी को जो इस सूबे से सन 1947 में मोहब्बत और भाईचारे के आशा की किरण दिखाई दी थी वह आज भी बरकरार है । न केवल जम्मू से बल्कि कारगिल ,श्रीनगर सहित दूरदराज के हर कोने से लोग आए थे जो गांधी विचार से प्रभावित थे तथा स्व0 दीदी निर्मला देशपांडे जी से प्रेरित रहे थे । अनेक ऐसे लोग थे जिन्होंने स्व0 दीदी के साथ इस सूबे में सद्भाव का काम किया था पर आज उनके जाने के बाद स्वयं को नेतृत्वहीन मानते थे । प्रसन्नता की बात यह थी कि बापू को श्रद्धांजलि देने वालों हजारों की संख्या में उमड़े जनसैलाब में अधिकांश युवा व विद्यार्थी थे* ।     * सभा के आयोजक पद्मश्री डॉ एस पी वर्मा ने स्व0 दीदी से ही सबको जोड़ने के हुनर को सीखा था । संत विनोबा जी के पंच शक्ति सहयोग की तमाम शक्ति यानी विद्वद, सज्जन , शासन,महाजन एवम जन शक्ति का सम्पूर्ण दर्शन इस कार्यक्रम में था । सभी राजनैतिक दलों ,धार्मिक एवम स्वयमसेवी संगठनों के कार्यकर्ता अपने

30 जनवरी बनाम 10 जनवरी

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10 नवम्बर बनाम 30 जनवरी  🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸मेरे पिता जी उस मंजर के चश्मदीद गवाह थे ,वह दिन 10 नवम्बर ,1947 का था जब महात्मा गांधी, किला ग्राउंड पानीपत में एक जनसभा को सम्बोधित करने आए थे । विभाजन के बाद पानीपत  की बड़ी आबादी जो मुस्लिम समुदाय की थी पाकिस्तान न जाकर हिंदुस्तान मे यानि अपने बाबा ए वतन पानीपत में ही रहना चाहती थी । मेरे पिता  बताया करते कि पार्टीशन से पहले पानीपत की 70 फीसदी  आबादी मुस्लिम थी । आपस में भाई चारा इतना कि भाइयो से भी ज्यादा प्यार । शादी -ब्याह ,ख़ुशी -गमी व मरघट में आना जाना । मुस्लिम लोग  पढ़े -लिखे व नौकरीपेशा थे व घर की सारी जिम्मेवारी घर की औरते ही सम्भालती थी और यहाँ तक कि घर की पहचान भी औरत से ही थी यानि 'फलां बीबी का घर '। मेरे पिता खुद भी उर्दू -अरबी-फ़ारसी के टीचर थे तथा उन्होंने अलीगढ मुस्लिम कॉलेज से अदीब ए आलिम ,फ़ाज़िल के इम्तहान पास किये थे ।  शहर में सिर्फ दो ही स्कुल थे एक मुस्लिम हाली स्कूल व दूसरा जैन हाई स्कूल ।वे जैन स्कूल में ही पढ़े व  वहीँ सन् 1928 -48 तक उपरोक्त विषयो के टीचर रहे पर  थे महात्मा गांधी के पक्के चेले व सेक्युल

मजबूती का नाम महात्मा गांधी

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*मजबूती का नाम महात्मा गांधी* *Innervoice* *Nityanootan Broadcast Service* कल बड़े पर्दे पर गांधी फ़िल्म देखने का मौका मिला । बहुत ही बेहतरीन पटकथा ,सुव्यवस्थित, ज्ञान एवम मनोरंजन से परिपूर्ण मूवी । हर कलाकार ने अपना किरदार बहुत ही खूबसूरत ढंग से निभाया है । आज के परिपेक्ष में यह फ़िल्म न केवल उपयोगी है परन्तु प्रासंगिक भी है । इस देश ने बापू को बहुत सम्मान दिया है । राष्ट्रपिता का दर्जा दिया है । दिल्ली राजघाट उनकी समाधि पर हर कोई विदेशी राजनयिक व पर्यटक जो भारत आता है ,वहाँ जाकर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता है । हर स्कूल-कॉलेज ,न्यायालय तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों पर उनके चित्र दृष्टिगोचर होते है ।  भारतीय मुद्रा पर भी उनका चित्र प्रकाशित किया है । इस देश मे देवालयों में भगवान की मूर्ति स्थापना के अतिरिक्त यदि किसी एक व्यक्ति की कोई प्रतिमा है तो वह गांधी की ही है । भारत में तो एक राज्य की राजधानी का नाम ही उनके नाम पर *गांधीनगर* है । मोहल्लों ,बस्तियों और अन्य संस्थानों के उनपर नाम तो अगणित है । एक राजनीतिक पार्टी तो चलती ही *गांधी* के नाम पर है तो दूसरी ओर एक संगठन जो स्वयं

संविधान की पाठशाला

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* माता सीता रानी सेवा संस्था द्वारा  संचालित  निर्मला देशपांडे स्थित हाली अपना स्कूल में गणतंत्र दिवस के अवसर पर एक बृहद कार्यक्रम का आयोजन *संविधान का पाठ कार्यशाला*' *आयोजित किया गया।इस अवसर पर पर अपने विचार प्रकट करते हुए संस्थान के अध्यक्ष एवं प्रसिद्ध उद्योगपति श्री ओमप्रकाश माटा ने कहा कि भारतीय संविधान देश के सभी नागरिकों को समता, बंधुत्व एवं लोकतंत्र का संदेश देता है। यह हमें अधिकार देता है कि संविधान के सम्मुख सभी नागरिक चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्र एवं लिंग के हो, इस देश में बराबर के अधिकारी हैं*। *बाबा साहब अंबेडकर के नेतृत्व में बनाया यह संविधान भारत की स्वतंत्रता जो महात्मा गांधी, सरदार भगत सिंह एवं नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे क्रांतिकारियों के नेतृत्व में जनता ने लड़ी, यह संविधान उसकी अभिव्यक्ति है। आज के दिन हमारे बुजुर्गों ने इस संविधान के अनुरूप इस देश को चलाने का संकल्प लिया था। संविधान की प्रस्तावना में प्रथम शब्द में ही समस्त भारत के नागरिकों को संगठित होने का आह्वान किया है। भारत के संविधान को बचाने की जिम्मेदारी हम सब नागरिकों की है, जो हमारा

निर्मला देशपांडे संस्थान में गणतन्त्र दिवस समारोह

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माता सीता रानी सेवा संस्था द्वारा निर्मला देशपाण्डे संस्थान में संचालित हाली अपना स्कूल में  71वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर झंडारोहण ,संस्थान के  चेयरमैन श्री ओ पी माटा , स्कूल के निदेशक श्री राम मोहन राय एडवोकेट व प्रसिद्ध सहित्यकार श्री  रमेश चन्द्र पुहाल द्वारा  संयुक्त रूप से किया गया ।  संस्था की अध्यक्षा श्रीमती कृष्णाकांता ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। इस मौके पर विद्यार्थियो ने रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये व राष्ट्रभक्ति के गीत गाये ।  इस अवसर पर मुख्य अतिथि श्री ओम प्रकाश माटा ने गणतंत्र दिवस के महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि 26 जनवरी को हमारे देश का सविंधान लागू हुआ था ।इसलिये हर वर्ष 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। एक स्वतंत्र गणराज्य बनने के लिये भारतीय संविधान द्वारा 26 नवंबर 1949 को संविधान अपनाया गया था ,लेकिन इसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था। डॉ भीमराव अंबेडकर ने संविधान को 2 साल 11 महीने और 18 दिनों में तैयार कर राष्ट्र को समर्पित किया था और हमारा संविधान विश्व का सबसे बड़ा संविधान माना जाता है। अतिथियों ने सभी उपस्थित जन क

गांधी के सत्याग्रह के मौजूदा प्रयोग

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**जामिया वाला-शाहीन बाग़ बना जलियावाला बाग़*     बा बापू 150 वर्ष में सत्याग्रह के प्रयोग जामिया मिल्लिया और उसी से सटे शाहीन बाग़ ,दिल्ली में जिस प्रकार से हो रहे है, वे गांधी विचार की वर्तमान समय मे प्रासंगिकता को भी उद्धरित कर है । यह कहते हुए कतई शक नही है कि मजबूरी का नाम नही ,आज मजबूती का नाम गांधी है ।     इससे पहले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय तथा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों एवम स्टाफ पर पुलिस ने उनके कैंपस में घुस कर जिस बेरहमी से मारा उसने अंग्रेज़ी बर्बरता की याद ताजा कर दी । प्रतिकार के लिये आज गांधी तो नही आये परन्तु उनका विचार उनका रक्षक बन कर आगे आया जिसको उन्होंने स्वयम अंगीकृत कर निश्चय किया कि वे इसका मुकाबला अहिंसा से करेंगे यानी यदि कोई उन पर हिंसा करेगा तो वे उसे शालीनता से सहन करेंगे परन्तु न तो झुकेंगे ,न पलायन करेंगे और न ही हार मानेंगे ।    क्या यह अजब इतिफाक नही कि गुरु नानक देव जी महाराज के जन्म के 550 वें वर्ष , बा बापू के 150वें वर्ष तथा अमृतसर के जलिया वाले बाग़ नरसंहार की शताब्दी वर्ष में उसको जनता व शासन /सरकार अपने-अपने ढंग से मना रहा है ।  ग

सुभाष के सपनों का भारत

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*सुभाष जयंती* (Nityanootan Broadcast Service) *नेता जी सुभाष चंद्र बोस की 123वीं जन्म जयंती ऐसे समय मे है जब उनकी आज़ादी के सपनों को चुनौती है । वे इंडियन नेशनल कांग्रेस के अग्रणी नेता रहे । दो बार उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे । आज़ाद हिंद फौज के संस्थापक कमांडर इन चीफ रहे और अपने अंतिम दिनों में उन्होंने अपने स्वप्नों के भारत की तस्वीर को वैचारिक रूप देते हुए एक राजनीतिक पार्टी फारवर्ड ब्लॉक की स्थापना की* ।    *वे एक  समर्पित राष्ट्रभक्त युवक रहे । उनके पिता श्री जानकी दास बोस चाहते थे कि वे एक श्रेष्ठ प्रशासनिक अधिकारी बन सरकार की सेवा करें । अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करते हुए उन्होंने इंडियन सिविल सर्विसेज की परीक्षा भी दी और उस इम्तहान में टॉपर भी रहे । परीक्षा परिणाम को अपनी उपलब्धि मानते हुए ,उन्होंने अपने पिता को ही समर्पित करते हुए अपना इस्तीफा साथ ही भेज दिया , क्योकि वे शासन सेवा न करके देश सेवा करना चाहते थे । अपने पिता को लिखा पत्र उनकी आंकाक्षाओं का स्पष्ट द्योतक है ,जिसे हर महत्वाकांक्षी नौजवान को पढ़ना चाहिए* ।       *स0 भगत सिंह ने राष्ट्रीय आज़ादी के परिपेक्ष्य म

गोद लीजिए जरूरतमंद बच्चों की शिक्षा

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गोद लीजिये जरूरतमन्द  बच्चों की शिक्षा... जो गरीब और बेसहारा हैं /पिछड़ी बस्तियों में रहते हैं... जो पढ़ना चाहते हैं आगे बढ़ना चाहते हैं किन्तु.. 👉🏼नहीं है जिन पर पिता का साया, किसी तरह हो रहा जिनका गुज़र बसर... 👉🏼नहीं जिनके माता-पिता किसी को दादी दादा या कोई अन्य रिश्तेदार  किसी प्रकार दे रहे हैं सहारा ...... 👉🏼घर का अभिभावक/माँ बाप जूझ रहे है लम्बी बीमारी से और नहीं है आमदनी  का कोई साधन, किसी न किसी तरह खाने या पहनने का जुगाड़ ही हो पाता हो... 👉🏼होनहार  हैं बच्चे, किन्तु नशे-जुएं या अन्य बुरी आदतों के लती है बाप, माँ जूझकर चोरी छिपे किसी न किसी तरह अपने बच्चे को पढ़ा रही हैं...   बच्चों का क्या कसूर सैकड़ो बच्चे है ऐसे जिन्हें आप  के सहारे या मदद का इंतज़ार है  वे खुश हो जाते हैं  जब उनके सर पर आप जैसे किसी का साया मिल जाता है... उनके सपनों की उड़ान को पंख मिल जाता है किसी भी शहर में रहते हुए आप बच्चों की शिक्षा गोद ले सकते हैं उनका सत्र स्पांसर कर सकते हैं. आईये पढ़ायें इन्हें आगे बढ़ाएं... अपनी सुविधानुसार पूर्ण (किताब कापी स्टेशनरी+ यूनिफार्म+वार्षिक शुल्क)

अलविदा श्री शमशेर सिंह सुरजेवाला

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एक मित्र, साथी व सहयोगी *विनम्र श्रद्धांजलि*       श्री शमशेर सिंह सुरजेवाला एक प्रतिभाशाली राजनीतिज्ञ ही नहीं अपितु एक समर्पित कार्यकर्ता एवं निरपेक्ष समाज सेवी थे । उनके निधन से हरियाणा ने जहां एक जननेता खो दिया है वहीं कांग्रेस पार्टी ने एक सुलझा हुआ विचारक तथा मार्गदर्शक भी खो दिया है ।    श्री सुरजेवाला से हमारा परिचय वर्ष 1973-74 में हुआ था ,जब पूरे देश में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के विरूद्ध समूचे विपक्ष का आंदोलन श्री जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में चल रहा था । उस समय वे तथा चोधरी बीरेंद्र सिंह ,पूर्व केंद्रीय मंत्री , कांग्रेस पार्टी में वामपंथी धड़े के नेता थे और हम प्रो0 रती राम चौधरी के साथ टीचर्स स्टूडेंट्स फ्रंट पर सीपीआई में सक्रिय थे । हमारा विचार था कि जेपी का आंदोलन दक्षिण पंथ से अनुप्रेरित है तथा इसकी किसी भी प्रकार से सफलता देश को फसिज्म की तरफ ले जाएगी । एक तरफ जेपी का संपूर्ण क्रांति आंदोलन था दूसरी तरफ कांग्रेस व सीपीआई का संयुक्त प्रतिरोध था । हम सभी मिल कर फासीवाद विरोधी कन्वेंशन करते तथा लोगो को इसके प्रति सचेत रहने के लिए जागरूकता अभियान चलाते

खुदाई ख़िदमतगार

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*महान स्वतन्त्रता सैनानी ,राष्ट्र नायक खान अब्दुल गफ्फार खान (बादशाह खान-सीमांत गांधी) की पुण्य तिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि* ************************* (Nityanootan Broadcast Service)  *खुदाई खिदमतगार* !            💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐सम्भवतः यह बात27-28 जुलाई,1987 की है ,दीदी निर्मला देशपांडे के कहने पर मैने पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी ज़ैल सिंह जी के निवास पर फोन कर उनसे दीदी की मुलाकात का समय माँगने के लिए किया था । वह मेरे लिये बहुत ही रोमांच करने वाला वाक्या था । ज्ञानी जी  दो एक दिन पहले ही राष्ट्रपति पद से सेवा निवृत हुए थे तथा राष्ट्रपति भवन से अपने नए निवास पर स्थानांतरित हुए थे ।  दीदी ने कहा था कि वहाँ  उनका कोई पी ए फोन उठाएगा तब उनके रेफरेंस से मै समय मांगू । मेरे फोन मिलाने पर उधर से आवाज आने  पर अपना प्रयोजन बताया तो आवाज आई 'मै ही ज़ैल सिंह बोल रीआ  हां '। मेरी तो सिट्टी पिट्टी गुम । खुद ज्ञानी ज़ैल सिंह जी ही बोल रहे थे । मैने फिर हिम्मत जुटाई और अपनी बात कही तो उन्होंनेकहा कि 'यदि टाइम हो तो अभी आ जाओ '। मैने शुक्रिया कह कर फोन रख दिया । सारी बा

अरदास

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Inner Voice *अरदास* (Nityanootan Broadcast Service) बिल्कुल सच कहा मेरे दोस्त आपने हमारे बारे में कि हम अति भाग्यशाली है । परमपिता परमेश्वर की असीम कृपा है कि उसने मेरा जन्म ऐसे परिवार में किया जहां माता-पिता दोनों ही संस्कारवान ,सदाचारी व धर्म पारायण थे । धर्म उनके लिये किसी कर्म कांड का विषय न होकर धारण करने का था । मॉ कट्टर आर्य समाजी व पिता उदार सनातनी । महात्मा गांधी के विचारों ने उन्हें सर्वधर्मी बनाया था । हम बहुत ही भाग्यशाली थे कि हमारा घर देवी मंदिर तथा दरगाह हज़रत बू अली शाह के बिल्कुल बीचो- बीच स्थित था । गुरुद्वारा नजदीक होने की वजह से गुरबाणी का पाठ, तड़के-तड़क सहज ही सुनाई देता था । आर्य समाज भवन भी पास ही था जहां मां के साथ कूदते -फांदते अक्सर जाते और हवन में हिस्सा लेते । पिता जी के एक दोस्त पादरी साहब(डेविड सर के पिता) अक्सर हमारे घर आते और क्रिसमस पर हम भी चर्च में जाते । हमारे कायस्थान मोहल्ले में भी विविधता का माहौल था । हर धर्म व जाति के लोग एक परिवार की तरह रहते । ऐसे ही वातावरण में हमारी परवरिश हुई । संकीर्णता हमारे ओरे धोरे भी नही थी । सब ,सब के घरों मे

कस्तूरबा

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*Inner voice* *राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की स्वनामधन्य पत्नी माता कस्तूरबा का भी यह 150वा  जन्म जयंती वर्ष है । उनका किसी भी रूप में बापू से कम योगदान न था । खुद गांधी जी ने इस सत्य को अनेक बार स्वीकार किया था । एक साधारण घरेलू महिला क्या कुछ नही कर सकती इसका सुंदर चित्रण कस्तूरबा के जीवन से बेहतर कही नही मिलता है । वे स्वतन्त्रता आंदोलन की महान सैनानी, रचनात्मक कार्यो की अग्रणी कार्यकत्री एवम अपने समूचे परिवार की कुशल मुखिया रही । महात्मा गांधी का राष्ट्रीय आंदोलन में उन्होंने जिस प्रकार उन्होंने बढ़ चढ़ कर सहयोग किया  वह अतुलनीय है* ।     *शाहीन बाग़ ,दिल्ली मे पिछले लगभग एक माह से भी अधिक समय से महिला सत्याग्रहियों की कार्य प्रणाली , सत्य व अहिंसा के प्रति निष्ठा निसन्देह रूप से उनकी शक्ति का प्रदर्शन करती है* ।    *संत विनोबा भावे ने इसी शक्ति को स्त्री शक्ति जागरण कहा था । पवनार में ब्रह्म विद्या मंदिर का सरूप ,उनका अद्भुत प्रयोग था । इस आश्रम  का सम्पूर्ण दायित्व उन्होंने इन्ही ब्रह्म वादिनी बहनों को दिया । ईश्वर साक्षी है कि इन बहनों ने जिस सुंदर ढंग से इस मंदिर की व्यवस्था सम्
*Inner voice* *राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की स्वनामधन्य पत्नी माता कस्तूरबा का भी यह 150वा  जन्म जयंती वर्ष है । उनका किसी भी रूप में बापू से कम योगदान न था । खुद गांधी जी ने इस सत्य को अनेक बार स्वीकार किया था । एक साधारण घरेलू महिला क्या कुछ नही कर सकती इसका सुंदर चित्रण कस्तूरबा के जीवन से बेहतर कही नही मिलता है । वे स्वतन्त्रता आंदोलन की महान सैनानी, रचनात्मक कार्यो की अग्रणी कार्यकत्री एवम अपने समूचे परिवार की कुशल मुखिया रही । महात्मा गांधी का राष्ट्रीय आंदोलन में उन्होंने जिस प्रकार उन्होंने बढ़ चढ़ कर सहयोग किया  वह अतुलनीय है* ।     *शाहीन बाग़ ,दिल्ली मे पिछले लगभग एक माह से भी अधिक समय से महिला सत्याग्रहियों की कार्य प्रणाली , सत्य व अहिंसा के प्रति निष्ठा निसन्देह रूप से उनकी शक्ति का प्रदर्शन करती है* ।    *संत विनोबा भावे ने इसी शक्ति को स्त्री शक्ति जागरण कहा था । पवनार में ब्रह्म विद्या मंदिर का सरूप ,उनका अद्भुत प्रयोग था । इस आश्रम  का सम्पूर्ण दायित्व उन्होंने इन्ही ब्रह्म वादिनी बहनों को दिया । ईश्वर साक्षी है कि इन बहनों ने जिस सुंदर ढंग से इस मंदिर की व्यवस्था सम्

सवाल राष्ट्रीय एकता का है ।

सवाल मेरे हिन्दू होने का नही राष्ट्रीय एकता का है । (Nityanootan Broadcast Service)            मेरे एक मित्र ने मुझ से कहा कि नागरिकता संशोधन एक्ट ,आपको तो किसी तरह से प्रभावित नही करता तो फिर आप क्यों इसका विरोध कर रहा हूं ? उनका यह भी कथन था कि हम हिन्दुओ को तो खुश होना चाहिये कि एक ऐसा कानून बना है जो पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा अफ़ग़ानिस्तान में अपमान व पीड़ा की अवस्था मे रह रहे हमारे सहधर्मी भाई-बहनों को भारत मे शरण देने तथा नागरिकता देने का न्यायिक रास्ता साफ करता है ? उनका यह भी कहना रहा कि यह कानून तो पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष है क्योंकि यह पीड़ित ईसाई, बौद्ध, पारसी, सिखों तथा जैनों को भारत आने का रास्ता खोलता है । भारत ही तो ऐसा देश है जो इनकी पितृ भूमि है ,इसके अलावा वे जाएंगे कहाँ?     यह सभी ऐसे  मासूम प्रश्न है जो किसी को भी आंदोलित करते है । अभी हमारे शहर में इस कानून के पक्ष में एक रैली आयोजित हुई । उसके अनेक नारों में से कुछ चुनिंदा नारे यह भी थे *बिछड़ो को वापिस लाना है एक नया राष्ट्र बनाना है*। * *सी ए ए के समर्थन में राष्ट्रवादी मैदान में*।   इस बारे में कतई दो राय नही

गुड बाए -फ़िरदौसी -मिचिल

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नोआखाली ,बांग्लादेश से एक युवा रंगकर्मी फिरदौसी आलम व उनकी आठ वर्षीय बेटी मिचिल तक़वा उदीची आज लगभग 25 दिन हमारे परिवार के साथ बिता कर स्वदेश लौट गई । हम अभी- उन्हें विदा कर घर लौटे ही है । इस दौरान वे दोनों हम से इतना घुल-मिल कर पारिवारिक माहौल में रहे कि अब उनका जाना अखर रहा है ।     फिरदौसी की अब से पहले हमारी कोई मुलाकात व परिचय नही था । पर सोशल मीडिया ने इस पूरी दुनियां को इतना छोटा कर दिया है कि अब यह एक ग्लोबल विलेज सा लगता है । यह ही सूत्र बना हमारे परिचय का । पर इसे सन्दर्भ दिया ढाका में रह रहे मेरे मित्र प्रिंस ने ,जो अपने देश की कम्युनिस्ट पार्टी का एक अग्रणी नेता है तथा वह और मैं 1980 में लगभग छह माह तक  ताशकंद-मास्को (तत्कालीन सोवियत संघ) में एक साथ रहे थे । वैसे तो प्रिंस से भी 1980 के बाद कोई सम्पर्क नही था परन्तु गत वर्ष हमारी बांग्लादेश यात्रा के दौरान लगभग 38 वर्षो बाद हमारी मुलाकात हमारी बहन तंद्रा बरुआ व उनके पति नब कुमार राहा के प्रयासों से हुई थी ।   फिरदौसी ,नोआखाली में एक सांस्कृतिक ग्रुप उदीची (ध्रुव तारा)  के साथ जुड़ी है । बांग्लादेश के छोटे पर्द
*Inner voice* (Nityanootan Broadcast service)  लॉ फर्स्ट ईयर के एक विद्यार्थी से पता चला कि वह एक स्थानीय लॉ कॉलेज में प्रतिवर्ष लगभग एक लाख रुपये फीस देकर पढ़ रहा है । जब मैने अचरज किया तो वह बोला कि सोनीपत में तो एक कॉलेज में एल एल बी की एक साल की फीस लगभग आठ लाख रुपये सालाना है । इन सभी कॉलेजेस में यदि कोई होस्टल में भी रह रहा है तो लगभग इतना ही खर्च अतिरिक्त पड़ता है ।     पानीपत में ही स्कूल टाइम के मेरे अनेक सहपाठी आज प्रतिष्ठित मेडिकल डॉक्टर है। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि भी मेरी तरह ही साधारण ही है । जो एक गवर्मेन्ट एडिड स्कूल में मामूली फीस देकर पढ़े और फिर अपनी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर उनका मेडिकल कॉलेज में दाखिला हुआ और फिर व्यवसाय में आये । मैं कह सकता हूं कि इस प्रोफेशन में तमाम विसंगतियों के बावजूद भी उनके प्राइवेट अस्पताल में भारी संख्या में मरीज अपना इलाज अफफोर्डबल खर्च में करवाते है । आज भी सरकारी मेडिकल स्कूल ,कॉलेज अथवा व्यवसायिक संस्थान में इतनी ही फीस है जहाँ एक साधारण पृष्ठभूमि का कोई भी छात्र मामूली   फीस देकर  पढ़ सकते है । जबकि प्राइवेट संस्थानों में मेडिकल पढ़
सच कहा दोस्त, jnu ,kuk ,du जैसी यूनिवर्सिटीज को खत्म कर देना चाहिये । यहां गरीबो के बच्चे पढ़ते है । गरीब वैसे ही गुंडे ,जेबकतरे व हरामी होते है । वे हमारे टैक्स पर पढ़ते है । इस देश मे व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी व जियो यूनिवर्सिटी में ही पढ़ना चाहिए । पढ़ेगा इंडिया-बढ़ेगा इंडिया ।

छपाक

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*Inner Voice* (Nityanootan Broadcast Service)   *राष्ट्रीय महिला आयोग,भारत सरकार की अध्यक्ष श्रीमती रेखा शर्मा* की पोस्ट बहुत ही सराहनीय व महत्वपूर्ण है जिसमे उन्होंने कहा है कि फ़िल्म की नायिका व चरित्र इतना महत्वपूर्ण नही है ,जितना उस महिला की व्यथा को उजागर करना है ।      देश में साम्प्रदायिक माहौल आजकल इतना घिनौना व भयंकर हो गया है कि हर बात को हिन्दू-मुसलमान के नजरिये से देखने व समझने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है । कलाकार की अपनी भी व्यक्तिगत जिंदगी , सामाजिक सरोकार व राजनीतिक विचार होते है । अनेक बार वह अपनी इन सीमाओं से निकल कर समाज के गम्भीर मुद्दों को लेकर अपना किरदार निभाते हुए फ़िल्म बनाता है । हो सकता है कि हम उसकी विचारधारा से सहमत-असहमत हो परन्तु उसके अभिनय से अवश्य सहमत होते है । ख्वाजा अहमद अब्बास , कैफ़ी आज़मी, दिलीप कुमार, जावेद अख्तर ,शबाना आज़मी जैसे अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाकारों के अभिनय से क्या हम इसलिए प्रभावित होने से बचे कि वे सभी मुसलमान है और विचारों में वामपंथी भी । मोहम्मद रफी के गाये हिन्दू धर्म से सम्बंधित भजनों को क्या उन्होंने उसी आस्था व प्
गांधी ग्लोबल फैमिली के राष्ट्रीय सचिव मण्डल का वक्तव्य : "देशभर में आज ट्रेड यूनियन्स की तरफ से बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी ,आर्थिक मंदी , साम्प्रदायिक हिंसा व तनाव ,नागरिकता एक्ट,एन आर सी ,निजीकरण व आर्थिक संकट तथा शिक्षा संस्थानों में बढ़ते सरकारी व पुलिस हस्तक्षेप , विद्यार्थियों को कम सुविधाओं तथा बढ़ती फीस के विरोध में हड़ताल का नागरिक समाज को समर्थन करना चाहिये ।   न केवल सभी राजनीतिक दलों, सामाजिक व स्वयमसेवी संगठनों ,विद्यार्थियों तथा उनके विभिन्न समूहों ने इसे समर्थन दिया है वहीं ग्रीस स्थित 117 देशों के वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियन्स ने भी इसे समर्थन देकर इसे अंतरराष्ट्रीय बना दिया है, जिसका स्वागत होना चाहिए ।    हमारे देश मे जिस तरह से शासकीय दमन ,भेदभावपूर्ण निर्णय तथा साम्प्रदायिक नीयत सामने आ रही है, वह निश्चित रूप से हमारे लोकतंत्र ,धर्मनिरपेक्षता व संघीय ढांचे को क्षति पहुचायेगी । बहुसंख्यक समुदायों के तुष्टीकरण की नीति हमारे सामाजिक ढांचे को भी कमजोर करेगी ।देश मे बढ़ता हिंसा ,तनाव व विद्वेष का वातावरण हर भारतीय के लिये चिंता का विषय है । आज के हालात में उपद्रवियों

माता सीता रानी सेवा संस्था का स्थापना दिवस

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महिलाओं के अग्रणी संगठन माता सीता रानी सेवा संस्था के 30वें स्थापना दिवस के अवसर पर निर्मला देशपांडे संस्थान परिसर में आयोजित कार्यक्रम में मुख्यातिथि के रूप में अपने उदगार प्रगट करते हुए पानीपत अर्बन कोऑपरेटिव बैंक के संस्थापक ओमप्रकाश शर्मा ने कहा कि माता सीता रानी ने अपना सम्पूर्ण जीवन ,महिलाओं के शिक्षण प्रशिक्षण , विकास व सशक्तिकरण को समर्पित किया । उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में लड़े स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लिया तथा उस दौरान जेल गयी । खादी ,हरिजन सेवा तथा रचनात्मक कार्यो को लक्ष्य बना कर पिछड़े ,दलितो ,महिलाओं तथा समाज के अन्य कमजोर तबकों को एकजुट कर उन्हें स्वावलम्बी बनाने का काम किया । आज़ादी के बाद संत विनोबा भावे तथा उनकी आध्यात्मिक शिष्या व मानस पुत्री निर्मला देशपांडे जी की प्रेरणा से तत्कालीन संयुक्त पंजाब में भूदान यात्रा में भाग लिया । उन्होंने महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिये एक संगठित आंदोलन की शरुआत की । यही कारण था कि महिलाओं पर हिंसा करने वाले लोग स्व0 माता जी के नाम से खौफ खाते थे । उनके ही प्रयासों से पानीपत में महिला आर्य समाज तथा रेड क्रॉस सोसा
*Inner voice* *यात्रा वृतांत* (Nityanootan Broadcast service)  *श्री मधुवनदत्त चतुर्वेदी* ,मेरे हम ख़्याल ही नही हम पेशा व हम उम्र भी है । इतिफाक से मेरे बेटे की तरह उनके बेटे का नाम भी *उत्कर्ष* है । दोनों एक जैसे ही ऊर्जावान तथा युवा क्रांतिकारी ।     सोशल मीडिया पर मेरा उनसे सम्पर्क विगत कई वर्षों से है परन्तु मिलने का सौभाग्य पहली बार कृष्ण नगरी मथुरा में आने पर आज मिला । ब्रज क्षेत्र में बार बार आना सदा मेरे आकर्षण का केंद्र व सुखद रहा है पर इस बार का अनुभव विशेष रहा । *आम के आम गुठलियों के दाम* कहावत को चरितार्थ करता । जब मेरी पत्नी श्री द्वारिकाधीश मंदिर के दर्शन व विश्राम घाट श्री यमुना जी की आरती का दर्शन लाभ लेने पुण्य प्राप्त कर रही थी । उसी दौरान श्री चतुर्वेदी ,उनके सुपुत्र उत्कर्ष के साथ हम स्व0 दीदी निर्मला देशपांडे जी के अनन्य सहयोगी विख्यात रचनात्मक ,सामाजिक व राजनीतिक चिंतक श्री शिवदत्त चतुर्वेदी जी के साथ तात्कालिक सन्दर्भो में मार्गदर्शन प्राप्त कर रहे थे ।    श्री शिवदत्त चतुर्वेदी से मिल कर विश्राम घाट से चल कर यमुना के घाटों का दर्शन लाभ करते श्री कृष्ण जन्म