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Showing posts from November, 2025

पानीपत की गलियां 11 (Rajputana Bazar)

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पानीपत की गलियां-11 (राजपूताना बाजार का पुराना जादू) आज सुबह-सुबह, जब शहर अभी पूरी तरह जागा भी नहीं था, हम निकल पड़े पानीपत की उन संकरी, इतिहास से लबरेज गलियों की सैर पर। शुरूआत हुई रामधारी चौक से – वो चौक जहां कभी घोड़ों की टापें और बाजार की हलचल एक साथ गूंजती थीं। यहां से दक्षिण की ओर मुड़ते ही हम राजपूताना बाजार में दाखिल हो गए। ये बाजार कोई बड़ा मॉल नहीं, बल्कि एक जीवंत पट्टी है जो सीधे अमर भवन चौक की ओर निकलती है। पानीपत को राजस्व सर्कल में चार हिस्सों में बांटा गया है – तरफ राजपूतान, तरफ अफगानान, तरफ अंसार और तरफ मखदूम जादगान। और इसी तरफ राजपूतान की वजह से इस बाजार का नाम पड़ा राजपूताना बाजार, क्योंकि यहां मुस्लिम राजपूत बस्ते थे।    बाजार की शुरुआत हुक्के की दुकानों से होती है जहां चिलम से लेकर नाल और हर दूसरा समान वाजिब दाम पर मिलता है. हुक्के के शौकिन हर शहरी-देहाती के लिए यह आकर्षण का केंद्र है. और फिर इसके आगे कदम रखते ही हवा में एक पुरानी खुशबू घुली हुई थी – घी की महक, ऊनी कपड़ों की गर्माहट और कहीं दूर से आती पकौड़ों की चटनी की तीखी सुगंध। विभाजन से पहल...

पानीपत की गलियां-10 (गुड़ मंडी से रामधारी चौक)

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पानीपत की गलियाँ-10 पानीपत की गुड़ मंडी: एक ऐतिहासिक यात्रा: पानीपत की संकरी गलियों में आज हम गुड़ मंडी की ओर बड़े बाजार से प्रवेश करते हैं। शुरू में ही छोटी-बड़ी दुकानें नजर आती हैं, जहाँ रोजमर्रा की जरूरतों का सामान बिकता है। इनके बीच कुछ दालें बेचने वाली खुदरा और थोक की दुकानें भी हैं। इनकी खासियत यह है कि यहाँ एक दाम निर्धारित होता है—कोई मोल-भाव नहीं। सामान शुद्ध, साफ-सुथरा और विश्वसनीय होता है।  इसी क्रम में आगे बढ़ते हुए श्री राजेंद्र जैन की पुरानी कपड़ों की दुकान आती है। उसके ठीक बाद गुड़ मंडी का विशाल चौक सामने आता है। चौक के एक कोने पर श्री शेर सिंह जैन की तेल और अन्य सामान की दुकान थी। वे मेरे पिताजी मास्टर सीताराम जी के शागिर्द थे, और उनका सुपुत्र राजेंद्र और मैं जैन हाई स्कूल में एक साथ पढ़े थे। गुड़ मंडी का इतिहास और परंपरा: गुड़ मंडी की स्थापना का कोई लिखित इतिहास उपलब्ध नहीं है, लेकिन जनश्रुति के अनुसार यह लगभग 1,000 वर्ष पुरानी है। प्राचीन काल में पानीपत गुड़ की प्रमुख मंडी था। दूर-दराज के गाँवों से किसान पका हुआ गुड़ बैलगाड़ियों पर लादकर लाते थे। यहा...

पानीपत की गलियां-9 (Khail Bazaar)

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पानीपत की गलियां-9 (खैल बाजार) पानीपत की पुरानी गलियों में सैर करना अपने आप में एक इतिहास की यात्रा है। मैं कलंदर चौक से शुरू करता हूँ, जहाँ से पीछे मुड़कर खैल बाज़ार की ओर निकलता हूँ। खैल—यह शब्द अपने आप में अनोखा है; इसका अर्थ है वह रास्ता जिसका केवल एक ही प्रवेश-निकास हो, यानी एकतरफा गली। बड़े बाज़ार की ओर मुड़ते ही बायीं तरफ खैल बाज़ार का संकरा प्रवेश द्वार दिखाई देता है। जैसे ही इसमें घुसते हैं, बायीं ओर एक छोटी लेकिन खुली गली नज़र आती है, जिसमें काफी रिहाइश है—पुराने मकान, छोटे-छोटे आँगन और लोगों की रोज़मर्रा की हलचल। इसी गली से कुछ कदम आगे बढ़ते ही दायीं ओर ‘छत्ते वाली गली’ आती है। यह गली ऊँचाई पर चढ़ती हुई बड़ी पहाड़ से होती हुई पूरबियाँ घाटी में उतरती है, जहाँ से शहर का नज़ारा कुछ अलग ही दिखता है। इसके ठीक साथ वाली दूसरी गली पुरानी जामा मस्जिद है जिसके  पुरातत्व को सिखों ने सहेज कर रखा है और इसे गुरुद्वारा का स्वरूप दिया है. इस के पास ही  छोटी-छोटी गलियां  इधर-उधर घूमती हुई नकटो की पाड़ में जाकर बड़े बाज़ार में मिल जाती है। खैल बाज़ार में आगे बढ़ते हु...