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Showing posts from November, 2025

पानीपत की गलियां-25 (गुरुद्वारा रोड से sanauli Road)

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पानीपत की गलियां-25. पानीपत की गलियों का एक पुराना सफ़र   (अमर भवन चौक से गुरुद्वारा रोड,  सनोली रोड तक) आज फिर उन पुरानी गलियों में चलते हुए मन पुरानी यादों में डूब गया। हम निकले अमर भवन चौक (राघड़ो मोहल्ला) से, सनौली रोड की तरफ़। रास्ते में सबसे पहले आता है श्री बांके बिहारी मंदिर, उसके ठीक बाद गुरुद्वारा साहिब। मंदिर की घंटियों की आवाज़ और गुरुद्वारे से आती अरदास की स्वर-लहरियाँ एक साथ गूँजती हैं तो लगता है जैसे शहर खुद अपनी दोहरी आत्मा का परिचय दे रहा हो। बाज़ार की तरफ़ जैसे ही मुड़ते हैं, दाहिनी तरफ़ दिखता है मंचंदा ढाबा – पानीपत का वह मशहूर पुराना भोजनालय जो दशकों से यहाँ डटा है। ढाबे के साथ ही एक पतली गली निकलती है और कुछ कदम आगे फिर एक मंदिर। यही वह इलाका है जहाँ छोटे-बड़े हैंडलूम प्रोडक्ट्स के शोरूम सजे रहते हैं। खेस, चादरें, पर्दे, दरियाँ, मैट्स, घरेलू सजावटी कपड़े – सब कुछ यहाँ भरपूर मिलता है। चूँकि यह रास्ता खुला है और सनौली रोड के बेहद करीब, इसलिए थोक और परचून के ग्राहक यहाँ ख़ूब आते हैं। दिन भर ट्रक, टेम्पो, रेहड़ी-ठेले की आवाज़ें और मोल-भाव की ग...

पानीपत की गलियां-24(पानीपत की पुरानी गलियों की सैर: अमर भवन चौक से लाल मस्जिद तक)

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पानीपत की गलियां-24 (पानीपत की पुरानी गलियों की सैर: अमर भवन चौक से लाल मस्जिद तक) आज शाम मैं और मेरा पुराना साथी पवन कुमार सैनी जी फिर एक बार पानीपत की उन तंग, जीवंत और इतिहास से भरी गलियों में निकल पड़े। हमारा इरादा था पुराने शहर के उस हिस्से को फिर से महसूस करना जो कभी “ रांघड़ों वाला मोहल्ला” कहलाता था, यानी आज का अमर भवन चौक। अमर भवन चौक से जैसे ही हम सेठी चौक की तरफ मुड़े, संकरी सड़क पर ट्रैफिक का ऐसा मेला लगा था कि पैर रखने की भी जगह नहीं थी। रेहड़ियाँ, ठेले, ऑटो-रिक्शा, छोटे-बड़े टेंपो, स्कूटर और मोटरसाइकिलें – सब एक-दूसरे से सटे हुए। सीजन जो चल रहा है – कंबल, शॉल और गर्म कपड़ों का।   पानीपत की यह पुरानी हथकरघा मंडी देश-दुनिया में मशहूर है।अमर भवन चोंक से सेठी चोंक तक पर्दे, चादरें व काटन, सिल्क, गलैश काटन, पोलिस्टर, धागे और कंबल का बाजार है.   यहां का माल सस्ता भी, टिकाऊ भी और क्वालिटी में बेस्ट भी। बस ग्राहक को आने-जाने की थोड़ी तकलीफ उठानी पड़ती है। हम भी धीरे-धीरे “खिसक-खिसक” कर आगे बढ़ते रहे। इसी सड़क पर बाईं तरफ विशाल लाल मस्जिद है, जिसकी ला...

पंजाब की पवित्र धरती पर : चमकौर साहिब और फतेहगढ़ साहिब की हृदयस्पर्शी यात्रा (तीर्थयात्रा – 19 नवंबर 2025)आज सुबह-सुबह ही मन में एक अजीब-सी बेचैनी थी। सिख इतिहास की वो गाथाएँ जो बचपन से सुनता आया हूँ, आज उन्हें अपनी आँखों से देखने का दिन था। पंजाब की इस पावन भूमि पर खड़े होकर गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज और उनके साहिबजादों की वीरता व बलिदान को साक्षात महसूस करने का सुअवसर मिला। यह यात्रा केवल तीर्थयात्रा नहीं थी — यह एक भावनात्मक यात्रा थी, जो आत्मा को झकझोर कर रख देती है।●चमकौर साहिब – जहाँ 40 मुक्तों ने अमरत्व प्राप्त कियासबसे पहले हम चमकौर साहिब पहुँचे। यहाँ की हवा में ही एक अलग-सी गंभीरता महसूस होती है। हम सबसे पहले पहुँचे गुरुद्वारा श्री तारी साहिब (जिसे ताली साहिब भी कहा जाता है)। यहीं पर गुरु गोबिंद सिंह जी ने आनंदपुर साहिब छोड़ते समय अपनी तलवार को ज़मीन पर टेककर प्रण लिया था कि अब पीछे नहीं हटेंगे। यहाँ खड़े होकर मन स्वतः ही नतमस्तक हो गया।●इसके बाद हम गए गुरुद्वारा श्री कत्लगढ़ साहिब। यह वही कच्ची गढ़ी है जहाँ दिसंबर 1705 में गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज अपने दो बड़े साहिबजादे — बाबा अजीत सिंह जी (18 वर्ष) और बाबा जुझार सिंह जी (14 वर्ष) तथा मात्र 40 सिख योद्धाओं के साथ दस लाख की मुग़ल सेना से दो-दो हाथ किए थे।साहिब जी ने स्वयं अपने दोनों बड़े साहिबजादों को युद्ध के लिए भेजा और दोनों ने अद्भुत वीरता दिखाते हुए शहादत प्राप्त की। जब सिखों की संख्या बहुत कम रह गई तो पंच प्यारे ने गुरु जी को आदेश दिया कि वे गढ़ी से निकल जाएँ और पंथ को संभालें। रात के अंधेरे में गुरु साहिब, भाई मन्नी सिंह, भाई दया सिंह व भाई धर्म सिंह जी सहित केवल पाँच सिख ही जीवित निकल सके। शेष 40 सिखों ने प्राण त्याग दिए। वे 40 सिख आज "चाली मुक्ते" के नाम से अमर हैं।यहाँ की दीवारें आज भी जैसे चीखती हुई प्रतीत होती हैं। कत्लगढ़ साहिब में खड़े होकर जब मैंने वो गाथा सुनी तो आँखें भर आईं। एक पिता ने अपने जवान बेटों को स्वयं युद्धभूमि में भेजा, सिर्फ़ धर्म की रक्षा के लिए। यह वीरता नहीं, उससे कहीं ऊपर का त्याग है।●फतेहगढ़ साहिब – जहाँ मासूमों ने भी इतिहास रच दियाचमकौर साहिब से निकलकर हम सिरहिंद पहुँचे और पहुँचे गुरुद्वारा फतेहगढ़ साहिब। यहाँ आते ही हृदय भारी हो गया।यह वही स्थान है जहाँ औरंगजेब के आदेश पर उसके क्रूर गवर्नर वज़ीर ख़ान ने गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादे — बाबा जोरावर सिंह जी (9 वर्ष) और बाबा फतेह सिंह जी (7 वर्ष) को ठंडी दिसंबर की रात में जिंदा दीवार में चिनवा दिया था। सिर्फ़ इसलिए कि दो मासूम बच्चे ने कहा — "हम अपने धर्म को नहीं छोड़ सकते।"माता गुजरी जी भी यहीं ठंडे बुर्ज में शहीद हो गईं थीं। जब दीवार ऊँची होती गई और बच्चों का चेहरे दिखना बंद हो गए, तब भी उनके मुख से केवल एक ही नारा गूँजा था — "वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह !"यहाँ खड़े होकर मैंने बहुत देर तक कुछ बोलने की हिम्मत नहीं की। सिर्फ़ आँसू बहते रहे। इतनी छोटी उम्र में इतना बड़ा त्याग... यह कल्पना से परे है। आज भी फतेहगढ़ साहिब में हर साल दिसंबर में लाखों श्रद्धालु आते हैं और उन मासूम शहीदों को नमन करते हैं। ●लौटते समय...लौटते समय कार में पूरी तरह खामोश था। आज मैंने किताबों में पढ़ी हुई बातों को अपनी आँखों से देखा, अपने दिल से महसूस किया। यह यात्रा केवल धार्मिक नहीं थी — यह एक सबक थी। सबक कि धर्म की रक्षा के लिए कितनी भी बड़ी कुर्बानी देनी पड़े, वह छोटी है। सबक कि साहस उम्र नहीं, विश्वास देखता है। 7 और 9 साल के बच्चों ने जो कर दिखाया, उसे देखकर आज की हमारी छोटी-छोटी मुश्किलें बहुत तुच्छ लगने लगती हैं।शायद यही कारण है कि सिख पंथ आज भी सिर ऊँचा करके जीते हैं क्योंकि उनकी जड़ों में ऐसे बलिदानियों का खून है।बोलो जी — वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह ! जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल !इस पवित्र यात्रा के लिए वाहेगुरु का लाख-लाख शुक्र। 🙏🏻Ram Mohan Rai, 18.11.2025

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पंजाब की पवित्र धरती पर : चमकौर साहिब और फतेहगढ़ साहिब की हृदयस्पर्शी यात्रा   (तीर्थयात्रा – 19 नवंबर 2025) आज सुबह-सुबह ही मन में एक अजीब-सी बेचैनी थी। सिख इतिहास की वो गाथाएँ जो बचपन से सुनता आया हूँ, आज उन्हें अपनी आँखों से देखने का दिन था। पंजाब की इस पावन भूमि पर खड़े होकर गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज और उनके साहिबजादों की वीरता व बलिदान को साक्षात महसूस करने का सुअवसर मिला। यह यात्रा केवल तीर्थयात्रा नहीं थी — यह एक भावनात्मक यात्रा थी, जो आत्मा को झकझोर कर रख देती है। ●चमकौर साहिब – जहाँ 40 मुक्तों ने अमरत्व प्राप्त किया सबसे पहले हम चमकौर साहिब पहुँचे। यहाँ की हवा में ही एक अलग-सी गंभीरता महसूस होती है। हम सबसे पहले पहुँचे गुरुद्वारा श्री तारी साहिब (जिसे ताली साहिब भी कहा जाता है)। यहीं पर गुरु गोबिंद सिंह जी ने आनंदपुर साहिब छोड़ते समय अपनी तलवार को ज़मीन पर टेककर प्रण लिया था कि अब पीछे नहीं हटेंगे। यहाँ खड़े होकर मन स्वतः ही नतमस्तक हो गया। ●इसके बाद हम गए गुरुद्वारा श्री कत्लगढ़ साहिब। यह वही कच्ची गढ़ी है जहाँ दिसंबर 1705 में गुरु गोबिंद सि...

पानीपत की गलियां-23. (जगन्नाथ मन्दिर से अमर अमर भवन चौक तक)

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पानीपत की गलियां-23 ( जगन्नाथ मन्दिर से अमर भवन चौक तक) पानीपत शहर की संकरी-संकरी गलियां न केवल इतिहास की गवाह हैं, बल्कि यहां की सांस्कृतिक और सामाजिक विरासत को भी जीवंत रखती हैं। आज हम एक ऐसे ही सफर पर निकलते हैं, जो जीटी रोड से शुरू होकर अमर भवन चौक की ओर जाता है। यह रास्ता डंगरों वाले अस्पताल के ठीक सामने से गुजरता है। इस गली में प्रवेश करते ही दाईं-बाईं तरफ हथकरघा (हैंडलूम) की दुकानें और अन्य छोटी-मोटी दुकानें नजर आती हैं, जहां स्थानीय कारीगरों की मेहनत की झलक मिलती है। इन दुकानों के बीच से गुजरते हुए, बाईं तरफ एक संकरी गली में भगवान जगन्नाथ का प्राचीन मंदिर स्थित है। यह मंदिर पानीपत के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक है। यहां न केवल अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं हैं, बल्कि ओडिशा की पुरी परंपरा के अनुरूप भगवान जगन्नाथ, उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलराम जी की प्रमुख मूर्तियां भी स्थापित हैं। इन मूर्तियों की बनावट और पूजा-अर्चना की शैली पुरी की रथयात्रा की याद दिलाती है। मंदिर का प्रबंधन स्थानीय अग्रवाल समुदाय के लोग संभालते हैं, जो अपनी धार्मिक और सामाजिक जिम्म...

पानीपत की गलियां 22. (सुभाष बाजार रोड से किले तक)

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पानीपत की गलियां- 22  (सुभाष बाजार रोड से किले की ओर) पानीपत, हरियाणा का एक प्राचीन शहर, जो तीन ऐतिहासिक युद्धों के लिए विश्व प्रसिद्ध है, अपनी संकरी गलियों, विविध समुदायों और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है। आज हम एक ऐसे सफर पर चलते हैं जो सुभाष बाजार रोड से शुरू होकर किले की ओर बढ़ता है, और रास्ते में जुही मुड़े क्षेत्र से गुजरता है। यह सफर न केवल भौगोलिक है, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी समृद्ध है। आइए, इसे विस्तार से समझते हैं। सफर की शुरुआत: सुभाष बाजार रोड से सनातन धर्म गर्ल्स स्कूल  चौक तक: हमारा सफर सुभाष बाजार रोड से शुरू होता है, जो पानीपत के व्यस्त बाजार क्षेत्रों में से एक है। यहां से आगे बढ़ते हुए हम किले की तरफ  मुड़ते है तो  कई तरह की दुकानें शुरू हो जाती हैं। इस क्षेत्र में कुछ फास्ट फूड की दुकानें दिखाई देती हैं, जो आधुनिक जीवन की झलक देती हैं। लेकिन जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं, दाहिनी तरफ एक गली नजर आती है, जो कभी गंजो गढ़ी कहलाती थी, लेकिन अब इसका नाम रामनगर पड़ गया है। इस गली के बाहर सिख भाइ...

पानीपत की गलियां-21. (जी टी रोड से असंध रोड रेल्वे लाइन तक)

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पानीपत की गलियां-21 (जी टी रोड से असंध रोड रेल्वे लाइन तक) पानीपत की गलियों की सैर करते हुए आज हमने जी.टी. रोड के लाल बत्ती चौक से असंध रोड की ओर रुख किया। यह सैर न केवल शहर के भौगोलिक परिवेश की याद दिलाती है, बल्कि उन पुराने दिनों की सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक जिंदगी को भी जीवंत कर देती है, जब विचारधाराएँ भले ही अलग हों, पर इंसानियत एक ही थी। ●शुरुआत की गलियाँ और बाजार: असंध रोड की शुरुआत में ही दाईं ओर कांग्रेस भवन है। इसके ठीक साथ ही मीट मार्केट है। पहले यह मार्केट अंसार चौक में शाह जी की कोठी के सामने लगती थी। बाद में इसे शिफ्ट कर कांग्रेस भवन के साथ वाली गली में लाया गया। यह गली गवर्नमेंट गर्ल्स स्कूल के साथ-साथ चलती हुई स्कूल के पिछले गेट से गुजरती है। यहीं से दो रास्ते निकलते हैं—एक सीधे असंध रोड की ओर, दूसरा बिशन स्वरूप कॉलोनी की तरफ।   कांग्रेस भवन के नीचे आज भी क्वालिटी कन्फेक्शनरी की दुकान है—वही पुरानी स्वाद वाली मिठाइयाँ, वही पुरानी यादें। ●असंध रोड का पुराना स्वरूप:  कभी यह सड़क बिल्कुल सुनसान थी। मैंने यहाँ खेत देखे हैं, जहाँ हवा में सरसों क...

पानीपत की गालियां- 20. (जी टी रोड से श्री गीता मंदिर)

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पानीपत की  गालियां- 20  (जी टी रोड से श्री गीता मंदिर)  पानीपत की गलियों में एक यादों भरी यात्रा पर निकले हम, जीटी रोड से गीता मंदिर रोड में दाखिल हुए। हमारा गंतव्य था श्री गीता मंदिर—वह पवित्र स्थल जिसकी स्थापना, आधारशिला रखने के क्षण, अनेक धार्मिक कार्यक्रमों और आयोजनों में मैं न केवल भागीदार रहा हूँ, बल्कि उसका एक प्रमुख साक्षी भी हूँ। साल था 1963-64 का, जब स्वामी गीता नंद जी महाराज पहली बार पानीपत पधारे। लम्बे, छरहरे और बेहद आकर्षक नौजवान थे वे। उनका पहला आगमन हमारे घर के ठीक पास वाली परम हंस कुटिया में हुआ। देखते ही देखते उनकी लोकप्रियता आसमान छूने लगी। हर घर में उनके शिष्य बनने की होड़ सी मच गई। ऐसा प्रतीत होता था मानो 2500 वर्ष बाद स्वयं गौतम बुद्ध पुनः पानीपत में अवतरित हो गए हों। अनेक युवा-युवतियाँ उनके शिष्य बने, और उनमें से कई तो भिक्षु-भिक्षुणी बनकर सन्यास का मार्ग अपनाने लगे। अंततः वर्ष 1964 में उन्होंने जीटी रोड पर रेलवे स्टेशन के पास इस मंदिर की नींव रखी। उस समय मंदिर के आगे रेलवे कॉलोनी थी और उसके बाद तो खेत ही खेत फैले हुए थे। आज हम उसी मंदिर ...

पानीपत की गलियां-19. (नवल सिनेमा से रेलवे रोड तक)

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पानीपत की गलियां-19 पानीपत की गलियों का सफ़र: नवल सिनेमा से रेलवे रोड तक पानीपत – वह शहर जो तीन ऐतिहासिक युद्धों की गवाही देता है, हथकरघा और टेक्सटाइल की जीवंत धड़कन है, और मेरे बचपन की अनगिनत यादों का खज़ाना। आज इस यात्रा वृत्तांत में हम शहर की उन पुरानी गलियों में घूमेंगे जो कभी मनोरंजन, संघर्ष, व्यापार और रोज़मर्रा की ज़िंदगी का केंद्र हुआ करती थीं। हमारी यात्रा शुरू होती है नवल सिनेमा (नॉवल्टी थियेटर) से, जो रेलवे रोड पर अपनी नब्बे साल पुरानी शान लिए आज भी खड़ा है, और धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए रेलवे स्टेशन तक का सफ़र तय करेंगे। यह सिर्फ़ एक सड़क नहीं, बल्कि पानीपत की आत्मा की एक झलक है – जहाँ इतिहास, संस्कृति और बदलते समय की कहानियाँ एक-दूसरे में गुंथी हुई हैं। नवल थियेटर: नब्बे साल पुरानी सिनेमाई विरासत रेलवे रोड की शुरुआत में ही खड़ा है नवल थियेटर, जिसे शहरवासी प्यार से नॉवल्टी कहते हैं। यह पानीपत का सबसे पुराना सिनेमा हॉल है, जिसकी नींव लगभग नब्बे वर्ष पहले (1930 के दशक में) रखी गई थी। इसे शहर के प्रसिद्ध रईस बाबू नवल किशोर गर्ग की स्मृति में उनके पुत्रों ने बनवाया था।...

पानीपत की गलियां-18.(पानीपत की यात्रा: एसडी कॉलेज रोड से अमर भवन चौक तक)

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पानीपत की गलियां-18. (पानीपत की यात्रा: एसडी कॉलेज रोड से अमर भवन चौक तक) आज हम अपनी पानीपत शहर की यात्रा की शुरुआत एसडी कॉलेज रोड से कर रहे हैं, जो शहर के दिल में बसी एक ऐतिहासिक और व्यावसायिक रूप से जीवंत सड़क है। यह यात्रा हमें अमर भवन चौक तक ले जाएगी, जहां शिक्षा, उद्योग, व्यापार और सामाजिक सरोकारों की यादें एक साथ समाहित हो जाती हैं। चलिए, इस छोटी लेकिन यादगार यात्रा को विस्तार से जीते हैं। इस यात्रा के सहयात्री बने श्री पवन कुमार सैनी, एडवोकेट.  एसडी कॉलेज: पानीपत की शैक्षणिक धरोहर यात्रा की शुरुआत होती है सनातन धर्म (एसडी) कॉलेज से, जो पानीपत का सबसे पुराना और प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान है। यह कॉलेज शहर की आर्य समाजी परंपरा का प्रतीक है, लेकिन इसकी स्थापना आर्य कॉलेज के बाद हुई। कॉलेज की नींव रखने में प्रमुख भूमिका निभाई श्री जयनारायण गोयला ने, जो पानीपत के एक मशहूर उद्योगपति और लोकप्रिय नेता थे। उन्होंने सनातन धर्म एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना की और शहरवासियों से सहयोग जुटाकर इस कॉलेज को साकार किया। इस कॉलेज का उद्धाटन स्वामी गीता नंद महाराज के सानिध्य में चौधरी ...

पानीपत की गलियां 17. (हनुमान मंदिर चौक से अमर भवन तक)

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पानीपत की गलियां 17 हनुमान मंदिर चौक से अमर भवन तक) पचरंगा बाज़ार की सैर करते हुए हम लोग एक चौराहे पर पहुँचे। यह चौराहा चारों दिशाओं में फैले रास्तों का संगम था। सीधा रास्ता हनुमान मंदिर के सामने से गुज़रता हुआ रामधारी चौक की ओर जाता था। बाईं ओर का रास्ता दिगंबर जैन मंदिर के पास से होता हुआ इंसान चौक तक पहुँचता था। पूरब की दिशा में रास्ता अमर भवन चौक की ओर खुलता था। हमने अमर भवन वाले रास्ते को चुना और उस दिशा में चल पड़े। यह रास्ता हमारे लिए बहुत परिचित था, जैसे बचपन की कोई पुरानी गली जो दिल में बसी हो। इस रास्ते के कोने पर एक तरफ रघुबीर सैनी का पुराना मकान था, जो अब भी अपनी मजबूत दीवारों से खड़ा नज़र आता है। दूसरी तरफ खारी कुई मोहल्ला है, जिसके किनारे पर कई मकान एक लंबी कतार में खड़े हैं। इनमें से कुछ मकान खारी कुई की ओर मुड़े हुए हैं, तो कुछ इस सड़क की तरफ। थोड़ा आगे बढ़ने पर आर्य समाज के प्रमुख नेता लाला दलीप सिंह आर्य और उनके भाई जय भगवान दास आर्य के मकान आते हैं। ये दोनों भाई न केवल आर्य समाज बड़ा बाज़ार के कद्दावर नेता थे, बल्कि कई वर्षों तक प्रधान भी रहे। मेरा सौभाग्...

पानीपत की गलियां 16(पानीपत की गलियों का ऐतिहासिक सफर: पचरंगा बाज़ार और उसके आसपास)

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पानीपत की गलियां 16 पानीपत की गलियों का ऐतिहासिक सफर: पचरंगा बाज़ार और उसके आसपास पानीपत शहर की संकरी गलियाँ न केवल व्यापार और संस्कृति की गवाह हैं, बल्कि इतिहास की जीती-जागती किताब भी हैं। आज हमारी यात्रा उस प्राचीन चौक से शुरू होती है, जहाँ से तीन मुख्य रास्ते निकलते हैं। पहला रास्ता चौरा बाज़ार को पार करता हुआ कचेहरी बाज़ार में मिलता है। दूसरा रास्ता जैन स्कूल की पिछली गली से आरंभ होकर गुरुद्वारा  पहली पातशाही के पास से गुजरता हुआ जी टी रोड पर जाकर समाप्त होता है। तीसरा रास्ता सीधे शहर के हृदय स्थल पचरंगा बाज़ार की ओर जाता है। ये गलियाँ पानीपत की आत्मा हैं – कभी आवासीय मोहल्ले, आज व्यावसायिक केंद्र। आइए, विस्तार से इस सफर पर चलें और इनकी कहानी को जीवंत करें। जैन हाई स्कूल: पानीपत की शिक्षा की नींव इस चौक से लगा हुआ जैन हाई स्कूल पानीपत का सबसे पुराना विद्यालय है, जिसकी स्थापना सन् 1909 में दिगंबर जैन पंचायत ने की थी। यह स्कूल न केवल शिक्षा का प्रतीक है, बल्कि कई पीढ़ियों की स्मृतियों का खजाना भी। मेरा व्यक्तिगत सौभाग्य रहा कि मेरे पिता, मास्टर सीताराम सैनी, ने यहीं स...

पानीपत की गलियां-15(पानीपत की गलियों में एक यादगार सैर: कचहरी बाजार से चोड़ा बाज़ार तक)

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पानीपत की गलियां-15 (पानीपत की गलियों में एक यादगार सैर: कचहरी बाजार से चोड़ा बाज़ार तक) आज सुबह की ताज़ा हवा में पानीपत की पुरानी गलियों की सैर करने का मन हुआ। शहर की भीड़-भाड़ से दूर, इन संकरी गलियों में इतिहास, संस्कृति और लोगों की ज़िंदगानी की कहानियाँ छिपी हैं। मैं कचहरी बाज़ार से शुरूआत करता हूँ, जहाँ सुबह-सुबह दुकानों के शटर खुलने की आवाज़ें और चाय की भाप उड़ाती दुकानों का माहौल जीवंत हो जाता है। यहाँ से आगे बढ़ते हुए, हम दो भाइयों की मशहूर दुकान के पास से गुज़रते हैं – वो दुकान जहाँ बचपन  की यादें ताज़ा हो जाती हैं। ठीक इसी के बगल में डॉ. मनोहर लाल  सुनेजा का क्लीनिक है, जो अब उनके सुपुत्र डॉ  नवीन सुनेजा (सेवानिवृत्त Deputy Civil Surgeon)चला रहे हैं। क्लीनिक की दीवारें पुरानी हैं, लेकिन उनमें शहर की सेवा की गाथाएँ समाई हैं। डॉ. मनोहर लाल सुनेजा – एक सज्जन, मिलनसार और समर्पित व्यक्तित्व। बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े रहे। रघुवीर सैनी, सुल्तान सिंह और विजय कुमार सलूजा जैसे साथियों के साथ संगठन की नींव मजबूत की। एक बार भारतीय जनता ...

पानीपत की गलियां-14 (Salarjung to Ansar Chowk)

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पानीपत की गलियां-14 पानीपत की गलियों का सफ़र: सलारजंग गेट से अंसार चौक तक आज हम पानीपत की उन संकरी, जीवंत गलियों में कदम रखते हैं, जो शहर की आत्मा को जीवंत बनाती हैं। हमारा सफ़र शुरू होता है ऐतिहासिक सलारजंग गेट से, जो कभी शहर की प्रवेश द्वार की तरह था। गेट के ठीक बाहर से ही बाज़ार की रौनक शुरू हो जाती है। जैसे ही हम अंदर कदम रखते हैं, बाईं ओर फलों की रेहड़ियाँ और छोटी-छोटी दुकानें नज़र आती हैं। ताज़े सेब, केले, अमरूद और मौसमी फलों की महक हवा में घुली रहती है। इन दुकानों के साथ ही एक सड़क बाईं ओर मुड़ती है, जो न्यू सुखदेव नगर की ओर जाती है। यह सड़क थोड़ी घुमावदार है और अंत में जी.टी. रोड पर स्थित पुराने बस स्टैंड के पास जाकर मिलती है। इसी सड़क के रास्ते में दो महत्वपूर्ण गलियाँ निकलती हैं: 1. पहली गली – यह संकरी गली सीधे हकीम वालों की गली में पहुँचाती है, जिसे अब सेंट्रल बैंक वाली गली भी कहा जाता है। यह गली पुराने ज़माने की याद दिलाती है, जहाँ हकीम और वैद्य अपने इलाज के लिए मशहूर थे। 2. दूसरी गली – यह बिना किसी मोड़ के सीधे हकीम वालों के घरों (जो अब अधिकांशतः मौजूद नहीं हैं...

पानीपत की गलियां-13 (चरखी से Salarjung गेट)

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पानीपत की गलियां-13 पानीपत की गलियों का सफ़र: सलारजंग गेट तक की ऐतिहासिक सैर आज सुबह-सुबह, जब सूरज की पहली किरणें पानीपत की पुरानी दीवारों पर पड़ रही थीं, मैंने फैसला किया कि शहर की उन गलियों की सैर करूँ जो सदियों से इतिहास की गवाह रही हैं। मेरा सफ़र शुरू हुआ चरखी से, जहाँ ज्ञान हलवाई की पुरानी दुकान थी  जो अपनी मिठास बिखेरती थी। यहाँ से मैं सलारजंग की ओर रवाना हुआ, पैदल, धीरे-धीरे, हर कदम पर अतीत की खुशबू को सूँघते हुए। पानीपत की ये गलियाँ सिर्फ़ रास्ते नहीं, बल्कि जीती-जागती कहानियाँ हैं – व्यापार, संस्कृति, संघर्ष और परिवर्तन की। आइए, इस सफ़र में मेरे साथ चलें। शुरुआत: ज्ञान हलवाई से सलारजंग गेट तक: सफ़र की शुरुआत हुई चरखी यानी ज्ञान हलवाई की दुकान से। यहाँ की गर्म जलेबियाँ और रसगुल्ले अब भी मुंह में पानी ला देते हैं। दुकान के बाहर खड़े होकर मैंने देखा कि कैसे पुराने कम्बल व्यापारी श्री ईश्वर चंद्र जैन का मकान अब भी अपनी भव्यता बनाए हुए है। ठीक सामने श्री देवकीनंदन गर्ग का घर, उसके सामने ही हलवाई की दुकान शुरू होती है। यह दुकान पानीपत की मशहूर मिठाई की दुकानों में से...

पानीपत की गलियां 11 (Rajputana Bazar)

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पानीपत की गलियां-11 (राजपूताना बाजार का पुराना जादू) आज सुबह-सुबह, जब शहर अभी पूरी तरह जागा भी नहीं था, हम निकल पड़े पानीपत की उन संकरी, इतिहास से लबरेज गलियों की सैर पर। शुरूआत हुई रामधारी चौक से – वो चौक जहां कभी घोड़ों की टापें और बाजार की हलचल एक साथ गूंजती थीं। यहां से दक्षिण की ओर मुड़ते ही हम राजपूताना बाजार में दाखिल हो गए। ये बाजार कोई बड़ा मॉल नहीं, बल्कि एक जीवंत पट्टी है जो सीधे अमर भवन चौक की ओर निकलती है। पानीपत को राजस्व सर्कल में चार हिस्सों में बांटा गया है – तरफ राजपूतान, तरफ अफगानान, तरफ अंसार और तरफ मखदूम जादगान। और इसी तरफ राजपूतान की वजह से इस बाजार का नाम पड़ा राजपूताना बाजार, क्योंकि यहां मुस्लिम राजपूत बस्ते थे।    बाजार की शुरुआत हुक्के की दुकानों से होती है जहां चिलम से लेकर नाल और हर दूसरा समान वाजिब दाम पर मिलता है. हुक्के के शौकिन हर शहरी-देहाती के लिए यह आकर्षण का केंद्र है. और फिर इसके आगे कदम रखते ही हवा में एक पुरानी खुशबू घुली हुई थी – घी की महक, ऊनी कपड़ों की गर्माहट और कहीं दूर से आती पकौड़ों की चटनी की तीखी सुगंध। विभाजन से पहल...

पानीपत की गलियां-10 (गुड़ मंडी से रामधारी चौक)

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पानीपत की गलियाँ-10 पानीपत की गुड़ मंडी: एक ऐतिहासिक यात्रा: पानीपत की संकरी गलियों में आज हम गुड़ मंडी की ओर बड़े बाजार से प्रवेश करते हैं। शुरू में ही छोटी-बड़ी दुकानें नजर आती हैं, जहाँ रोजमर्रा की जरूरतों का सामान बिकता है। इनके बीच कुछ दालें बेचने वाली खुदरा और थोक की दुकानें भी हैं। इनकी खासियत यह है कि यहाँ एक दाम निर्धारित होता है—कोई मोल-भाव नहीं। सामान शुद्ध, साफ-सुथरा और विश्वसनीय होता है।  इसी क्रम में आगे बढ़ते हुए श्री राजेंद्र जैन की पुरानी कपड़ों की दुकान आती है। उसके ठीक बाद गुड़ मंडी का विशाल चौक सामने आता है। चौक के एक कोने पर श्री शेर सिंह जैन की तेल और अन्य सामान की दुकान थी। वे मेरे पिताजी मास्टर सीताराम जी के शागिर्द थे, और उनका सुपुत्र राजेंद्र और मैं जैन हाई स्कूल में एक साथ पढ़े थे। गुड़ मंडी का इतिहास और परंपरा: गुड़ मंडी की स्थापना का कोई लिखित इतिहास उपलब्ध नहीं है, लेकिन जनश्रुति के अनुसार यह लगभग 1,000 वर्ष पुरानी है। प्राचीन काल में पानीपत गुड़ की प्रमुख मंडी था। दूर-दराज के गाँवों से किसान पका हुआ गुड़ बैलगाड़ियों पर लादकर लाते थे। यहा...