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Showing posts from December, 2019

हिन्दू ही हिन्दू

*Inner Voice* (Nityanootan Broadcast Service)        राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माननीय सरसंघ चालक श्रीमान मोहन भागवत जी ने कहा है कि जो हिंदुस्तान में रहता है वह हिन्दू है चाहे वह किसी भी पूजा पद्धति व कर्म कांड में विश्वास करता है या नही भी करता चाहे वह नास्तिक भी क्यो न हो ।       हिन्दू धर्म को परिभाषित करते हुए एक मुकदमा का फैसला करते हुए सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश जस्टिस दंडपाणि ने आख्या दी थी कि हिन्दू कौन? उन्होंने फरमाया जो कर्म भोग , पुनर्जन्म व वेदों की व्यवस्था में यकीन रखता हो वह हिन्दू है ।      हिन्दू महासभा के प्रख्यात नेता श्री दामोदर सावरकर के अनुसार जो भी इस हिंदुस्तान को अपनी कर्मभूमि व पुण्यभूमि मानता है ,वह हिन्दू है ।    अनेको वर्षो पहले हमारे ऋषियों ने एक श्लोक के माध्यम से इस धरती को नैतिकता व अध्यात्म की धरती कहा था व पूरे विश्व को इससे शिक्षा लेने का आह्वान किया था । *एतद देशसस्य प्रसुतस्य सकाशादग्र जन्मन*:, *स्वम् स्वम् चरित्रं शिक्षरेन्पृथिव्यां सर्व मानवा*:।      आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने तिब्बत अर्थात त्रिविष्टप ( तिब्बत)

हम हिंदुस्तानी

*Inner voice* (Nityanootan Broadcast service)       भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी व उनके मन्त्रिमण्डली सहयोगियों की बात पर यकीन जरूर होना चाहिये कि नागरिकता कानून में 9वा संशोधन नागरिकता देने के बारे में है न कि लेकिन लेने के बारे में । उनकी इस बात को भी गम्भीरता से लेना चाहिए कि वे भारत के पड़ोसी देशों पाकिस्तान ,बांग्लादेश तथा अफ़ग़ानिस्तान में शासन तंत्र द्वारा उत्पीड़न के परिणामस्वरूप दयनीय जीवन बिता रहे गैर मुस्लिम नागरिक जो 2014 से पूर्व भारत आ गए उन्हें नागरिकता देना चाहते हैं । इस बात से जहां राजनीतिक रूप से खलबली मची वहीँ बंगाल ,असम व उत्तरपूर्व के प्रदेशो में भी उग्र विरोध शुरू हुआ है । विरोधी राजनीतिक दलों का मानना है कि यह साम्प्रदायिकता से सना है क्यों कि सभी धर्मों के लोगो को नागरिकता देना परन्तु मुस्लिमों को न देना यह बेमानी है जबकि इन देशों में कई मामलों में मुस्लिम भी उत्पीड़ित है ।      मुझे अपनी गुरु ,माता व मार्गदर्शक दीदी निर्मला देशपांडे जी के साथ कई बार पाकिस्तान जाने का मौका मिला व गत वर्ष बांग्लादेश भी गया । इन देशों में अनेक लोग मेरे व्यक्तिगत व सामा

सभी देशभक्त नागरिकों से अपील

*Inner Voice* (Nityanootan Broadcast Service) *सभी देशभक्त नागरिकों को एकजुट होने की जरूरत*  सिटीजन अमेंडमेंट एक्ट में नोवे संशोधन एवम प्रस्तावित एन आर सी के विरोध में न केवल भारत अपितु पूरे विश्व मे व्यापक प्रदर्शन हो रहे हैं । इन मे हर तबके व सम्प्रदायों के लोग है । इतना ही नही जापान के प्रधानमंत्री ने अपनी भारत यात्रा को स्थगित किया है , मलेशिया के प्रधानमंत्री ने भारत की धर्मनिरपेक्ष संरचना पर ही न केवल सवाल उठाए है वहीं अल्पसंख्यक वर्गों की सुरक्षा पर भी चिंता व्यक्त की है । बांग्लादेश के विदेश मंत्री ने तो यहाँ तक कह दिया कि भारत मे यदि कोई भी उनके देश का नागरिक अवैध रूप से रह रहा है तो वे उसे वापिस लेने को तैयार है । संयुक्तराष्ट्र संघ ने भी इस पर चिंता व्यक्त की है । अमेरिका, कनाडा,इंग्लैंड ,जर्मनी ,फ्रांस सहित अनेक देशों में वहाँ बसे भारतीय इसके विरुद्ध प्रदर्शन कर रहे है । विदेशों में रह रहे भारतवंशी चिंतित है कि उनका देश किस रास्ते पर निकल पड़ा है । इन देशों में उनकी अर्जित प्रतिष्ठा को भी ठेस पहुंची है । बाहर रह रहे भारतीय उन तक पहुंच रही खबरों से इतने परेशान है कि वे अ

Statement of Gandhi Global Family on present scenario

*गांधी ग्लोबल फैमिली का वर्तमान स्थिति पर प्रस्ताव/ वक्तव्य*        गांधी ग्लोबल फैमिली, देश में धर्म के भेदभाव पर बने सिटीजनशिप कानून का पुरजोर विरोध करती है तथा इसे राष्ट्रीय आज़ादी के मूल्यों ,भारतीय संविधान तथा भारतीय मान्यताओं का विरोधी मानती है ।      पूरे देश की जनता विशेषकर विद्यार्थी जिस तरह से व्यापक स्तर पर इसके विरोध में उतरे है वह इस बात का सूचक है कि हमे ऐसे कोई भी बात असहनीय है जो हमारे धर्मनिरपेक्ष व लोकतांत्रिक स्वरूप के विपरीत हो । हम ,जनता के शांति पूर्ण अहिंसात्मक विरोध के प्रति अपना समर्थन व एकजुटता व्यक्त करते है तथा देश की तमाम देशभक्त व धर्मनिरपेक्ष जनता से अपील करते है कि जनविरोधी कानूनों के विरोध में वे अपना हस्तक्षेप दर्ज करवाए । हम सभी गाँधीजन ,रचनात्मक संस्थाओ व संगठनों को भी आह्वान करते है कि वे राष्ट्रीय आज़ादी के मूल्यों व सिद्धान्तों की रक्षा के लिये एकजुट होकर जनता का मार्गदर्शन करें ।       हम , सभी आंदोलनकरियो से भी अपील करते है वे अपने संघर्ष को सत्याग्रह के सत्य एवम अहिंसा के माध्यम से लड़े तथा किसी भी प्रकार की हिंसात्मक व्यवहार को सर्वथा नकार दे

विद्यार्थियों को सलाम

*inner voice*    बात सन 1978 की है जब मैं सहारनपुर( उत्तरप्रदेश) में अपने बहन-बहनोई के पास रहते हुए जे वी जैन डिग्री कालेज में  एल एल बी कक्षा में पढ़ रहा था । पढ़ाई के साथ-२ ,आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन के संगठन को बनाने का काम भी करता था । वह दौर इमरजेंसी के बाद का था । विद्यार्थियों में राजनीतिक जागरूकता तो थी बस उसे उजागर करने की जरूरत थी ।  हम एक राजनीतिक विचारधारा को लेकर ही संघर्षरत थे । हमारा नारा था *शिक्षा व संघर्ष* । हम इस बात पर भी गौरान्वित थे कि हम एक विचारधारा से जुड़े है जो आधार अंतर्राष्ट्रीय है तथा जो हर एक उपेक्षित ,शोषित व निर्बल के लिये लड़ाई लड़ती है तथा हमारा संगठन उन्हीं उद्देश्यों के प्रति छात्रों में विचार विस्तार का कार्य करती है अतः पढ़ाई के साथ-2 हर मजलूम की लड़ाई से हम जुड़े है ।  संकीर्णता चाहे किसी भी रूप में हो वह हमारे आसपास नही थी । इसलिये साम्प्रदायिकता के खिलाफ हम खुल कर बोलते थे और ऐसे संगठनों के निशाने पर हमेशा रहते ।       मेरा पारिवारिक माहौल ने भी विकसित किया । माता जी कठोर आर्य समाजी ,पिता जी उदार सनातनी हिन्दू, नानका सिख , परवरिश एक मुस्लिम के घ

सांझी विरासत के अमर बलिदानी

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19 दिसम्बर, आज का दिन अमर शहीद *प0 राम प्रशाद बिस्मिल व अशफ़ाक़ुल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह* का बलिदान दिवस है । आज ही के दिन सन 1927 में अंग्रेज़ी क्रूर शासन ने उन्हें फांसी दी थी । इन दोनों में गजब की दोस्ती थी । मित्रता न केवल विचारों की अपितु भावनाओं की भी । एक कट्टर आर्य समाजी तथा दूसरा वतन परस्त सच्चा मुसलमान पर इसके बावजूद भी उनकी धार्मिक भावनाएं कभी आड़े नही आई । एक यज्ञ- हवन को अपनी आस्था से जोड़ता रहा दूसरा पांचो वक्त का पक्का नमाज़ी । पर क्या अद्भुत मेल था दोनों मिल कर आर्य समाज ,शाहजहांपुर में कई बार रुकते ।     फांसी से पहले भी जहां राम प्रसाद बिस्मिल ने ईश्वर स्तुति के प्रार्थना मंत्रों का पाठ किया वहीं अशफ़ाक़ ने कुरान की पवित्र आयतें पढ़ कर कुरान शरीफ की प्रति को एक बस्ते में गले में लटका कर फांसी के फंदे को चूमा । वर्तमान सन्दर्भ में जब राष्ट्रीय एकता व सर्वधर्म समभाव के मूल्यों के सामने सबसे विकट चुनौतियां है । धर्म, जाति , क्षेत्र व भाषा के नाम पर चारो तरफ विघटन का माहौल है ,ऐसे समय मे इनकी दोस्ती व बलिदान हम सबके लिये प्रेरणा का स्रोत है ।      साम्प्रदयिक सद्भाव व राष्ट

नागरिकता कानून- डॉ वेद प्रकाश वैदिक

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दैनिक भास्कर में प्रकाशित डॉ. वेदप्रताप वैदिक  जी का शानदार बेबाक लेख। 18 दिसंबर 2019 नागरिकता के फर्जी मुद्दे पर फंसी भाजपा डॉ. वेदप्रताप वैदिक कोई कानून हमारी #संसद स्पष्ट बहुमत से बनाए और उस पर इतना देशव्यापी हंगामा होने लगे, ऐसा मुझे कभी याद नहीं पड़ता। संसद के दोनों सदनों ने नागरिकता संशोधन विधेयक पारित किया, जिसके अनुसार पाकिस्तान, बांग्लादेश और #अफगानिस्तान से आनेवाले #शरणार्थियों को भारत की नागरिकता प्रदान की जाएगी। लेकिन यह नागरिकता सिर्फ हिंदुओं, सिखों, ईसाइयों, पारसियों और यहूदियों को दी जाएगी। इन देशों के मुसलमानों को नहीं दी जाएगी ? क्योंकि हमारी सरकार का दावा है कि इन पड़ौसी मुस्लिम देशों के उक्त अल्पसंख्यकों पर काफी अत्याचार होते हैं। उन्हें शरण देना भारत का धर्म है, कर्तव्य है, फर्ज है। इसी फर्ज को निभाने के लिए मोदी सरकार ने यह नया कानून बनाया है। इसमें शक नहीं कि शरणार्थियों को शरण देना किसी भी सभ्य देश का कर्तव्य है। इस दृष्टि से यह कानून सराहनीय है लेकिन शरण देने के लिए जो शर्त रखी गई है, वह अधूरी है, अस्पष्ट है और भ्रामक है। भारतीय नागरिकता देने की शर्त

A letter of citizen to the Govt.

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To, The Govt of India Unfortunately, you have reduced image of my country and tried to smash the spirit of its constitution. It is you who is responsible for the unrest we are facing and our universities have been turned by you a battle ground where your eyes look thirsty to fetch our students, to beat them in their own libraries where they come to study about this very country. What is more unfortunate is that when all these happening all over country, you and your ministers are still laughing, relaxing and never seen as concerned, never went to meet these students. As a citizen of my beloved country, I reject you and I would consider only my constitution as my government and none of your ministers or their cabinets have any respect in my heart. Also, as a citizen, I stand along with my fellow citizens, students, particularly with Muslim community as their concern is completely logical and justful and they have all right to lodge their protest; but never forget that this i

हम लड़ेंगे साथी- अवतार सिंह पाशअवतार सिंह संधू, जिन्हें सब पाश के नाम से जानते हैं पंजाबी कवि और क्रांतिकारी थे। अवतार सिंह पाश उन चंद इंकलाबी शायरो में से है, जिन्होंने अपनी छोटी सी जिन्दगी में बहुत कम लिखी क्रान्तिकारी शायरी द्वारा पंजाब में ही नहीं सम्पूर्ण भारत में एक नई अलख जगाई।

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 हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए हम लड़ेंगे साथी, ग़ुलाम इच्छाओं के लिए हम चुनेंगे साथी, ज़िन्दगी के टुकड़े हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर हल अब भी चलता हैं चीख़ती धरती पर यह काम हमारा नहीं बनता है, प्रश्न नाचता है प्रश्न के कन्धों पर चढ़कर हम लड़ेंगे साथी क़त्ल हुए जज़्बों की क़सम खाकर बुझी हुई नज़रों की क़सम खाकर हाथों पर पड़े घट्टों की क़सम खाकर हम लड़ेंगे साथी हम लड़ेंगे तब तक जब तक वीरू बकरिहा बकरियों का मूत पीता है खिले हुए सरसों के फूल को जब तक बोने वाले ख़ुद नहीं सूँघते कि सूजी आँखों वाली गाँव की अध्यापिका का पति जब तक युद्ध से लौट नहीं आता जब तक पुलिस के सिपाही अपने भाइयों का गला घोंटने को मज़बूर हैं कि दफ़्तरों के बाबू जब तक लिखते हैं लहू से अक्षर हम लड़ेंगे जब तक दुनिया में लड़ने की ज़रूरत बाक़ी है जब तक बन्दूक न हुई, तब तक तलवार होगी जब तलवार न हुई, लड़ने की लगन होगी लड़ने का ढंग न हुआ, लड़ने की ज़रूरत होगी और हम लड़ेंगे साथी हम लड़ेंगे कि लड़े बग़ैर कुछ नहीं मिलता हम लड़ेंगे कि अब तक लड़े क्यों नहीं हम लड़ेंगे अपनी सज़ा कबू

राम दास की हत्या- आज के संदर्भ में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की एक कविता

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चौड़ी सड़क गली पतली थी दिन का समय घनी बदली थी रामदास उस दिन उदास था अंत समय आ गया पास था उसे बता, यह दिया गया था, उसकी हत्या होगी धीरे-धीरे चला अकेले सोचा साथ किसी को ले ले फिर रह गया, सड़क पर सब थे सभी मौन थे, सभी निहत्थे सभी जानते थे यह, उस दिन उसकी हत्या होगी खड़ा हुआ वह बीच सड़क पर दोनों हाथ पेट पर रख कर सधे क़दम रख कर के आए लोग सिमट कर आँख गड़ाए लगे देखने उसको, जिसकी तय था हत्या होगी निकल गली से तब हत्यारा आया उसने नाम पुकारा हाथ तौल कर चाकू मारा छूटा लहू का फव्वारा कहा नहीं था उसने आख़िर उसकी हत्या होगी? भीड़ ठेल कर लौट गया वह मरा पड़ा है रामदास यह 'देखो-देखो' बार बार कह लोग निडर उस जगह खड़े रह लगे बुलाने उन्हें, जिन्हें संशय था हत्या होगी ।

श्री आई डी स्वामी को विनम्र श्रद्धांजलि

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*स्वामी जी नही मिले* !    पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री श्री आई डी स्वामी जी की पत्नी का देहांत अभी चंद दिनों पहले करनाल में उनके निवास स्थान पर हो गया था जिसकी सूचना मुझे भी सोशल मीडिया के माध्यम से मिली थी । आज मैं उनके घर अफसोस के लिये उनके घर मे ज्योहीं ही दाखिल हुआ तो मैने स्वामी जी से मिलने के लिये जानकारी चाही तो एक सज्जन बोले कि उनका तो देहांत हो गया है । मैने भौचक्के  हो कर कहा कि उनकी नही उनकी पत्नी का निधन हुआ है पर उन्होंने रुआँसे होकर बताया कि आज दोपहर बाद 3 बजे उनका भी देहांत हो गया । मैं भी गमगीन होकर घर के उस कमरे में दाखिल हुआ जिसमें उनके परिवार सहित अन्य सदस्य बैठे थे ।मुझे बहुत अफसोस रहा कि जिनसे मैं मिलने आया था वह यात्री तो सदा सदा के लिये चला गया था ।       इस बार भी स्वामी जी ने वही किया जैसा वे पहले भी करते थे ।  उनके गृह राज्यमंत्री रहते जब भी किसी भी काम के सिलसिले में मिलने के लिये उन्हें फोन करते तो कुशल क्षेम पूछ कर कहते कि क्या किसी भी काम के लिये तुम्हे भी मिलने की जरूरत है ,फोन पर ही बता दो  । मेरे काम सदा सामाजिक ही रहते । उन्हें मैं संकोच से काम ब

Interview of Justice Dada Dharmadhikari on caste system

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जो तटस्थ है ,समय लिखेगा उनके भी अपराध ।

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*जो तटस्थ है ,समय लिखेगा उनके भी अपराध* - रामधारी सिंह दिनकर (Nityanootan Broadcast Service) 12.12.2019 ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलो , किसने कहा, युद्ध की वेला चली गयी, शांति से बोलो? किसने कहा, और मत वेधो ह्रदय वह्रि के शर से, भरो भुवन का अंग कुंकुम से, कुसुम से, केसर से? कुंकुम? लेपूं किसे? सुनाऊँ किसको कोमल गान? तड़प रहा आँखों के आगे भूखा हिन्दुस्तान. फूलों के रंगीन लहर पर ओ उतरनेवाले ! ओ रेशमी नगर के वासी! ओ छवि के मतवाले! सकल देश में हालाहल है, दिल्ली में हाला है, दिल्ली में रौशनी, शेष भारत में अंधियाला है . मखमल के पर्दों के बाहर, फूलों के उस पार, ज्यों का त्यों है खड़ा, आज भी मरघट-सा संसार . वह संसार जहाँ तक पहुँची अब तक नहीं किरण है जहाँ क्षितिज है शून्य, अभी तक अंबर तिमिर वरण है देख जहाँ का दृश्य आज भी अन्त:स्थल हिलता है माँ को लज्ज वसन और शिशु को न क्षीर मिलता है पूज रहा है जहाँ चकित हो जन-जन देख अकाज सात वर्ष हो गये राह में, अटका कहाँ स्वराज? अटका कहाँ स्वराज? बोल दिल्ली! तू क्या कहती है? तू रानी बन गयी वेदना जनता क्यों सहती है? सबके

स्पीक टू लीड ngo के सहयोग व सहायता के क्षेत्र में बढ़ते कदम

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माता सीता रानी सेवा संस्था, पानीपत( इंडिया) द्वारा निर्मला देशपांडे संस्थान, पाN में स्ट्रीट चिल्ड्रन एवं बाल श्रमिक बच्चों के लिए चलाए जा रहे हाली अपना स्कूल में गरम जैकेट वितरण समारोह' स्पीक टू लीड' संस्था के सौजन्य से प्रमुख शिक्षाविद श्री महेंद्र सबलोक एवं उनकी पत्नी कमलेश सबलोक के द्वारा किया गया । 'स्पीक टू लीड' संस्था अमेरिका में शिक्षा प्राप्त कर रहे एक प्रतिभाशाली छात्र शिवम स्याल के नेतृत्व में चलाई जा रही है ,जो विद्यार्थियों एवं युवाओं में जनचेतना का काम कर सहयोग जुटाते हैं। इस संस्था के निदेशक शिवम स्याल की प्रेरणा से उसके नाना महेंद्र सबलोक ने इन जैकेट्स को विद्यार्थियों के लिए जुटाया। उन्होंने कहा कि सपीक टू लीड संस्था के द्वारा शिवम स्याल ऐसे होनहार विद्यार्थियो की मदद करना चाहते है जो आर्थिक आभावों के कारण आगे नही बढ़ सकते ।                 इस अवसर पर सम्मानित अतिथि के रूप में श्री देवेन्द्र कादयान की पत्नी व प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकत्री श्रीमती कपिला कादियान शामिल हुई। उन्होंने इसे एक उपकार  एवं  धर्मार्थ कार्य कहा। उन्होंने कहा कि शिक्षा प्राप्त करन

पानीपत फ़िल्म एक सुन्दर प्रस्तुति।

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*पानीपत- ए स्टोरी ऑफ बेटरएल* फ़िल्म यह तो दिखाने में सफल रही कि हिंदुस्तान में बादशाहों की जंग न तो किसी राष्ट्रवाद के लिये थी और न ही किसी धर्म के लिये । यह लड़ाई थी सिर्फ दो शासकों के बीच जो अपनी ताकत,सम्पदा व सम्पति को बढ़ाने के अभियान में जुटे थे। मराठो के साथ इब्राहिम गार्दी जैसे सुरमे थे वहीं अहमद शाह अब्दाली के साथ राजा अभिराम सिंह जैसे लोग । यह बात अलग है कि दोनों पक्ष अपने -२ पक्ष को विशुद्ध राष्ट्रसेवा में डुबोए थे ।     कहानी का बहुत ही सजीव चित्रण इस फ़िल्म में किया है । फिर भी यह कथा है न कि इतिहास । इसे किसी भी प्रकार से अन्यथा नही लेना चाहिए । हर शासक यौद्धा के अपने निजि स्वार्थ थे जिसके आधार पर वह किसी एक पक्ष में शामिल हुए । इसे किसी भी राष्ट्रभक्ति के साथ जोड़ना बेमानी है ।      1761 बहुत दूर का समय नही है । हरियाणा ,पंजाब अब उत्तराखंड में रहने वाले पंत, जोशी , पाटिल व रोड़ मराठा उन सैनिको के ही वंशज है जो यहां युद्ध लड़ने के लिये आये परन्तु हार कर यहीं बस गए । पानीपत के छाजपुर से सिवाह तक कि मिट्टी के एक -कण में इनका इतिहास है ।     पानीपत के लोगों को इस युद्ध की जानक

कथा त्रिवेणी: स्व0 दीदी निर्मला देशपांडे जी द्वारा संपादित पत्रिका नित्यनूतन के प्रवेशांक 15 अगस्त ,1985 में प्रकाश

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कथा त्रिवेणी       (1)          एक था राजा , विद्वानों की बड़ी कद्र करता था। उसने सुना कि राज्य में कहीं एक बहुत बड़े ज्ञानी हैं ।तुरंत  दूतो को आदेश दिया ,जाओ, ज्ञानी को खोज कर लाओ, मैं उनसे मिलना चाहता हूं। दूत चार दिशाओ में घूम आएं। ज्ञानी तो नहीं मिले ।राजा ने पूछा, "कहां ढूंढा था तुमने उन्हें।' दूतो ने  कहा ,"सारे शहर ढूंढ डाले,सारे गांव छान डाले। ज्ञानी का तो कहीं पता नहीं चला।" राजा बोला अरे मूर्खों, ज्ञानी कहीं शहर में थोड़े ही रहते हैं?उपह्यरे गिरिणा संगथे च नदीनाम धिया विप्रो अजायत- जंगलों पहाड़ों की गुफाओं और नदियों के संगम पर ज्ञानी रहते हैं। जाओ  फिर से खोजो उन्हें। दूत फिर निकले पडे ज्ञानी की खोज में और उन्हें  ढूंढ ही लाये।यह  था उपनिषदों का युग और आज.....     ***************  (2)      कालिदास के शाकुंतल में आता है- राजा दुष्यंत शिकार को निकला ।एक घने जंगल में उसने एक हिरण को देखा। राजा ने धनुष बाण संभाला। हिरण दौड़ने लगा। दुष्यंत हिरण का पीछा करने लगा। दौड़ते दौड़ते हिरन पहुंचा कणव मुनि के आश्रम में ।आश्रम के छोटे से बालक ने देखा कि राजा तो हिरण

स्वामी गीतानन्द जी भिक्षुक(गीता जयंती पर विशेष)

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* स्वामी गीतानन्द जी भिक्षुक*          मेरी उम्र उस समय 7-8 साल की होगी । न तो हमारा पानीपत शहर बड़ा था औऱ न ही हमारा दायरा । देवी मंदिर जो कि मुश्किल से एक किलोमीटर होगा परन्तु कई खेत पार करके जाना होता था जो ऐसा लगता मानो कई मील दूर है । दिन ढलते ही सभी लोग ऐसे अपने घर मे आ जाते जैसे पक्षी अपने नीड़ में आ जाते हो । शहर के चारो तरफ दीवार थी तथा उनमें  निकलने -बड़ने के दरवाजे लगे थे । हम जिस मोहल्ले में रहते थे उसके तीन तरफ रास्ते खुलते थे । एक घेर राइयाँ की तरफ ,दूसरा बाजार की ओर से दौलत हलवाई की तरफ से बाजार में और तीसरा रास्ता था घाटी बार की तरफ जहां सड़क पार करते ही *परम हंस कुटिया* थी । जहाँ सुबह - शाम सत्संग होता और कोई न कोई साधु- संत आते ही रहते । पर वहाँ सिर्फ बड़े - बूढ़े ही जाते थे क्योंकि वहाँ उनके मतलब का ही रूखा सूखा काम ही होता । वहाँ हम बच्चों का क्या काम ,क्योंकि वहाँ प्रशाद तक नही बटता था । इसके विपरीत एक बात और कि हमारा परिवार ठहरा आर्य समाजी जो ऐसे सत्संगों में भी आस्थावान न था ।      पर एक दिन दोपहर बाद उस परमहंस कुटिया में खूब चहल पहल थी

नित्यनूतन गीता - पुरूषोत्तम यशवंत देशपांडे

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* नित्यनूतन गीता* (महाराष्ट्र के विज्ञान लेखक दार्शनिक पत्रकार भूतपूर्व सांसद श्री पु य देशपांडे के अप्रकाशित  ग्रंथ मराठी 'नित्यनूतन भगवतगीता' के प्रथम अध्याय का अनुवाद) जो 'नित्य' होता है वह निरंतर वैसा रहेगा, जैसा कि पहले था, तो यह अस्तित्व में होते हुए भी अस्तित्व हीन हो जाएगा। उसका कोई अर्थ ही नहीं रहेगा। इससे उल्टे जो' अनित्य' होता है वह अभी है - फिर नहीं - इस श्रृंखला में अटक जाता है। इसलिए वह भी अर्थ शून्य बन जाता है। क्योंकि उसके है- पन (अस्तित्व) का देखते- देखते 'नहीं- पन' (अस्तित्वहीनता) में विलोप हो जाता है। उसका नहीं- पन देखते-देखते 'है- पन' का रूप धारण कर लेता है। यह दोनों पर्याय एक दूसरे के विपरीत होने के कारण दोनों ही अर्थशून्य हो जायेंगे। '        फिर सवाल उठता है सार्थ '(अर्थ युक्त) के माने क्या है? सार्थ वही होता है, जिस पर 'नित्य' या  अनित्य की परिभाषा लागू नहीं होती। नित्य और अनित्य ये  यह दोनों शब्द, काल वाचक है । सार्थता के लिए दोनों उपयोगी नहीं है ।इसलिए एक विलक्षण (अद्भुत) सत्य हमारे ध्यान में आता ह

प्रातः स्मरामि

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*प्रातः स्मरामि* श्री मद्भगवद गीता विश्व के सभी के लिये प्रिय ग्रन्थ है । संत विनोबा ने तो इसे मां की उपमा दी और *गीताई* लिखी । आद्य शंकराचार्य ,सन्त ज्ञानेश्वर, लोकमान्य तिलक ,महात्मा गांधी, प्रभुपाद आदि संतो व महापुरुषों ने अपने-२ ढंग से इसका भाष्य लिखा । पुनर्जन्म व अवतारवाद के अंशो की मान्यता बेशक कई धर्मो में न हो परन्तु जीवन को एक संघर्ष के रूप में जीने का दर्शन इस ग्रन्थ में है ।     सम्पूर्ण गीता में 18 अध्याय है जिनमे कुल 700 श्लोक है । अलग-२ अध्याय में भगवान कृष्ण - अर्जुन संवाद व धृतराष्ट्र-संवाद में मनुष्य के जीवन को सबल ,स्वावलम्बी तथा निर्भय होने की प्रेरणा दी है ।     गीता मात्र पठनीय ही नही अपितु अनुकरणीय भी है । राम मोहन राय पानीपत/ 07.12.2019

प्रातः स्मरामि

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* प्रातः स्मरामि*:   *मुसलमान कुरान शरीफ को आसमानी किताब मानते है यानी यह खुदा द्वारा हज़रत मुहम्मद साहब में नाज़िल हुई* ( अवतरित हुई )  *जैसे कि हिंदुओं का मानना है कि वेद अपौरुषेय है अर्थात ईश्वर प्रदत्त है तथा यह ऋषियो में परमात्मा द्वारा अवतरित किये गए* ।      *कुरान शरीफ में 30 खण्ड है जिसके 144 भाग है तथा इसमें 6,326 आयते है जिसमे उस परमपिता परमात्मा (अल्लाह) का गुणगान है* ।     *मस्ज़िद में पांच बार की नमाज़ से पहले मौलवी आजान (आह्वान) देता है* । 1. *अल्लाह हू अकबर: परमात्मा सबसे बड़ा है* (4 बार) 2. *अशदू अन लैला ही इल्लाह: मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के बिना कोई माबूद नही है* (2 बार) 3. *अशहादु एना मोहम्मद रसूल अल्लाह: मैं गवाही देता हूं कि मोहम्मद अल्लाह के रसूल है* (2 बार) 4.*हैया लास सलाह:आओ नमाज की तरफ*(2 बार) 5. *हैयालाल फलाह: आओ कामयाबी की तरफ*( 2 बार) 6. *अल्लाह हू अकबर:  परमात्मा सबसे बड़ा है* (2 बार) 7. *ला इला हा इलल्लाहः अल्लाह के सिवाय कोई भी इबादत के लायक नही* ।       *संत विनोबा भावे ने कुरान शरीफ पर एक लघु पुस्तिका *कुरान सार* *लिखी है जिसमे कुल 1065 आय

आंख के बदले आंख

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हैदराबाद में डॉ रेड्डी की निंदनीय शारीरिक शोषण व निर्मम हत्या के चारो आरोपियों को कल सजा देते हुए  एनकाउंटर के नाम पर मौत के घाट उतार दिया गया । डॉ रेड्डी वीभत्स कांड के बाद पूरा नागरिक समाज उन्हें फांसी देने की मांग कर रहा था ,पर यह फांसी किन्ही समूह अथवा पुलिस के द्वारा न होकर कानून सम्मत था । इस बारे में दो राय नही कि कानूनी प्रक्रिया बहुत लंबी ,थकाऊ व उबाऊ है परंतु इसके इलावा कोई चारा भी नही है । अरब व पाकिस्तान में इस्लामिक शरीअत कानून के नाम पर यह सब कुछ हो चुका है पर हल नही निकल पाया ।         पिछले दिनों गुड़गांव के राय इंटरनेशनल स्कूल में एक विद्यार्थी के यौन शोषण व हत्या का मामला हम सभी ने सुना था जिसमे एक स्कूल चौकीदार को आरोपी बनाया गया । उसे पुलिस ने प्रताड़ित भी किया गया परन्तु बाद में वह बेकसूर साबित हुआ और आरोपी स्कूल का एक विद्यार्थी ही पाया ।       यह हमारी कानूनी प्रक्रिया की ही नाकामयाबी है कि लोगों का उससे विश्वास कम हो रहा है ।  महात्मा गांधी के शब्दों में " यदि आंख के बदले आंख ली जाएगी तो यह पूरी दुनियां ही अंधी हो जाएगी।" राम मोहन राय 06.12.2019

लाल बहादुर शास्त्री- बचपन के झरोखे से

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श्री लाल बहादुर शास्त्री जब भारत के प्रधान मंत्री बने तो मै कुल 6 वर्ष का था परन्तु उम्र के मुकाबले में काफी कुशाग्र व राजनीतक तक रूप से परिपक्व भी ,इसका कारण यह भी है कि मेरे माता -पिता दोनों सामाजिक -राजनितिक कार्यकर्ता थे तथा देश भक्ति व प्रेम से लबालब भरे थे ।माँ कार्यकर्ता तथा नेत्री थी तो पिता एक विचारक व चिंतक ।उनकी जो सबसे शानदार चीज थी वो यह की वे सामाजिक सरोकार की हर बात अपने बच्चों यानि हम सबसे शेयर करते थे शायद यही कारण था की हम उम्र से ज्यादा समझदार थे ।सन् 1965 में भारत व पाकिस्तान में युद्ध हुआ ।सन् 1962 के भारत चीन  लड़ाई में अपनी हार से हर भारतीय आहत था वह यह युद्ध नही पराजित होना चाहता था इसलिये हर नागरिक अपने अपने स्थान पर युद्ध की तैयारी में था ।प्रधान मंत्री शास्त्री जी के "जय जवान-जय किसान "के नारे ने पुरे देश में जोश पैदा कर दिया था ।हम बच्चे भी इसी जोश से ओतप्रोत थे ।एक दिन मै अपनी माँ के साथ बाजार गया वहाँ एक दुकान पर एक टॉय टैंक बिकता देखा जो जमीन पर चलाने पर उसमे पत्थर होने की वजह से अपनी नली से चिंगारी छोड़ता था, उसकी कीमत तीन रुपये की थी जो मेरी है

प्रातः स्मरामि - गुरु ग्रन्थ साहब जी

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प्रातः स्मरामि ! श्री गुरु ग्रन्थ साहब एक ऐसा ग्रन्थ है जिसमे सर्वधर्म समभाव स्वत: ही समाया है । इसमें सिख परम्परा के 6 गुरुओं ,11 भक्तो व 15 भट्ट कवियों की वाणी निरूपित है । गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज के आदेशानुसार *सब सिखों को हुक्म है गुरु मान्यो ग्रन्थ* की भावना के अनुसार इसे जीवित गुरु गद्दी का स्थान है इसलिए इसकी मान- मर्यादा का ख्याल रखना पड़ता है परन्तु आम जिज्ञासु पाठक के लिये शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ,अमृतसर ने इसका भावानुवाद *शब्दार्थ* रूप में प्रकाशित किया है जो हिंदी सहित अनेक भाषाओं में उपलब्ध है ।

महात्मा गांधी और मेवात - सदीक अहमद मेव

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* गांधी जी और मेवात*           ************                     '(सद्दीक अहमद मेव')                                      बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में गांधीजी मेवातियो के सबसे बड़े हमदर्द थे। मेवाती भी उन्हें प्यार और सम्मान से गांधी बाबा कहते थे और आजाद भारत में उन्हें अपना संरक्षक समझते थे। गांधी जी भी मेवातियो के साहस और संघर्ष क्षमता से भलीभांति परिचित थे। मेवाती और गांधी बाबा का यह आत्मिक रिश्ता एक दिन में नहीं बल्कि बरसों में कायम हुआ था। अगर यह कहा जाए कि गांधीजी और  मेवातियों का यह रिश्ता स्वतंत्रता आंदोलन में मेवातियों की भूमिका का इतिहास है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।                      वास्तव में सन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की विफलता के पश्चात मेवातियों को अंग्रेजों और सेना अधिकारियों के ब बदले की भावना से की गई कार्यवाही का शिकार होना पड़ा ।हजारों मेवाती  आमने-सामने की लड़ाई में वतन के लिए शहीद हो गए। हजारों को खुलेआम फांसी पर लटका दिया गया ।अनेक लोगों को जेल की लंबी लंबी सजा दी गई। जमीनों की जब्ती ,भारी जुर्माने तथा खेती और पशुओं की बर्बादी ने आर्थ