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Showing posts from November, 2019

कड़वा सच- पंकज चतुर्वेदी

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गांधी- नेहरु के संरक्षण में पले-बढे प्रख्यात उद्योगपति एक कडवे सच को बोलने से नहीं डरे, वह भी सरकार के सबसे ताक़तवर मंत्री के सामने ही . शनिवार को मशहूर उद्योगपति राहुल बजाज ने भरी महफिल में लाइव टेलीविज़न के सामने मोदी सरकार को आइना दिखा दिया। इकोनॉमिक टाइम्स अवार्ड्स कार्यक्रम में जिस समय मंच पर गृहमंत्री और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और रेल मंत्री पीयूष गोयल बैठे थे, राहुल बजाज ने खुलकर कहा कि आपसे डर लगता है। उन्होंने अपने छोटे भाषण में लड़खड़ाती आवाज में कहा कि भले ही कोई न बोले, लेकिन मैं कह सकता हूं कि आपकी आलोचना करने में हमें डर लगता है, कि पता नहीं आप इसे कैसे समझोगे। राहुल बजाज ने कहा, “हम यूपीए-2 सरकार को गाली दे सकते थे, लेकिन डरते नहीं थे, तब हमें आजादी थी. लेकिन आज सभी उद्योगपति डरते हैं कि कहीं मोदी सरकार की आलोचना महंगी न पड़ जाए।” उन्होंने कहा, हमारे मन में है, लेकिन कोई इंडस्ट्रियालिस्ट बोलेगा नहीं, हमें एक बेहतर जवाब सरकार से चाहिए, सिर्फ इनकार नहीं चाहिए, मैं सिर्फ बोलने के लिए नहीं बोल रहा हूं, एक माहौल बनाना पड़ेगा, मै

A Doctor as God - courtesy Ferdowsi Alom

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" উনি আমাদের সবাইকে বিশাল এক লজ্জায় ফেলে দিলেন" টানা ৩২ বছর টাংগাইল জেলার মধুপুর উপজেলার  কালিয়াকৈরে গ্রামের দরিদ্র মানুষদের চিকিৎসা দেয়ার পর মারা যান ডাক্তার ভাই হিসাবে পরিচিত ডাক্তার এড্রিক বেকার। দূরারোগ্য ব্যধিতে আক্রান্ত হলে অনেকেই চেয়েছিলেন- উনাকে ঢাকাতে নিয়ে গিয়ে চিকিৎসা দিতে। তিনি ঢাকা যাননি। তাঁর তৈরি করা হাসপাতালেই তিনি ২০১৫ সালে মারা যান। মৃত্যুর পূর্বে তিনি চেয়েছিলেন- এই দেশের কোনো মানবতবাদী ডাক্তার যেন গ্রামে এসে  তাঁর প্রতিষ্ঠিত এই হাসপাতালের  হাল ধরে। কিন্তু হানিফ সংকেতের ইত্যাদিতে প্রচারিত প্রতিবেদন অনুসারে - এ দেশের একজন ডাক্তারও   তাঁর সেই আহ্বানে  সাড়া দেয়নি।  দেশের কেউ সাড়া না দিলেও তাঁর আহ্বানে সূদর আমেরিকা থেকে ছুটে এসেছেন- আরেক মানবতাবাদী ডাক্তার দম্পতি  জেসিন এবং মেরিন্ডি।  যে দেশে যাওয়ার জন্য দুনিয়ার সবাই পাগল।  শুধু নিজেরা যে এসেছেন তা না। নিজেদের সন্তানদেরও সাথে করে নিয়ে এসেছেন। ভর্তি করে দিয়েছেন গ্রামেরই স্কুলে।  গ্রামের শিশুদের সাথে খেলছে । ডাক্তার জেসিন কী সুন্দর করে লুঙ্গি পরে ঘুরে বেড়াচ্ছেন।  আমরা সুযোগ পেলেই গ্রাম থেকে শহরে ছুটি

बाबा नानक- डॉ मो0 अय्यूब खान

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बाबा नानक वह़दानियत का नग़मा नानक ने जब सुनाया  तौहीद के चमन का हर फूल मुस्कराया रौशन हुआ ज़माना सब मिट गए अंधेरे तौह़ीद की शम्मां को नानक ने फिर जलाया दुनिया से हट के उनका अन्दाज़ वो निराला नेकी का सीधा रस्ता नानक ने जो दिखाया लम्ह़ों में नीस्त कर दी वहम-ओ-गुमां की दुनिया सूरज का इक भरम था नानक ने जो मिटाया शाहों के सामने भी सर को निगूं किया न  वह़दानियत का परचम नानक ने जब उठाया राह-ए-वफ़ा में लुट के कुछ भी ज़यां न पाया इक सच्चा सौदा कर के नानक ने जो कमाया बन्दे है सब खुदा के मालिक है एक सब का ख़ालिक़ है एक सब का सबको सबक़ पढ़ाया दुनिया से दिल लगाना है काम अह़मक़ो का इक रब से लौ लगाना नानक ने भी सिखया दुनिया को घर दुखों का गौतम ने भी कहा था दुनिया है घर दुखों का नानक ने भी बताया ‘अय्यूब’ हिन्दु मुस्लिम की छोड़ कर सयासत इंसानियत का रस्ता नानक ने बस दिखया डॉ  मोहम्मद अय्यूब खान

बाबा नानक - डॉ मो0 अय्यूब खान

बाबा नानक वह़दानियत का नग़मा नानक ने जब सुनाया  तौहीद के चमन का हर फूल मुस्कराया रौशन हुआ ज़माना सब मिट गए अंधेरे तौह़ीद की शम्मां को नानक ने फिर जलाया दुनिया से हट के उनका अन्दाज़ वो निराला नेकी का सीधा रस्ता नानक ने जो दिखाया लम्ह़ों में नीस्त कर दी वहम-ओ-गुमां की दुनिया सूरज का इक भरम था नानक ने जो मिटाया शाहों के सामने भी सर को निगूं किया न वह़दानियत का परचम नानक ने जब उठाया राह-ए-वफ़ा में लुट के कुछ भी ज़यां न पाया इक सच्चा सौदा कर के नानक ने जो कमाया बन्दे है सब खुदा के मालिक है एक सब का ख़ालिक़ है एक सब का सबको सबक़ पढ़ाया दुनिया से दिल लगाना है काम अह़मक़ो का इक रब से लौ लगाना नानक ने भी सिखया दुनिया को घर दुखों का गौतम ने भी कहा था दुनिया है घर दुखों का नानक ने भी बताया ‘अय्यूब’ हिन्दु मुस्लिम की छोड़ कर सयासत इंसानियत का रस्ता नानक ने बस दिखया डॉ  मोहम्मद अय्यूब खान

डॉ प्रियंका रेड्डी की हत्या की निंदा- माता सीता रानी सेवा संस्था

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माता सीता रानी सेवा संस्था की अध्यक्ष श्रीमती कृष्णा कांता राय ने एक वक्तव्य में  हैदराबाद (तेलंगाना) में डॉ प्रियंका रेड्डी की अमानवीय यौन शोषण व निर्मम हत्या की पुरजोर निंदा की है तथा मांग की है कि अपराधियों को  शीघ्र पकड़कर सख्त से सख्त सजा दी जाए। संस्था का मानना है कि यह हमारे समाज की दूषित मानसिकता का परिणाम है। क्योंकि कानून तो सख्त से सख्त बनाए गए हैं, पर उसका क्रियान्वयन नहीं हो पाया है। ऐतिहासिक परिपेक्ष में देखने से पता चलता है कि ज्यों ज्यों  सख्त कानून बने हैं त्यों त्यों अपराध भी बढ़े हैं ।इसमें दो राय नहीं कि सख्त कानून एवं उनका क्रियान्वयन समाज में एक डर का काम करते हैं। परंतु जब तक समाज की हिंसक प्रवृत्ति वाली मानसिकता को नहीं सुधारा जाएगा, तब तक महिलाओं की सुरक्षा संभव नहीं है।" बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ" का नारा तब तक ताकतवर नहीं बन सकता जब तक समाज में जागरूकता नहीं आएगी। माता सीता रानी सेवा संस्था विगत 25 वर्षों से भी अधिक समय से महिलाओं एवं अन्य वर्गों में कानूनी एवं सामाजिक जागरूकता का काम निरंतर कर रही है और हम समझते हैं कि इस काम को और अधिक जिम्मेदारी स

इन दरिंदो से तो जानवर भी अच्छे

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सच मे कुत्ते या कोई भी जानवर अप्राकृतिक नही होते है। उनमे हिंसा अहिंसा का विवेक  तो नही पर वह प्रकृति न्याय को मानते है !! सबसे खतरनाक  है तो वह आदमी जो नशे और अमानवीय तरीके से शांति की खोज मे है -- तब विचारणीय है कि --समाज मे बच्चो की शिक्षाए और समाज़ की शिक्षाए कैसी है। सामाजिक काम करने वालो को पहचान प्रसिद्ध छपास संस्कृति से हट कर सोचना होगा --- समाज मे ऐसे प्रेरक लोगो को टिकाने की जिम्मेदारी समाज को लेनी होगी जो आचरण वान है। जिनकी करनी कथनी मे भेद नही है और वह सभी जाति धर्म ऊच नीच लिंग भाषा आदिके भेद से ऊपर हो और मानवता का प्रेमी हो इसके साथ प्रकृति आधारित जीवन जीने मे अभ्यस्त है जिनको देख लोग प्रेरित होने लगे। ऐसे लोगो को सब पहचाने और उनकी शिक्षाओ को समाज मे परिवारों मे पहुचाने की के लिए मदद करे। साभार ;अभिमन्यु भाई

हम शर्मिंदा है ।

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#वहशी_दरीन्दो_के_लिये_देश_मे_मंदिर_नही_यातना_गृह_बनावेसरकार_हैदराबाद  25 साल की डाक्टर प्रियंका रेड्डी की स्कूटी पंचर हुई, वहशी दरिंदो ने मदद के बहाने उन्हे घेर लिया, उनका फोन छीन लिया घर मे ले जाकर सामूहिक बलात्कार करके सड़क पर जिंदा जलाकर फेंक दिया। स्तब्ध हूँ, समाज में वहशियों की बढ़ती संख्या किस प्रकार घातक बनती जा रही है क्या हमारा देश इतना ज्यादा सहनशील हो गया है कि एक महिला डॉक्टर, एक बेटी को रेप करके जला दिया जाता है और किसी महिला नेता या महिला आयोग का कोई स्टेटमेंट नहीं आता ये तस्वीर डॉ.प्रियंका रेड्डी की नहीं,हमारे मर चुके समाज और मर चुकी संवेदनाओं की तस्वीर है। #JusticeForPriyankaReddy #RipPriyankaReddy

एक लड़की और इंदिरा गांधी - उपन्यास समीक्षा उर्मिला श्रीवास्तव

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तमाम तरह के कामों के उलझनों के बीच संजय (संजय सिन्हा )का यह उपन्यास कई किश्तों में 'एक लड़की और इंदिरा गांधी 'अभी अभी खत्म किया। बहुत खूबसूरत,ताजी हवा जैसा कथ्य,शिल्प की मौलिकता से रचा बसा। ................मन बहुत गहरे प्रभाव में रहा है बहुत देर तक। परंपरागत स्त्री चरित्र से इतर एक स्त्री का ये चरित्र एक नई दुनिया में ले जाता है,जो दुनिया सबके लिए पहचानी से ज्यादा सुनी हुई है। क्या विद्रोह खुद से भी हो सकता है ? हां होता है ,ये कहानी यही कहती है। ये विरोधाभास ही है सपने देखना और उन्हें बगैर फ्रेम तोड़े पूरा करना। सब कहते हैं - ' सपने देखो।सपने देखने का साहस तो करो! ' पर कहने वाले शायद इस विरोधाभासी समाज को नहीं जानते कि सपने पूरे करने के लिए कई कई बार लीक को तोड़ना पड़ता है और लीक तोड़ने में कहीं भी कभी भी भटकने बहकने का डर रहता ही है। वो बना बनाया पंथ जो नही होता। सपना देखने की कीमत चुकानी पड़ती है और पूरा करने के लिए एक जन्म में ही कई कई जन्म लेने पड़ते हैं। और होता ये है कि ज्यादातर एक अंतराल की मृत्यु के बाद अगला जन्म होता नही। पता नहीं उसे क्या कहा जाय।

डूब मरे समाज - साभार परवीन तंवर

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#RIP_समाज ट्विटर पर आज की टॉप ट्रेंडिंग है #RIP....एक युवा-खूबसूरत ही नहीं कर्मठ पशु चिकित्सक। तेलंगाना की युवती जो रात नौ बजे अपनी ड्यूटी से वापस आ रही है। स्कूटी पंचर देख, अपनी बहन को फोन करके कहती है...स्कूटी खराब है, डर लग रहा है। बहन, उस जगह से हटने और कैब लेने के लिए कहती है। कुछ देर में पीढ़ित फिर अपनी बहन को फोन करके कहती हैः कुछ लोग मदद के लिए आए हैं। मैं देखती हूं। छोटी बहन वापस फोन लगाती है...फोन स्विचऑफ....अनर्थ की आशंका और यह शंका-आशंका अब पीढ़ित की बहन और उनके परिवार के लिए जीवन भर का झुलसता दर्द है। अब वे रोज उस दर्द की आग को महसूस करेंगे जिसमें उनकी होनहार-काबिल-सुंदर-डॉक्टर बहना-बिटिया का सामूहिक बालात्कार कर जिंदा जला दिया गया। हम हर बार शोक मनाते हैं....मोम्बत्तियां जलाते हैं...ट्विटर पर हैशटेग को टॉप ट्रेंड कराते हैं....सोशल पर रोते हैं...चिल्लाते हैं ....फिर अपने-अपने दायरे में सिमट जाते हैं। इस बार हैशटेग बदल ही जाना चाहिए....हमेशा के लिए...हमें अपने 'समाज को ही रेस्ट इन पीस' लिख देना चाहिए। जाए किसी 'कब्र में दफन' हो जाए। 😠 सोचिए ना, एक

राजा महेंद्र प्रताप- डॉ राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी

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राजा महेन्द्रप्रताप ``````````````````````````````````````````````````` बचपन में मेरी मां इनकी कहानी सुनाती थीं,वे इनके भाई राजा दत्तप्रसादसिंह [मुरसान]की पालिता बेटी थीं। अंग्रेजसरकार इन्हें गिरफ्तार करना चाहती थी किंतु ये संसार के देशों में घूमे आजादी का संदेश सुनाने।१९१८ में ये लेनिन से मिले,१९१५ में अफ्गानिस्तान में रहते हुए भारत की अस्थायी सरकार बनायी,जिसके राष्ट्रपति स्वयं और प्रधानमन्त्री मौलाना बरकतउल्लाह बने।उद्देश्य था ब्रिटिश-विरोधी शक्तियों को भारत की आजादी के लिये एकत्र करना। राजा महेन्द्रप्रताप ने १९२२ में जर्मनी में क्रांतिकारी पत्र निकाले।जापान जाकर रासबिहारी बोस से और अमेरिका की गदरपार्टी के तथा फिर चीन के नेताओं से भेंट की ।निर्भीक पत्रकार थे,प्रताप,स्वराज्य और वन्देमातरं में विद्रोहभाव के लेख लिखे।जवाहरलालनेहरू ने मेरीकहानी में राजा महेन्द्रप्रताप की चर्चा की है। अलीगढ,वृंदावन,हाथरस आदि में राजा महेन्द्रप्रताप की रियासत और जमींदा्री थी,वह सब इन्होंने शिक्षासंस्थाओं को दान कर दी।उस जमाने में मथुरा में पोलीटेक्नीकल कालेज खोलने का सपना राजा महेन्द्रप्रताप ने देख

राजा और बेताल

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Bhart bhagy vidhata
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समकालीन भारत में शिक्षा की दुर्दशा : भाग-1 अंबानी-बिड़ला रिपोर्ट से पैदा हुए आर्थिक-यंत्रमानव (होमो-इकॉनॉमिकस) यह पोस्ट खासतौर से 18-20 साल के उन युवाओं के लिए है जो जेएनयू के आंदोलनकारियों से पूछ रहे हैं कि तुमने पूरे देश के बाकी विश्वविद्यालयों के लिए आवाज़ क्यों नहीं उठाई। बिल्कुल उसी शिकायती तर्कणा शैली में कि तुमने तब क्या किया, 70 साल में क्यों नहीं बोला, फलांने को क्यों नहीं टोका, ढिमकाने को क्यों नहीं बोला इत्यादि। तो बात ऐसी है कि अप्रैल 2000 में जब आप पैदा भी नहीं हुए थे या कि एल्फाबेट या ककहरा ही सीख रहे थे, तभी 43 साल के मोटाभाई मुकेश अंबानी जी और 33 साल के छोटाभाई कुमार मंगलम बिड़ला जी आपकी जनम-कुंडली के शिक्षा वाले चतुर्थ स्थान में शनि महाराज को स्थायी रूप से बिठा रहे थे। ऐतिहासिक इलाहाबाद विश्वविद्यालय जैसे सरकारी विश्वविद्यालय से ‘तरंग विज्ञान’ में हिन्दी माध्यम में अपनी पीएचडी थिसिस लिखनेवाले महान धर्मध्वजी जोशी जी उस समय केन्द्र में शिक्षा मंत्री थे। अंबानी-बिड़ला द्वारा शिक्षा का पूर्णतः निजीकरण करने की अनुशंसा वाली रिपोर्ट के विरोध में उस दौरान दिल्ली

यू आर आई का बनारस राष्ट्रीय सम्मेलन

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*यू आर आई का राष्ट्रीय अधिवेशन* *Nityanootan Broadcast service* यूनाइटेड रेलेजियेन्स इनिसिएटिव (संयुक्त धर्म पहल) के 22से 24 नवम्बर तक बनारस में चले तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में निर्मला देशपांडे संस्थान के प्रतिनिधि के रूप में भाग लेने का अवसर मिला । इसमे पूरे देश के लगभग हर क्षेत्र से शामिल प्रतिनिधियों के अतिरिक्त नेपाल, श्रीलंका ,बांग्लादेश  के सदस्य भी शामिल थे । अधिवेशन के लिये भारत की पौराणिक सांस्कृतिक नगरी वाराणसी का चयन निश्चित रूप से प्रशंसनीय रहा । यह नगरी धर्म नगरी तो है ही उसके साथ-२ सर्वधर्म समभाव व समाज सुधारकों की कर्मभूमि भी है जिन्होंने यहीं रह कर पाखण्ड व अंधविश्वास को चुनौती देकर धर्म के उदार स्वरूप को रखा था । संगीत ,कला व दस्तकारी को एक नए रूप में यहाँ के सिद्धहस्त कलाकारों ने निरूपित किया है ।      यू आर आई एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जिसकी 108 देशों में इकाइयां है । खुद भारत मे भी लगभग 1100 से अधिक इसकी शाखाये है जिसे कॉर्पोरेट सर्किल के नाम से जाना जाता है । इसकी  प्रस्तावना में  उन सभी लोगो को समायोजित कर आह्वान किया गया है कि हिंसा , भेदभाव व वैमनस्य

सुन भाई चाचा ,हां भतीजा

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राजनितीक परिवार भतिजा बनाम खुद की औलाद -1 अभी अभी आपने महाराष्ट्र का महाभारत देखा है चाचा भतिजा की चालें देखी है भारतीय राजनिती में ये कोई नया खेल नहीं है नई बात यही रही कि भतिजा चाचा की राजनिती को कोई खास नुकसान नहीं पहुंचा पाया इसका कारण यह रहा कि शरद पंवार बहुत मजबूत मराठा क्षत्रप है उनकी पार्टी पर ही नहीं मराठा वोटो पर गहरी पकड़ है 1967 से बड़ी राजनिती करने वाले शरद पंवार के अलावा शायद मुलायम सिंह यादव ही आज सक्रीय है पंवार ने आज भी अपने पिता के परिवार को एक रखा हुआ है उनके इकलोती संतान बेटघ सुप्रिया सुले है जो उसी बारामती से सांसद है जहां की विधानसभा से अजित पंवार विधायक है इस घटनाकर्म से सबसे ज्यादा दुख सुप्रिया सुले को ही हुआ जिन्हें पार्टी टूटने से भी ज्यादा दुख परिवार के टूटने का लग रहा था ये सुप्रिया काअपने भाई के प्रति पंवार का भतिजे के प्रति मोह ही था की ना तो उन्होनें अजित पंवार के खिलाफ कुछ कहा ना ही उन्हें पार्टी से निकाला उल्टे अजित पंवार के पार्टी में आने से सुप्रिया सुले सबसे ज्यादा खुश हुई चाचा भतिजे के मनमुठाव में आइये सबसे पहले महाराष्ट्र की इसी उठपटाव के
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सोनिया गांधीः इच्छा के विपरित अनिवार्य जिम्मेदारी से भरा जीवन क्या वे फिर उद्धारक बनेंगी? ------------------- पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी, कांग्रेस में विरोध के बीच प्रभावी हुईं और उनका प्रभाव अंतरराष्ट्रीय होता गया।13 दलों वाले यूपीए में चेयरपर्सन के तौर पर राजनीतिक समन्वयक का पद संभालते हुए वे देश का एक बड़ा सियासी चेहरा बन गईं। इंदिरा गांधी की छोटी बहू की तुलना में शांत और सौम्य स्वभाव वाली सोनिया राजनीतिक कभी नहीं रहीं। अलबत्ता उनका पूरा राजनीतिक जीवन ही उन थोपा हुआ रहा। पति के अचानक चले जाने के बाद भारत की इस बहू के पास राजनीति एक विरासत के रूप में हाथ आई और राजनीतिक जीवन अनिवार्य जिम्मेदारी बन गया। इच्छा के विपरित परिवार, बच्चों व सामान्य दांपत्य में लौटने की चाह से भरा जीवन। इटली के आरबैस्सेनो से कई बार फोन घनघनाते रहे और परिवार देश लौट आने की गुहार लगाता रहा। लेकिन सोनिया इच्छाओं के खिलाफ गईं। उस समय अपनी मां पाओलो माइनो से सोनिया ने कहा था- ‘अब भारत ही उनका घर है। जबकि बहन से कहा था- यह मेरा जीवन है। मैं अब इस देश को छोड़कर विदेश में
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गांधी और भगत सिंह जैसे हमारे विश्व नायक बेहद दुर्भाग्यशाली हैं। शहादत देते समय उन्हें यह कतई अंदाजा नहीं रहा होगा कि उनकी आने वाली नस्लें इतनी कृतघ्न, इतनी निकृष्ट और इतनी तुच्छ मानसिकता की होंगी कि उन्हें हत्यारों को राष्ट्रपिता बनाने की सनक चढ़ेगी। उन्होंने कभी नहीं सोचा होगा कि जिस आदमी के तीन दशक के नेतृत्व में विश्व के सबसे बड़े साम्राज्य को भारत की गरीब जनता ने हराया था, एक दिन भारत की संसद में उसी गांधी के हत्यारों की सराहना की जाएगी। गांधी इस देश का अंतिम आदमी है, वह हमेशा बेचारा था। जब उसे हरामखोर परजीवियों ने ट्रेन से बाहर फेंका तब भी, जब वह अंतिम जन के लिए लड़ रहा था तब भी, जब वह दुनिया भर में घूम घूम कर अपमानित हुआ तब भी, जब उस पर अनेक बार हमले हुए तब भी, जब वह सबको कंधा मिलाकर रहने को मनाता रहा तब भी। अफ्रीका से लेकर नोआखली तक, गांधी हमेशा उपेक्षित, अकेला और बेचारा था। गांधी विश्वगुरु बनने निकले देश में गटर में डूबता हुआ सफाईकर्मी है, आत्महत्या करता हुआ किसान है, बेरोजगारी से जूझता नौजवान है, भूख से मरता हुआ गरीब है। गांधी वह व्यक्ति है जिसके लिए किसी की आंख नम नहीं हो

लोककथा- राजेंद्र रंजन चतुर्वेदी

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लोककथा लोककथाओं के संबंध में जवाहरलाल नेहरू ने लिखा था >>>>>>>>>>>>>>>>>>> मैंने कभी-कभी इस बात पर अचरज किया है कि ये आदमी और औरतें , जिन्होंने ऐसे सजीव सपनों और कल्पनाओं को रूप दिया है ,कैसे रहे होंगे और विचार तथा कल्पनाओं की किस सोने की खान में से खोद कर उन्होंने ऐसी चीजों को निकाला होगा !<<<<<<<<< जवाहरलाल नेहरू

जोति बा फुले और अम्बेडकर-संजय श्रमण

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आज महामना ज्योतिबा फुले का परिनिर्वाण दिवस है, ज्योतिबा और डॉ. अंबेडकर में एक समानता और एक स्वाभाविक प्रवाह को देखने की आवश्यकता पर ये लेख पढ़ें. ज्योतिबा फुले और बाबा साहेब अम्बेडकर का जीवन और कर्तृत्व बहुत ही बारीकी से समझे जाने योग्य है. आज जिस तरह की परिस्थितियाँ हैं उनमे ये आवश्यकता और अधिक मुखर और बहुरंगी बन पडी है. दलित आन्दोलन या दलित अस्मिता को स्थापित करने के विचार में भी एक “क्रोनोलाजिकल” प्रवृत्ति है, समय के क्रम में उसमे एक से दूसरे पायदान तक विकसित होने का एक पैटर्न है और एक सोपान से दूसरे सोपान में प्रवेश करने के अपने कारण हैं. ये कारण सावधानी से समझे और समझाये जा सकते हैं. अधिक विस्तार में न जाकर ज्योतिबा फुले और आम्बेडकर के उठाये कदमों को एक साथ रखकर देखें. दोनों में एक जैसी त्वरा और स्पष्टता है. समय और परिस्थिति के अनुकूल दलित समाज के मनोविज्ञान को पढ़ने, गढ़ने और एक सामूहिक शुभ की दिशा में उसे प्रवृत्त करने की दोनों में मजबूत तैयारी दिखती है. और चूंकि कालक्रम में उनकी स्थितियां और उनसे अपेक्षाएं भिन्न है, इसलिए एक ही ध्येय की प्राप्ति के लिए उठाये गए उनके कदमों

मित्र,सहयोगी व भाई

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*Inner Voice* *मित्र ,सहयोगी व भाई*! अखबार का क्या मतलब है व एक नए समाचारपत्र को किसी नई जगह स्थापित करने में कैसे मेहनत की जाती है इसे समझने व जानने के लिये हमें हमारे प्रिय मित्र व अग्रज *राजेन्द्र मौर्य* को जानना होगा ।    लगभग 20 वर्ष पहले की बात होगी जब वे हमारे शहर पानीपत में एक नए अखबार अमर उजाला के ब्योरो चीफ बन कर आये थे । अखबार नया व अनजान था और मुकाबला करना चाह रहा था पंजाब केसरी व नव भारत टाइम्स जैसे जमे जमाये अखबारों से । इन अखबारों के रुतबा यह था कि  शहर की खबर छपती थी दो दिन बाद और इनके संवाददाताओ की हेकड़ी ये कि वे किसी को भी कुछ भी नही समझते थे । ऐसे समय मे मौर्य  हमारे शहर में आये थे ।     वे एक अत्यंत संजीदा व प्रबुद्ध व्यक्तित्व के धनी हैं । मिलनसार इतने कि जो उनसे एक बार मिल ले तो उनका बन जाए और इन्ही सब अपनी खूबियों की वजह से उन्होंने अखबार को जमाना शुरू किया और यह क्या कि कुछ दिन में ही अमर उजाला अपने एक प्रतिद्वंद्वी  के बराबर आ गया और दूसरे को तो पछाड़ ही दिया ।       राजेन्द्र मौर्य ने इस दौरान अपने व्यक्तिगत पारिवारिक रिश्तों को भी मजबूत किया । उनके लि

हमारी मेजबान

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हमारी मेजबान देववाणी (Nityanootan Broadcast Service) 26.11.2019 हम इस बार अपने इलाहबाद प्रवास के दौरान पुनः अपने अग्रज व मित्र डॉ दिवाकर त्रिपाठी के झूंसी स्थित घर पर ही ठहरे । इससे पहले हम आदरणीय भाई जी सुब्बाराव जी के साथ गत फरवरी में कुंभ मेले के दौरान इन्हीं के यहां रुके थे । तब मेरी पत्नी अमेरिका प्रवास पर थी व मैं ही अन्य मित्रो के साथ यहां रुका था । डा0 त्रिपाठी , उनकी पत्नी श्रीमती अलका व दोनों पुत्रियां मालविका व देववाणी की आतिथ्य परायणता से हम सभी अभिभूत थे । इस बार प्रयागराज आने पर हमने फिर उन्हीं के ठहरना मुनासिब समझा । एकांत ,सुरम्य व हरा भरा उनके घर का परिसर ,अनायास ही जीवन को दीर्घायु बना देता है ,पर इस बार हम घर के सबसे छोटे सदस्य देववाणी के संरक्षण में थे । कक्षा पांच में पढ़ रही 10 वर्षीय यह बालिका बेशक उम्र में छोटी हो परन्तु ज्ञान, समझदारी व वाक चातुर्य में अपनी उम्र के हिसाब से परिपूर्ण है । त्रिवेणी संगम स्नान से आनंद भवन व शहीद चंद्र शेखर आज़ाद बलिदान स्मृति पार्क तक का पूरा सफर उन्होंने ही करवाया । बीच -२ में उनके प्रश्न भी रहे व हमारे भी ,पर इन सभी मे मैत्री भ

Jagi haryane ki mahila

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The Guru who was adored and respected by both Hindus and Muslims proclaimed "Na koi Hindu, na Mussalman" By the above he maintained that external labels of religiosity wouldn't work but only and only remembering the ONE ALMIGHTY GOD and performing  good deeds is all that is going to take one towards salvation. He mingled with the lowest of the lowly and showered on them love and compassion. The founder of the new faith of Sikhism gave equal footing to the other half of mankind, women, and said that no one had the right to call them bad because it was the woman with whom a man is related throughout his life and she was the one who gave birth to prophets, saints and kings alike. His code of conduct for his believers, "Kirt Karo, Naam Japo, Wand Chhako" meaning that one should "Work hard, always be in His Rememberance and Share one's earnings with others" has been the foundation for Sikhism to be developed in the future course of time. Hi
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*गुरु नानक ५५०* *********** Nityanootan Broadcast Service (Courtesy Pankaj Chaturvedi) ************** आज बाबा गुरुनानक देव का ५५०वा प्रकाशोत्सव है , असल में बाबा ने किसी पंथ का प्रारंभ नहीं किया था- वह तो एक विचार थे -- सारी दुनिया में उस समय भी धर्म-पन्थ के नाम पर टकराव था- बाबा नानक अपनी चार उदासियीं में कोई २४ हज़ार किलोमीटर दुनिया दे दो महाद्वीप के चप्पे चप्पे पर गए -- हर मत को मानने वाले पीर- पुजारी- संत - फकीर- सूफी से मिले और सभी को इस बात के लिए सहमत किया कि भले ही आपका जन्म और विशवास किसी भी धर्म में हो-- सर्वशक्ति एक ही - एक  नाम ओंकार --- . यही नहीं उन्होंने सभी पंथों के बीच सतत संवाद की अनिवार्यता को भी स्थापित किया . बाबा नानक एक आम किसान की ही तरह अपना जीवन बिताते रहे , अभी करतारपुर साहेब में वह राहत देखि जा सकती है जिससे वे खुद अपने खेतों को सींचते थे . इस बार का गुरु पर्व महज ५५० साल के लिए याद नहीं रखा जाएगा- देख लेना- बाबा नानक ने इस दिन के रास्ते दोनों मुल्कों का राब्का खोल दिया है , ज़रा उन लोगों से मिलें जो उस तरफ दर्शन कर आये हैं -- बूढी आँखे, उम्मीदों में
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Bhart ki santan
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*बनारस*  *Nityanootan Broadcast service* इस शहर का कोई सानी नही । बाबा विश्वनाथ की इस पौराणिक नगरी में मैं मरना नही जीना चाहता हूं । इस शहर में दूरदराज से भी लोगों के शव उनके देवलोक की प्राप्ति हेतु अन्त्येष्टि के लिये लाये जाते हो पर यह मुर्दो का नही जिंदे लोगो की ज़िंदादिली का शहर है । *यह शहर है भगवान बुद्ध, संत कबीर ,रैदास , स्वामी दयानंद ,महात्मा गांधी व उनके प्रिय मित्र महामना प0 मदन मोहन मालवीय का , यह नगरी है मुंशी प्रेमचंद, बिस्मिल्ला खान , मकबूल फिदा हुसैन और ऐसे ही अनेक जीवंत लोगों की जो जिंदगी है जिंदगी की जीत में यकीन करते है । और यह शहर है हमारी अत्यंत स्नेही बेटी -मित्र सुनैना पाठक बनारसी*  का जिसका स्नेह भरा आमंत्रण हमें यहां खींच लाया । *सुप्रसिद्ध कवि व रचनाकार श्री केदारनाथ सिंह ने अपने इस शहर की खूबसूरती को अपने ही अंदाज़ से इस तरह बयान किया है* ।  बनारस इस शहर में वसंत अचानक आता है और जब आता है तो मैंने देखा है लहरतारा या मडुवाडीह की तरफ़ से उठता है धूल का एक बवंडर और इस महान पुराने शहर की जीभ किरकिराने लगती है जो है वह सुगबुगाता है जो नहीं है वह फेंक

बहादुर शाह जफर

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**1857 की क्रांति के नायकों के वारिसों का सम्मेलन* (Nityanootan Broadcast Service) अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफर की 157 वें उर्स पर दिल्ली के ग़ालिब अकादेमी में मरहूम बादशाह सलामत के वर्तमान जीवित वंशज व पीठासीन नवाब शाह मो0 शुएब खान की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय सम्मेलन तथा सम्मान समारोह का आयोजन किया गया जिसमें देशभर से  सन 1857 के क्रांतिवीरों के वंशजों तथा स्वाधीनता तथा अमन-दोस्ती के लिये काम कर रहे अनेक संगठनों के प्रतिनिधियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया । कार्यक्रम के प्रारम्भ में नवाब शाह मो0 शुएब खान साहब का माल्यार्पण कर स्वागत किया गया । श्रीमती समीना खान ने मुग़ल खानदान की समृद्ध विरासत पर एक विस्तृत लेख का वाचन किया तथा अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के जीवन,विचारो तथा दर्शन को बताया । उन्होंने कहा कि अंतिम बादशाह एक खुद्दार हिंदुस्तानी थे जिन्होंने निर्दयी अंग्रेज़ी हुकूमत द्वारा अपने पुत्रों के कटे सिरों को पेश करने के बावजूद भी बिना विचलित हुए विदेशी दासता को स्वीकार नही किया । अंत मे विदेशी निर्लज्ज शासको ने हिंदुस्तान के इस मालिक को इनके ही मुल्क से जिला वतन कर र

आनंद भवन

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Anand Bhawan-Swaraj Bhawan Allahabad प0 जवाहरलाल नेहरू की जन्म स्थली आनंद भवन ( इलाहाबाद) आनंद भवन एक रिहायशी मकान ही नही जिसे हिंदुस्तान के प्रसिद्ध वकील प0 मोती लाल नेहरू ने निर्मित किया। ऐसा भी  केवल नही कि यहां उनके बेटे जवाहरलाल नेहरू की परवरिश हुई और इतना भी नही की , इसी घर मे उनकी पुत्री इंदिरा गांधी का जन्म हुआ । यह सब तो इसको गौरव देता ही है पर इससे भी ज्यादा ,मैं यह मानता हूं कि यह भारत के स्वतन्त्रता आंदोलन का साक्षी है । यह सिर्फ ईंट पत्थरों से बनी एक ऐतिहासिक इमारत ही नही है अपितु इतिहास के काल खण्डों को स्वयं में संजोए एक सजीव ऐतिहासिक धरोहर है ।        9 जून 1888 को यह जायदाद जस्टिस सैयद महमूद  ने खरीदी थी जिसे उन्होंने 22 अक्टूबर 1894 को उन्होंने राजा जय किशनदास को बेच दिया, जिन से 7 अगस्त ,1899 को 20,000 में रुपए में इसे पंडित मोतीलाल नेहरु ने खरीदा इस प्रकार यह परिसर नेहरू परिवार का निवास बन गया और आधुनिक भारत के इतिहास से गहरा नाता जुड़ गया । सन् 1926 में पंडित मोतीलाल नेहरू ने अपना यह ऐतिहासिक निर्णय भी महात्मा गांधी को सुनाया कि वह आनंद भवन